
क्या धराली की आपदा की वजह बादल फटना नहीं है? भूगर्भशास्त्री ने बताई नई थ्योरी
उत्तरकाशी जिले के धराली में आई आपदा को सोमवार 11 अगस्त को सात दिन हो गए हैं। लेकिन अभी तक यह पता नहीं चल पाया कि इस हादसे में कितने लोग मारे गए हैं। कितने लोग लापता हैं। इस बीच, आपदा की वजह को लेकर एक नई थ्योरी सामने आई है।
प्रोफेसर यशपाल सुंदरियाल उत्तराखण्ड में गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में भूगर्भ विज्ञान के प्रोफेसर रहे हैं। आजकल वह दून यूनिवर्सिटी देहरादून से जुड़े हुए हैं। उत्तरकाशी ज़िले के धराली में आपदा के पीछे की वजहें क्या हैं, इसको लेकर 'द फेडरल देश' ने उनसे बातचीत की तो इस त्रासदी के पीछे एक अलग थ्योरी पता चली।
5 अगस्त 2025। दिन मंगलवार। वो तारीख़ जिस दिन उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री के नज़दीक धराली कस्बे पर भयानक आपदा टूट पड़ी। पूरी दुनिया ने वो तस्वीरें देखीं जब पहाड़ की चोटी से आया सैलाब तलहटी में बसे धराली कस्बे को निगल गया। इस आपदा को सोमवार 11 अगस्त को सात दिन हो गए हैं। लेकिन अभी तक यह पता नहीं चल पाया कि इस हादसे में कितने लोग मारे गए हैं। कितने लोग लापता हैं। इस एक हफ्ते में सरकार का ज्यादातर ध्यान यात्रियों को हेलीकॉप्टर से निकालने में रहा। कैमरों के सामने सरकार की जय-जयकार होती रही। हालांकि शिकायतें आ रही हैं कि रेस्क्यू किए गए ज्यादातर लोग या तो बाहर के यात्री हैं या बाहर के अन्य लोग हैं। अब जो जब मीडिया के कुछ लोग वहां पैदल पहुंचे, अब फील्ड से रिपोर्ट आ रही हैं कि लोकल लोगों को तरजीह नहीं दी गई। लोग अपनों की तलाश में अभी भी भटक रहे हैं। किसी को नहीं पता कि धराली बाजार में वो जो कई फीट मलबा जमा हुआ है, उसके नीचे कितने लोग दबे हुए हैं या कितने लोग मिसिंग है।
इस बीच इस आपदा से जुड़ी एक और थ्योरी भी सामने आ रही है और वो ये कि आपदा बादल फटने से नहीं आई बल्कि किसी और ही हलचल की वजह से आई। इस हिमालय आपदा से जुड़े इस रहस्य को समझाने के लिए 'द फेडरल देश' ने भूगर्भशास्त्री प्रोफेसर यशपाल सुंदरियाल से बात की तो बहुत सी डीटेल पता चलीं।
हमने पूछा कि क्या हम आपदा के एक हफ्ते बाद ये कहने की स्थिति में हैं कि आपदा की असली वजह क्या रही होगी? तो प्रोफेसर सुंदरियाल ने कहा, "जो हमारी सोच है उसको देखकर हम हम ये मानते हैं कि क्लाउड बर्स्ट तो ये नहीं था। अभी दो दिन पहले ही इंडियन मेटोलॉजिकल डिपार्टमेंट के डायरेक्टर जनरल महापात्रा का भी कहना था कि भाई क्लाउड बर्स्ट तो यह नहीं है।"
तो थराली में आपदा बादल फटने से नहीं आई तो फिर किस वजह से आई? इस पर प्रोफेसर सुंदरियाल कहते हैं,"यह जो छोटी सी स्ट्रीम है, जिसको कि खीर गंगा बोला जाता है। ये खीर गंगा भी छोटे-छोटे छोटे ग्लेशियर से निकलती है। हर्षिल और धराली के बीच जितनी भी स्ट्रीम निकल रही हैं, ये छोटे-छोटे ग्लेशियर से निकल रही हैं।"
वह आगे कहते हैं, "जो हमारे ग्लेशियर्स है वहां पर थोड़ा बहुत बर्फ हमेशा रहती है। ग्लेशियर तो बिल्कुल सॉलिड पार्ट हुआ, जिसमें आइस हुई। जैसे ही बारिश का पानी पड़ता है, वो पिघल जाता है जल्दी। अब वो पिघलेगा तो ऊपर हर जगह खड़े पहाड़ी नहीं हैं, थोड़ा बहुत समतल जगहें भी हैं। तो वहां पर क्या है कि वहां पर पानी जमा हो जाता है। जिसको हम ये कहते हैं कि छोटी सी लेक बन गई। लेकिन ये लेक इतनी बड़ी नहीं होती है।"
प्रोफेसर सुंदरियाल कहते हैं, "ये जो डिजास्टर हुआ इसमें जो कुछ हुआ वो सेकंड्स में हुआ। उसके बाद फिर ज्यादा पानी नहीं आया। तो अचानक जो पानी इतनी वेग से आया, वो इसीलिए आया कि कहीं पर वो जमा था और जिस चीज ने उसको रोका हुआ था, वो टूटा और टूटने के बाद वो सारा पानी नीचे आया क्योंकि उसका ग्रेडियंट बहुत हाई था। उसका ढलान बहुत तीव्र है। जिसको हम हाई ग्रेडियंट बोल रहे हैं। इसका मतलब है कि बहुत ही तीव्र ढलान। तो तीव्र ढलान से पानी कम भी होगा लेकिन उसमें ताकत ज्यादा होगी। तो तीव्र ढलान से सैलाब की शक्ल में आए मिट्टी पत्थर ने बहुत ज्यादा नुकसान किया और सारा मलबा धराली के ऊपर बैठ गया। नदी इस बात का हमेशा ध्यान रखती है वो बस्ती पर अतिक्रमण न करे। यहां नदी ने अपनी ही जगह वापस ले ली।
तो अगर धराली के ऊपर कहीं ग्लेशियर के बीच कोई झील बन गई थी तो क्या हमें इसका पता क्यों नहीं चला? द फेडरल देश के इस सवाल पर प्रोफेसर सुंदरियाल ने कहा, "सबसे बड़ा दुर्भाग्य यही है कि हमारे पास कोई भी अर्ली वार्निंग सिस्टम। ऐसा हमारे पास कुछ नहीं है कि जो 3 या 4000 मीटर पर होने वाले किसी हलचल को हमको पहले से बता पाए।"