शॉर्टकट से नहीं घटेगा प्रदूषण,  विशेषज्ञों ने बताया असली समाधान
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शॉर्टकट से नहीं घटेगा प्रदूषण, विशेषज्ञों ने बताया असली समाधान

दिल्ली में क्लाउड सीडिंग के बाद सरकार ने हवा साफ होने का दावा किया, लेकिन वैज्ञानिकों ने कहा कि इतनी हल्की बारिश से प्रदूषण घटना असंभव है।


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दिल्ली सरकार ने मंगलवार (28 अक्टूबर) को जारी एक रिपोर्ट में दावा किया कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बादलों में बीज डालने (क्लाउड सीडिंग) के दो प्रयोगों के बाद हल्की वर्षा दर्ज की गई — नोएडा में 0.1 मिमी और ग्रेटर नोएडा में 0.2 मिमी। सरकार ने यह भी कहा कि कुछ इलाकों में वायु प्रदूषण में मामूली कमी आई है, जो इस प्रयोग की “सफलता” का संकेत देती है। लेकिन, द फेडरल से बात करने वाले कई वैज्ञानिकों ने इस दावे पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि इतनी हल्की बूंदाबांदी या फुहार, अगर हुई भी हो, तो उससे प्रदूषण पर कोई असर नहीं पड़ता, बल्कि यह स्थिति को और बिगाड़ सकती है।

“यह प्रयोग असफल होना तय था” — मौसम वैज्ञानिक गुफ़रान बेग

सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (SAFAR) के संस्थापक और मौसम वैज्ञानिक डॉ. गुफ़रान बेग ने कहा कि इस समय बादलों में बीज डालना व्यर्थ था।उन्होंने कहा “यह वह समय है जब बादल सीडिंग के लिए उपयुक्त नहीं होते। अगर कुछ बादल हैं भी, तो उनमें बीज डालने की सफलता की संभावना 5% से अधिक नहीं होती। मैंने पहले ही कहा था कि इस तरह के ‘शॉर्टकट समाधान’ से कुछ हासिल नहीं होगा। यह अधिकतर एक दिखावा है, कोई गंभीर प्रयास नहीं।”बेग ने यह भी कहा कि मौसम विभाग (IMD) के आंकड़ों में बारिश दर्ज ही नहीं है।

“अगर बारिश हुई भी, तो वह धरातल तक नहीं पहुंची होगी, ऊपर की परतों में ही वाष्पित हो गई होगी। जब तक बारिश जमीन पर गिरकर हवा में मौजूद कणों को धोकर नहीं ले जाती, तब तक वायु गुणवत्ता में कोई सुधार संभव नहीं। और ऐसा तभी होता है जब भारी बारिश हो — जो दिल्ली या एनसीआर में कहीं नहीं हुई।”

“दिल्ली की बादल परिस्थितियाँ उपयुक्त नहीं” — आईआईटीएम की थारा प्रभाकरण

भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) की वैज्ञानिक थारा प्रभाकरण, जो क्लाउड सीडिंग की विशेषज्ञ हैं, ने कहा कि उनकी टीम ने करीब 267 बादलों पर अध्ययन किया था। नियंत्रित प्रयोगों में जिन बादलों में बीज डाले गए, उनमें बारिश में लगभग 18% की वृद्धि दर्ज हुई।लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि दिल्ली में बादल कई परतों में होते हैं। इन परतों के बीच बहुत सूखी हवा होती है। अगर ऊपरी परत में बारिश भी होती है, तो वह नीचे आते-आते वाष्पित हो जाती है। साथ ही, दिल्ली के बादल बहुत उथले होते हैं, उनमें पर्याप्त जल वाष्प नहीं होता।”उन्होंने आगे कहा कि वातावरण में पहले से मौजूद सूक्ष्म कणों (एरोसोल्स) की अधिकता भी एक बड़ी बाधा है।“इन कणों से बादल की बूंदें तो बनती हैं, लेकिन वे इतनी छोटी होती हैं कि आपस में टकराकर बड़ी बूंदों का निर्माण नहीं कर पातीं। नतीजा — बारिश नहीं होती।”

“हल्की फुहार प्रदूषण बढ़ाती है, घटाती नहीं”

दिल्ली सरकार की रिपोर्ट में दावा किया गया कि पहले क्लाउड सीडिंग से पहले पीएम 2.5 का स्तर मयूर विहार में 221, करोल बाग में 230 और बुराड़ी में 229 था, जो सीडिंग के बाद क्रमशः 207, 206 और 203 हो गया।

इस पर डॉ. बेग ने कहा “यह मामूली अंतर प्राकृतिक उतार-चढ़ाव है। यह क्लाउड सीडिंग का नतीजा नहीं है। असल में बूंदाबांदी से प्रदूषण बढ़ सकता है, क्योंकि इससे हवा भारी हो जाती है, और प्रदूषक तत्व उस पर चिपककर रासायनिक प्रतिक्रियाएं करते हैं, जिससे कण और अधिक बढ़ जाते हैं।”

“ड्रिज़ल नहीं, व्यापक वर्षा चाहिए” — IITM वैज्ञानिक सचिन घुडे

IITM के वैज्ञानिक सचिन घुडे ने भी इस प्रयोग की उपयोगिता पर सवाल उठाते हुए कहा “हमने पिछले 5-7 वर्षों का डेटा देखा है। अधिक प्रदूषण वाले दिनों में दिल्ली और एनसीआर में बादल बहुत कम होते हैं केवल 20% दिनों में। ऐसे में कृत्रिम वर्षा संभव ही नहीं। उन्होंने कहा कि सर्दियों में हल्की स्थानीय बारिश तो होती है, लेकिन वह इतनी कमजोर होती है कि 8–10 घंटे में वायु की स्थिति फिर पहले जैसी हो जाती है।

“प्रदूषण सिर्फ दिल्ली का नहीं, पूरे एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों का है। इसलिए drizzle से कोई सुधार नहीं होगा। प्रदूषण को धोने के लिए पूरे क्षेत्र में भारी वर्षा की जरूरत होती है।”

“कृत्रिम वर्षा कोई स्थायी समाधान नहीं”

सभी विशेषज्ञों का मत एकजुट था कि क्लाउड सीडिंग या कृत्रिम वर्षा दिल्ली के वायु प्रदूषण के लिए न तो व्यावहारिक समाधान है और न ही दीर्घकालिक।थारा प्रभाकरण ने कहा “यह फिलहाल व्यवहारिक नहीं है। इसके लिए बहुत बड़े स्तर पर ढांचे, संसाधन और ठोस अनुसंधान रणनीति की जरूरत है।”

घुडे ने भी कहा “कोई शॉर्ट-टर्म समाधान नहीं है। प्रदूषण के स्रोतों को बंद करना ही एकमात्र उपाय है। सिर्फ दिल्ली नहीं, बल्कि पूरे एनसीआर और उससे बाहर तक उत्सर्जन प्रबंधन की जरूरत है।”

“मुख्य दोषी – वाहनों का धुआं और ट्रैफिक जाम”

डॉ. बेग ने जोर दिया कि दिल्ली में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत अब भी वाहनों से निकलने वाला धुआं है।“वाहनों की संख्या से ज़्यादा समस्या ट्रैफिक जाम की है। जब वाहन ठहर जाते हैं या धीमी गति से चलते हैं, तो सड़क पर जमा धूल दोबारा उड़ती है, जिससे प्रदूषण बढ़ता है।”

“सरकार शॉर्टकट ढूंढ रही है” — एआईपीएसएन के डी. रघुनंदन

ऑल इंडिया पीपल्स साइंस नेटवर्क (AIPSN) के पूर्व अध्यक्ष डी. रघुनंदन ने पहले ही कहा था कि सरकार असली समस्या से ध्यान भटकाने के लिए “चमत्कारी उपायों” की तलाश में है।

“समाधान आपके सामने है — सड़कों पर वाहनों की संख्या घटाइए। हमें पता है कि दिल्ली के 60% प्रदूषण का कारण वाहन हैं। जब तक निजी वाहनों को सार्वजनिक परिवहन से प्रतिस्थापित नहीं किया जाएगा, तब तक कोई भी नीति सफल नहीं हो सकती।”

वैज्ञानिकों का सर्वसम्मत मत है कि कृत्रिम वर्षा से दिल्ली की जहरीली हवा में कोई ठोस सुधार नहीं होगा। हल्की फुहारें उल्टा प्रदूषण को बढ़ा सकती हैं। जब तक सरकार स्रोतों पर लगाम नहीं लगाएगी यानी वाहन, उद्योग और निर्माण धूल — तब तक “सीडिंग” जैसी अस्थायी कोशिशें केवल दिखावा ही रहेंगी।

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