बिहार चुनाव में सुभासपा की अनदेखी से क्या आएगी यूपी में ‘दोस्ती’ में दरार ?
x
सुभासपा ने एनडीए से 3-5 सीटों की माँग की थी

बिहार चुनाव में सुभासपा की अनदेखी से क्या आएगी यूपी में ‘दोस्ती’ में दरार ?

यूपी में एनडीए गठबंधन में शामिल सुभासपा ने बिहार में तेवर दिखाए, पर पार्टी को सीट बंटवारे में शामिल नहीं किया गया। सुभासपा ने अलग प्रत्याशी खड़े कर दिए। पर यूपी में क्या इस तल्खी का असर पड़ सकता है?


बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए के सीट बंटवारे में सुभासपा को हिस्सा न मिलने का असर क्या यूपी में देखने को मिल सकता है। यूपी में सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने कड़े तेवर दिखाते हुए इस बात के संकेत दिए थे कि अगर सम्मानजनक सीटें नहीं मिलीं तो सुभासपा बिहार में अकेले चुनाव लड़ेगी। पार्टी के कई नेताओं ने नामांकन कर दिया है और प्रचार के लिए लोगों के बीच पहुँच रहे हैं। पार्टी ने क़रीब डेढ़ सौ सीटों पर अपने कार्यकर्ताओं को मैदान में उतारने का दावा किया है। इस बीच इस बात की चर्चा तेज़ हो गई है कि क्या इससे यूपी में सुभासपा- बीजेपी की दोस्ती में दरार आएगी?

नहीं मिली हिस्सेदारी, बिहार के सुभासपा नेताओं ने कहा ‘वादाखिलाफी’-

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए ने सीट बंटवारे का जो फार्मूला तैयार किया उसमें सुभासपा को हिस्सेदारी नहीं मिली है। बीजेपी और जेडीयू-दोनों 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं जबकि लोजपा (रामविलास) को लगभग 29 सीटें और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) और राष्ट्रीय लोक मोर्चा ( RLM ) को 6-6 सीटें दी गयी हैं। लेकिन इस फॉर्मूले में सुभासपा को स्थान नहीं मिला है। सुभासपा को उम्मीद थी कि लखनऊ से पटना और दिल्ली तक की पैरवी के बाद बिहार में सीट बंटवारे में पार्टी को भी शामिल किया जाएगा। बिहार में सुभासपा के कार्यकर्ताओं ने इस बात को लेकर नाराज़गी है। कुछ जिलों में पार्टी की लोकल यूनिट के नेताओं ने इसे बीजेपी की ‘वादाख़िलाफ़ी’ करार दिया है। रामगढ़ के सुभासपा प्रत्याशी घूरे लाल का कहना है कि पिछले विधानसभा चुनाव में भी सुभासपा को प्रत्याशी उतारने से रोका गया था। उस समय ये कहा गया था कि अगली बार मौक़ा मिलेगा।

सुभासपा के बिहार चुनाव में एनडीए से अलग अपने उम्मीदवार उतारने के बाद अब यूपी में इसका ‘साइड अफेक्ट’ हो सकता है। पार्टी ने कार्यकर्ताओं को ग्राउंड पर सक्रिय कर दिया है। सूत्रों के अनुसार सुभासपा ने बिहार की 150 से ज़्यादा विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की राजनीति बनायी थी। एनडीए और बीजेपी के लिए यह असहज करने वाली स्थिति है। माना जा रहा है कि इस टकराव का असर आने वाले समय में यूपी में बीजेपी और सुभासपा की दोस्ती पर भी पड़ सकता है।

सुभासपा के कई प्रत्याशी मैदान में

दरअसल सुभासपा संगठन का कहना है कि पार्टी बिहार में 32 जिलों में सक्रिय है।ऐसे में ओम प्रकाश राजभर ने दिल्ली में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व और गृह मंत्री अमित शाह से पिछले दिनों अपनी मुलाक़ात के दौरान इस बात पर चर्चा कि थी कि सुभासपा को 3 से 5 सीटें दें ।यूपी में एनडीए के साथ सुभासपा मजबूती से खड़ी है ऐसे में इससे एकजुटता का संदेश भी जाएगा।पार्टी को इस बात की उम्मीद थी कि उनकी यह माँग मानी जाएगी।लेकिन सीट बंटवारे के फार्मूले में सुभासपा को जगह नहीं मिली।पार्टी में इस बात को लेकर नाराज़गी है तो अब इस बात के भी संकेत मिल रहे हैं कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी बिहार में 150 से ज़्यादा सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी।कहा जा रहा है कि सुभासपा ने 47 सीटों पर अपने प्रत्याशियों को उतारा है जिसमें रक्सौल से धर्मवीर पासवान, नरकटिया से संजय राजभर, रामनगर से वशिष्ठ पासवान, रामगढ़ से घुरेलाल राजभर, करकट से राम वकील राजवंशी, वजीरगंज से रविंद्र राजभर, रानीगंज से राजेश राजवार को प्रत्याशी बनाया है।सुभासपा का दावा है कि राजभर, राजवंशी, राजघोष जैसे ओबीसी जातियों का सुभासपा को समर्थन हासिल है और पिछले कुछ समय से लगातार पार्टी में इनके बीच काम किया है।

क्या यूपी की ‘दोस्ती’ प्रभावित होगी?

दरअसल यूपी में एनडीए की प्रमुख सहयोगी सुभासपा के प्रमुख ओम प्रकाश राज्यभर योगी आदित्यनाथ कैबिनेट में मंत्री हैं।हालांकि समय समय पर वो कई मुद्दों पर सरकार से टकराव की स्थिति में रहे हैं और खुल कर उनकी नाराज़गी सामने आती रही है।लेकिन बावजूद इसके पार्टी गठबंधन में है और यूपी विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने साथ रहने की ही बात की है।लेकिन बिहार में अगर बीजेपी और सुभासपा के प्रत्याशी आमने-सामने होते हैं और ओम प्रकाश राजभर या पार्टी के दूसरे नेता उनके प्रचार के लिए जाते हैं तो एनडीए पर हमला करने का सियासी विरोधियों ख़ास तौर कर सपा को मौक़ा मिलेगा।अगर सपा यह तल्ख़ी ज़्यादा बढ़ी तो यूपी विधानसभा चुनाव उससे पहले यूपी में होने वाले पंचायत चुनाव में कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति होगी।

यूपी में दोस्ती बनाए रखना ज़रूरी-

इधर सुभासपा की तरफ़ से प्रत्याशी लोगों के बीच जाकर प्रचार कर रहे हैं। दूसरे चरण के लिए नाम वापसी की तारीख 23 अक्टूबर को है । राजनीतक विश्लेषक स्नेह रंजन कहते हैं कि ‘ बिहार में सीट मिले न मिले, यूपी में दोस्ती बनाए रखना सुभासपा को मजबूरी है।बिहार में सुभासपा का कोई आधार नहीं है।ऐसे में एनडीए से अलग होकर पार्टी कुछ नहीं कर सकती।जबकि अगर इस मुद्दे पर यूपी में दोस्ती में ‘ दरार’ आती है तो पार्टी के लिए आगे विधानसभा चुनाव में मुश्किल होगी।यूपी चुनाव ओम प्रकाश राजभर और सुभासपा के लिए अहम है।ऐसे में पार्टी बीजेपी नेतृत्व को नाराज करने की स्थिति में नहीं है।’

Read More
Next Story