
धान का कटोरा यानी चंदौली किसके नाम पर लगाएगा मुहर, कांटे का मुकाबला
यूपी के पूर्वी हिस्से में चंदौली लोकसभा सीट पर चुनाव दिलचस्प हो चला है. अगर बीजेपी के डॉ महेंद्र नाथ पांडे एक बार फिर जीतते हैं तो हैट्रिक लगा देंगे.
Chandauli Loksabha News: 7वें और अंतिम चरण में पूर्वांचल की कुल 13 लोकसभा सीटों पर एक जून को वोटिंग होनी है.इस चरण में एनडीए और इंडी ब्लॉक दोनों 100 फीसद स्ट्राइक रेट की तैयारी में जुटे हैं. 2019 के आम चुनाव में बीजेपी के खाते में 9 सीटें गई थीं. उस समय सपा और बीएसपी का गठबंधन था. लेकिन 2024 के चुनाव में तस्वीर बदली है. बीएसपी, सपा से अलग है. लेकिन सपा, कांग्रेस के साथ इंडी गठबंधन में है. यहां पर हम बात पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सटे चंदौली की करेंगे. चंदौली को धान का कटोरा कहते हैं. मतों के जरिए किसका कटोरा ज्यादा भरेगा यह अहम सवाल है. यहां से बीजेपी ने अपने दो बार के विजेता डॉ महेंद्र नाथ पांडे पर एक बार फिर भरोसा जताया है.
चंदौली का चुनाव बेहद रोचक
चंदौली का चुनाव कई वजहों से रोचक है. बीजेपी के सामने हैट्रिक बनाने की चुनौती तो सपा के सामने हैट्रिक रोकने की. बीएसपी ने उम्मीदवार उतारकर चुनाव को दिलचस्प बना दिया है. इसके साथ ही आप यह जानकर भी हैरान होंगे कि चार दशक से कांग्रेस यहां खाता नहीं खोल सकी है.अगर 2019 के नतीजों को देखें तो बीजेपी जीत दर्ज करने में कामयाब रही. लेकिन जीत का अंतर मात्र 13 हजार था. लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इस तरह की मार्जिन का विशेष मतलब नहीं होता है और यह बीजेपी के लिए चिंता की वजह है. हालांकि अगर आप पीछे के इतिहास को देखें तो 1991, 1996, 1998 में बीजेपी लगातार तीन बार जीत दर्ज कर चुकी है. यानी कि हैट्रिक लग चुका है.
चार विधानसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा
चंदौली, वाराणसी के बेहद करीब है. लेकिन विकास के नाम पर पिछड़ा हुआ.पहले चंदौली, वाराणसी की तहसील हुआ करती थी. लेकिन बाद में विकास की दुहाई देकर इसे जिला बनाया गया. लेकिन इस जिले का विकास नहीं हुआ है जिसे यहां के मतदाता कहते भी हैं. वोटर्स का कहना है कि बीजेपी आखिर इस सच्चाई से कैसे मुकर सकती है कि 2014 से केंद्र में उसकी सरकार नहीं है, बीजेपी इस बात से कैसे इनकार कर सकती है कि पिछले सात साल से वो यूपी की सत्ता में नहीं है. यहां की जनता ने बीजेपी को भरपूर मौका दिया है. अगर ऐसा ना होता तो भगवा उम्मीदवारों को मुगलसराय, सैय्यदराज, अजगरा,शिवपुर में जीत दर्ज नहीं होती. सिर्फ सकलडीहा ही एक ऐसी सीट है जहां सपा का कब्जा है.
बंटी हुई है राय
चंदौली में शहरी इलाकों में तो बीजेपी का जोर है. जब कस्बे से जुड़े मतदाताओं से सवाल होता है तो वो कहते हैं कि हमारे लिए बीजेपी सरकार ही सही है. व्यापारी, सुरक्षा का हवाला देते हैं. शिवपुर के रामधनी कहते हैं कि अब हमहन के सामने विकल्प कहां बाटे, मोदी क सरकार ठीक काम करत ह, योगी जी के राज में गुंडन पर नकेल बा. लेकिन इस तरह की भावना अल्पसंख्यक समाज में नहीं है. अल्पसंख्यक समाज के लोग कहते हैं कि सामाजिक सौहार्द खत्म हो चुका है. हालांकि इसी समाज से जुड़ी महिलाओं का रुख बीजेपी के पक्ष में नजर आता है. इस सीट पर पिछड़े समाज की आबादी भी अधिक है. सैय्यदराज के राम किशोर यादव कहते हैं कि इंडी ब्लॉक से बेहतर कोई और विकल्प नहीं है. अब जनता बदलाव चाहती है और हम सब बदलाव के लिए ही वोट करेंगे.