बीजापुर में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या: पत्रकार सुरक्षा कानून पारित तो हुआ लागू नहीं
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बीजापुर में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या: पत्रकार सुरक्षा कानून पारित तो हुआ लागू नहीं

छत्तीसगढ़ में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर सख्त कानून बनाने की मांग तेज हो गयी है। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 2023 में कानून पारित तो कर दिया था लेकिन लागू अभी तक नहीं हुआ।


Mukesh Chandrakar Murder Case: छत्तीसगढ़ के बीजापुर में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या ने राज्य में पत्रकारों की सुरक्षा पर गहरी चिंता पैदा कर दी है। आरोप है कि चंद्राकर की हत्या सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार की रिपोर्टिंग के कारण हुई। इस घटना ने छत्तीसगढ़ में पत्रकार सुरक्षा कानून को लागू करने की मांग को फिर से तेज कर दिया है।


मीडियाकर्मी सुरक्षा अधिनियम 2023 की स्थिति
मार्च 2023 में, तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने छत्तीसगढ़ मीडियाकर्मी सुरक्षा अधिनियम, 2023 को पारित किया था। इस कानून का उद्देश्य पत्रकारों, उनकी संपत्तियों और कार्यालयों को हिंसा से बचाना था। हालांकि, जून 2023 में अधिसूचित होने के बाद से यह कानून ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है।
विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने इस विधेयक को और जांच के लिए प्रवर समिति को भेजने की मांग की थी। लेकिन तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत ने इसे खारिज कर दिया। दिसंबर 2023 में भाजपा ने राज्य में सत्ता संभाली, लेकिन यह कानून अब तक केवल कागजों तक ही सीमित है।

चंद्राकर की हत्या के बाद पत्रकारों का आक्रोश
मुकेश चंद्राकर का शव मिलने के कुछ दिनों बाद रायपुर प्रेस क्लब में 4 जनवरी को स्थानीय पत्रकारों ने एक बैठक की। इसमें उन्होंने मीडियाकर्मी सुरक्षा कानून को लागू करने और पत्रकारों के खिलाफ बढ़ती हिंसा पर चर्चा की। बैठक में पत्रकारों ने कहा कि कानून केवल घोषणा मात्र बनकर रह गया है। रायपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर ने कहा, "पिछली सरकार ने यह कानून बनाया, लेकिन इसे लागू करने में विफल रही। अब मौजूदा सरकार को इसे तुरंत लागू करना चाहिए या इसे मजबूत बनाकर प्रभावी तरीके से लागू करना चाहिए।"

मुख्यमंत्री और भाजपा सरकार का रुख
चंद्राकर की हत्या के बाद मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने बयान दिया, "हमारी सरकार पत्रकारों के साथ खड़ी है। हमने इस मामले में त्वरित कार्रवाई की है, और यह कार्रवाई पूरे देश में जानी जाएगी। पत्रकार सुरक्षा कानून को भी लागू किया जाएगा।" भाजपा प्रवक्ता केदार गुप्ता ने कहा, "भाजपा सरकार इसे जल्द लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। कांग्रेस सरकार ने केवल कमजोर कानून बनाया और इसे लागू करने में विफल रही। अब इसे मजबूत बनाकर लागू किया जाएगा।"
साय के करीबी एक अधिकारी ने कहा कि कुछ पत्रकारों का मानना है कि कांग्रेस द्वारा बनाया गया कानून कमजोर था। इसमें पंजीकरण और अभियोजन स्वीकृति जैसे प्रावधानों पर स्पष्टता की कमी थी। अधिकारी ने कहा, "हम इसे मजबूत बनाएंगे और प्रभावी तरीके से लागू करेंगे।"

कानून के प्रावधान और समस्याएं
2023 में पारित कानून के तहत, छत्तीसगढ़ में सभी मीडिया पेशेवरों को सरकारी डेटाबेस में पंजीकरण कराना अनिवार्य है। इसके अलावा, राज्य और जिला स्तर पर समितियों का गठन करना था, जो पत्रकारों की शिकायतें सुनेंगी, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करेंगी, और कानून के उल्लंघन पर सरकारी अधिकारियों पर जुर्माना लगा सकेंगी।
हालांकि, इस कानून में कई विवादास्पद प्रावधान थे। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आफताब आलम की अध्यक्षता में एक समिति ने 2020 में इस कानून का मसौदा तैयार किया था। प्रारंभिक मसौदे में एक राज्यव्यापी समिति के गठन और पत्रकारों के खिलाफ झूठी शिकायतों पर नौकरशाहों और पत्रकारों के कारावास का प्रावधान था। बाद में इन प्रावधानों को हटा दिया गया, लेकिन सरकारी अधिकारियों पर 25,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
समिति के सदस्य दिवाकर मुक्तिबोध ने कहा, "पिछली सरकार ने अक्टूबर 2023 में एक छह सदस्यीय समिति का गठन किया था। लेकिन अब तक इसकी एक भी बैठक नहीं हुई।"

कांग्रेस का आरोप
कांग्रेस प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, "हमने कानून बनाया और अधिसूचित किया। लेकिन भाजपा सरकार ने इसे लागू नहीं किया। यह पत्रकारों के प्रति अन्याय है। यदि भाजपा इसे कमजोर मानती है, तो उन्होंने एक साल में इसे मजबूत क्यों नहीं किया?"

पत्रकारों की सुरक्षा पर बढ़ती चिंता
मुकेश चंद्राकर की हत्या ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए मजबूत और प्रभावी कानून की तत्काल आवश्यकता है। पत्रकारों और मीडियाकर्मियों ने मांग की है कि कानून को शीघ्र लागू किया जाए और पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहां पत्रकारिता के दौरान भ्रष्टाचार और माओवाद जैसे मुद्दों से निपटना चुनौतीपूर्ण है, यह कानून पत्रकारों के लिए जीवनदायिनी साबित हो सकता है। अब यह देखना बाकी है कि भाजपा सरकार अपने वादों पर कितना खरा उतरती है।


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