दलितों के नगीना बने चंद्रशेखर, जानें- यूपी की राजनीति पर कैसे पड़ेगा असर
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दलितों के 'नगीना' बने चंद्रशेखर, जानें- यूपी की राजनीति पर कैसे पड़ेगा असर

यूपी में एक सीट है नगीना. इस सीट से दलित समाज के एक बड़े शख्स चंद्रशेखर आजाद को कामयाबी मिली है. यहां हम बताने की कोशिश करेंगे कि यूपी की राजनीति कैसे प्रभावित होगी.


Chandrashekhar Azad Ravan News: आम चुनाव 2024 के नतीजों में बीजेपी को सबसे बड़ा झटका यूपी से मिला. बीजेपी जहां 70 से 72 सीट जीतने का दावा कर रही थी वो आंकड़ा 33 सीट पर सिमट गया. यूपी में जीत के सबसे बड़े हीरो अखिलेश यादव रहे जिनके खाते में 37 सीट गई है. लेकिन चंद्रशेखर आजाद की भी चर्चा हो रही है. वो अपनी पार्टी आजाद समाज पार्टी के अकेल कैंडिडेट हैं जो चुनाव जीतने में कामयाब हुए. नगीना सीट पर उन्होंने बीजेपी और सपा के प्रत्याशी को मात दी. लेकिन खास बात है कि दलित समाज के नाम पर राजनीति करने वाली मायावती की पार्टी चौथे पायदान पर चली गई. वैसे तो चंद्रशेखर की जीत को आप सांकेतिक मान सकते हैं. उनकी जीत से बीजेपी या समाजवादी पार्टी की सेहत पर असर नहीं पड़ने वाला है. लेकिन वो एक मात्र जीत यूपी की सियासत को नई दिशा दे सकती है. इसके लिए करीब 40 साल पीछे चलना होगा.

1980 के दशक का वो किस्सा

1980 के दशक की बात थी. पंजाब के होशियारपुर का एक शख्स कांशीराम इस बात को समझ रहे थे कि अगर केंद्र की गद्दी पर काबिज होना है तो यूपी को मथना पड़ेगा. उस मुहिम में एक ऐसी महिला मायावती मिलीं जो यूपीएससी की तैयारी कर रही थी. उसका मकसद भी दलित समाज के लिए कलेक्टर बनकर कुछ करना था. मायावती से रूबरू होते हुए कांशीराम ने पूछा क्या कर रही हो उन्होंने बताया की कलेक्टरी की तैयारी. कांशीराम बोले कि एक कलेक्टर बनने से क्या होता है. कुछ ऐसा करो कि सौ कलेक्टर सलाम करें. इशारा था साथ चल कर दलित समाज के लिए कुछ करने का. कांशीराम का वो वाक्य मायावती के दिमाग में बैठ गया.वो गांव गांव, गली कूचे जाकर दलित समाज को एहसास कराने लगीं कि कांग्रेस ने आप के लिए क्या किया है. मायावती की ये बातें दलित समाज के युवाओं को लुभाने लगी और एक समय आया जब मायावती ने ना सिर्फ यूपी बल्कि केंद्र की सियासत को प्रभावित किया. हालांकि कहा जाता है कि राजनीति भी बदलते समय के साथ रंग रूप बदलती रहती है. जो उस नब्ज को समझ सका वो हीरो बना रहेगा. लेकिन जिसने समय को समझने में भूल की उसकी दुर्गति होनी भी तय है.

बीएसपी के वोट बैंक में लगी सेंध

अगर आप 2024 के चुनावी नतीजों को देखें तो मायावती के कोर वोट बैंक में भी सेंध लग चुकी है. इस चुनाव में बीएसपी को महज 9.10 फीसद मत मिले हैं. और सीटों की संख्या शून्य है. अब आपको लग रहा होगा कि इसका चंद्रशेखर आजाद से क्या कनेक्शन है, सियासत के जानकार बताते हैं कि यह बात सच है कि चंद्रशेखर की पहचान यूपी में अभी बहुत अधिक नहीं है. वो पश्चिमी यूपी के कुछ जिलों तक सीमित है, लेकिन याद करिए कि मायावती भी जब संघर्ष कर रही थीं तो शुरुआती फेज में कहां सक्रिय थीं. सियासत में कोई भी दल या व्यक्ति क्या संदेश दे रहा है वो अहम है, आज की तारीख में चंद्रशेखर दलित समाज के युवाओं से कहते हैं कि मायावती ने बेशक अपने समाज के उत्थान की कोशिश की. लेकिन वो खामोश क्यों हैं.चंद्रशेखर की यह अपील काम करती नजर आती है.

क्या सोचता है मायावती का गांव
मायावती के गांव बादलपुर के दलित युवा कहते हैं कि उनके मन में मायावती जी के लिए इज्जत तो है. लेकिन अब उन्हें इस समाज के युवाओं को आगे बढ़ाना चाहिए. खासतौर से जब नगीना सीट से बीएसपी ने उम्मीदवार उतारा तो उसे लेकर यहां के युवाओं में दुख और आक्रोश दोनों था. यहां के युवा कहते थे कि मायावती जी को कम से कम नगीना छोड़ देना चाहिए था. अगर यूपी के 75 जिलों की बात करें तो दलित समाज की संख्या कमोबेश हर जगह 15 से 20 फीसद के करीब है. उनमें से हरदोई, सीतापुर, मिश्रिख, बारांबकी, अंबेडकरनगर, बिजनौर, नगीना में आबादी 25 फीसद से अधिक है. आने वाले समय में अगर चंद्रशेखर और सक्रिय तौर पर अभियान चलाते हैं तो उसका सबसे अधिक नुकसान मायावती को होना है.लिहाजा वो चंद्रशेखर के खिलाफ तल्ख टिप्पणी करती हैं. यहां एक सवाल यह भी है कि चंद्रशेखर के मजबूत होने से किसे फायदा है. इस सवाल के जवाब में जानकार क्या कहते हैं उसे समझना भी जरूरी है.

क्या कहते हैं जानकार
सियासी पंडित मानते हैं कि यूपी के नतीजों को गौर से देखें तो मायावती के कोर वोट बैंक में भी सेंध लगी है. संविधान बचाओ-आरक्षण बचाओ का नारा जिस तरह से अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने बुलंद किया उसका असर यह हुआ कि गैर जाटव के साथ साथ जाटव वोट भी कुछ हद तक सपा और कांग्रेस के खेमे में चले गए. अब चूंकि चंद्रशेखर आजाद की पार्टी की आधार कुछ जिलों तक सीमित है लिहाजा उन्हें कुछ खास फायदा नहीं मिला. लेकिन अब वो सांसद बन चुके हैं और आने वाले समय में आक्रामक धारदार अभियान के जरिए वो जाटव और गैर जाटव समाज को अपने पाले में ला सकते हैं.

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