एनडीए में चिराग पासवान के सुर कभी नरम कभी गरम, क्या यह है वजह?
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एनडीए में चिराग पासवान के सुर कभी नरम कभी गरम, क्या यह है वजह?

चिराग पासवान बिहार में पासवान समुदाय के नेता हैं। 2020 में हार के बाद 2024 में लोकसभा में पांच सीटों की जीत, उनकी ताकत साबित करती है।


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बिहार सरकार ने 2023 में जारी जातिगत सर्वे के आंकड़ों में दो प्रमुख जातियों का नाम सामने आया वो हैं यादव और पासवान। जनसंख्या के हिसाब से बिहार में सबसे बड़ी जाति यादव है, जो कुल आबादी का 14.26 प्रतिशत है। इसके बाद दुसाध जाति आती है, जिसका हिस्सा पासवान भी हैं। दलित वर्ग में दुसाध को सबसे प्रभावशाली माना जाता है और चिराग पासवान इस समुदाय के नेता हैं।

2020 विधानसभा चुनाव: अकेले मैदान में उतरने की कहानी

नवंबर 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के साथ सीट शेयरिंग विवाद के कारण अकेले चुनावी मैदान में उतरे।लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) ने 243 विधानसभा सीटों में 137 सीटों पर चुनाव लड़ा।9 सीटों पर दूसरे नंबर पर रहे और केवल 1 सीट पर जीत दर्ज की। कुल वोट प्रतिशत 5.66% था।यह चुनाव उनके पिता राम विलास पासवान के निधन के ठीक बाद हुआ।

लोकसभा में सफलता: पासवान वोट बैंक की ताकत

बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं, जिसमें LJP (राम विलास) को 5 सीटें मिलीं। जीत का दर था100%, यानी 5 में 5 सीटें जीतीं। वैशाली, हाजीपुर, समस्तीपुर, खगड़िया और जमुई में जीत हुई।पार्टी का वर्तमान वोट बैंक: 6.47%।चिराग ने पिता की विरासत को संभालकर साबित किया कि वे राम विलास पासवान के असली वारिस हैं।

पार्टी में विवाद और संघर्ष

2020 में राम विलास पासवान के निधन के बाद चिराग और उनके चाचा पशुपति पारस के बीच LJP की विरासत पर विवाद शुरू हुआ।2021 में पशुपति पारस ने पार्टी पर कब्जा कर चिराग को हाशिए पर धकेला।चाचा केंद्र में मंत्री बने और चिराग ने LJP (राम विलास) नई पार्टी के रूप में बनाई।2024 लोकसभा चुनाव में चिराग की पार्टी ने 5 सीटें जीतकर चाचा के गुट को पराजित किया।संपत्ति, कार्यालय और सरकारी आवास को लेकर दोनों के बीच विवाद हुआ।अब पशुपति पारस हाशिए पर हैं और राजनीति में उतना सक्रिय नहीं हैं।

आगामी विधानसभा चुनाव और सीटों की दावेदारी

बिहार में कुल 243 विधानसभा सीटें हैं। सूत्रों के मुताबिक, चिराग पासवान अपनी पार्टी की सफलता देखते हुए लगभग 30 सीटों पर दावेदारी पेश कर रहे हैं।

कभी विरोधी रुख, कभी सार्वजनिक नाराजगी

चिराग पासवान कभी-कभी सार्वजनिक मंचों पर एनडीए से अलग बयान देते रहे हैं। लेटरल एंट्री नीति का विरोध किया, जातिगत जनगणना पर अलग रुख, एससी-एसटी आरक्षण: विपक्ष का समर्थन, वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पर बीजेपी से अलग राय रही। धार्मिक मुद्दे पर किसी को नमाज या मांस की दुकानों को बंद करने का अधिकार नहीं।

चिराग पासवान की मजबूती

पासवान समाज के बड़े नेता हैं। पिता की विरासत का संभाल रखा है। 5% वोट बैंक + दलित समर्थन + युवा बिहारी छवि। 2020 में हार, 2024 में एनडीए समर्थन के साथ सफलता। यादवों के बाद बिहार में दूसरा प्रभावशाली समुदाय। वह केवल जाति के नेता नहीं हैं, बल्कि उदारवादी, विकास-केंद्रित और गठबंधन राजनीति में संतुलित नेता हैं।

पासवान समुदाय: बिहार की सामाजिक ताकत

2023 जातिगत जनगणना: 5.31% आबादी है। दलित वर्ग में सबसे प्रभावशाली है। इतिहास में योद्धा और ब्रिटिश सेना में सक्रिय हैं। आज भी अधिकतर किसान और छोटे व्यवसायी है। हाजीपुर, समस्तीपुर, वैशाली, मुजफ्फरपुर, गया में यह बिरादरी असर रखती है। LJP (राम विलास) का इस समुदाय पर मजबूत प्रभाव पहले से रहा है।

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