
‘धर्म नहीं, कानून सबसे ऊपर…’: केरल हाई कोर्ट ने दूसरी शादी रजिस्ट्रेशन याचिका खारिज की
Constitutional Rights: अदालत ने निर्देश दिया कि यदि याचिकाकर्ता दूसरी शादी का पंजीकरण कराने के लिए नई याचिका दायर करते हैं तो विवाह रजिस्ट्रार को पहली पत्नी को नोटिस भेजना चाहिए।
Kerala High Court: केरल हाई कोर्ट ने एक 44 वर्षीय मुस्लिम व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी, जिसने स्थानीय नागरिक निकाय द्वारा अपनी दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन करने से इनकार को चुनौती दी थी। अदालत ने कहा कि “धर्म गौण है और संवैधानिक अधिकार सर्वोपरि हैं।”
कन्नूर के निवासी इस याचिकाकर्ता ने अपनी पहली शादी पहले ही सिविल रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी के साथ पंजीकृत कर रखी थी। पहली पत्नी की सहमति से उन्होंने 2017 में दूसरी शादी की। दूसरी शादी से जन्मे दो बच्चों को संपत्ति में कानूनी अधिकार दिलाने के लिए याचिकाकर्ता और उनकी दूसरी पत्नी ने स्थानीय पंचायत में शादी का पंजीकरण कराने का प्रयास किया, लेकिन पंचायत ने उनकी याचिका नहीं सुनी। इसके बाद दोनों हाई कोर्ट पहुंचे।
अदालत का आदेश
जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन ने 31 अक्टूबर को याचिका खारिज करते हुए कहा कि अगर व्यक्तिगत कानून अनुमति देता है तो याचिकाकर्ता फिर से शादी कर सकता है। हालांकि, यदि याचिकाकर्ता अपनी दूसरी शादी का पंजीकरण करना चाहता है तो देश का कानून सर्वोपरि होगा और इस स्थिति में पहली पत्नी को सुनवाई का अवसर देना आवश्यक है। ऐसे मामलों में धर्म गौण है और संवैधानिक अधिकार सर्वोपरि हैं। दूसरे शब्दों में, यह प्राकृतिक न्याय का मूलभूत सिद्धांत है। जब पति अपनी दूसरी शादी कानून के अनुसार पंजीकृत कराता है तो इस प्रक्रिया में पहली पत्नी की भावनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि क़ुरान या मुस्लिम कानून किसी पुरुष को अपनी पहली पत्नी के जीवित रहते और विवाह मान्य होने के दौरान दूसरी महिला के साथ विवाहिक संबंध बनाने की अनुमति देता है, विशेष रूप से बिना पहली पत्नी की जानकारी के। क़ुरान और हदीस के सिद्धांत न्याय, निष्पक्षता और पारदर्शिता का पालन करने के लिए सभी वैवाहिक मामलों में निर्देश देते हैं।
पहली पत्नी की सुनवाई अनिवार्य
अदालत ने स्पष्ट किया कि पहली पत्नी को दूसरी शादी के पंजीकरण में चुपचाप देखना नहीं चाहिए, भले ही मुस्लिम व्यक्तिगत कानून कुछ परिस्थितियों में दूसरी शादी की अनुमति देता हो। अदालत ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं को भी सुनवाई का अवसर मिलना चाहिए, जब उनके पति पुनर्विवाह करें, कम से कम दूसरी शादी के पंजीकरण के चरण में।
अदालत ने निर्देश दिया कि यदि याचिकाकर्ता दूसरी शादी का पंजीकरण कराने के लिए नई याचिका दायर करते हैं तो विवाह रजिस्ट्रार को पहली पत्नी को नोटिस भेजना चाहिए। यदि वह दूसरी शादी के पंजीकरण का विरोध करती हैं तो याचिकाकर्ताओं को अदालत में जाकर दूसरी शादी की वैधता तय करने की सलाह दी जानी चाहिए।

