
तमिलनाडु में दलित छात्र पर हमला, स्कूलों में जातीय हिंसा पर चिंता
दलित छात्र पर हाल ही में हुए हमले ने स्कूल परिसरों में जाति आधारित हिंसा को रोकने के लिए न्यायमूर्ति चंद्रू समिति की सिफारिशों को लागू करने की मांग को भी तेज कर दिया है।
तमिलनाडु के तिरुनेलवेली ज़िले में 18 वर्षीय दलित छात्र चिन्णदुरई पर हाल ही में चार लोगों के एक गिरोह ने हमला किया। यह हमला उस समय हुआ,जब चिन्णदुरई को 2023 में भी एक बार पीटा गया था, जिसमें उनकी बहन भी घायल हो गई थी। दूसरे हमले में भी, उन्हें एक सुनसान जगह बुलाकर बेरहमी से मारा गया। पहले हमले के बाद मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने पूर्व न्यायाधीश के. चंद्* की अध्यक्षता में एक एकल आयोग (one-man commission) बनाया था, ताकि स्कूलों में जातीय हिंसा को रोका जा सके।
चंद्रू आयोग की रिपोर्ट (600 पेज) में बताया गया कि दक्षिण तमिलनाडु के स्कूलों में जातिवाद गहराई तक फैला हुआ है। किशोरों द्वारा हिंसा और भेदभाव की घटनाएं बढ़ रही हैं। शिक्षा प्रणाली में सामाजिक न्याय की भारी कमी है। लेकिन अब तक राज्य सरकार ने इन सिफारिशों को लागू नहीं किया है।
बढ़ती जातीय हिंसा
सामाजिक रक्षा विभाग के मुताबिक, तिरुनेलवेली बाल निरीक्षण गृह (observation home) में 22 नाबालिग लड़के जातीय हिंसा के मामलों में बंद हैं। हाल ही में कक्षा 8 के एक छात्र ने अपने सहपाठी पर दरांती से हमला कर दिया। तूतीकोरिन में दो छात्रों ने एक बस में एक अन्य छात्र पर छुरीनुमा हथियार से हमला किया, जातीय कारणों का शक जताया गया।
स्कूलों में अलर्ट
अब कई स्कूलों ने छात्रों के बैग की रोज जांच शुरू कर दी है। मोबाइल, पेन ड्राइव, धारदार चीजें और अन्य निषिद्ध वस्तुएं जब्त की जा रही हैं। तिरुनेलवेली के मुख्य शैक्षिक अधिकारी एम. शिवकुमार ने कहा कि अगर किसी छात्र के पास प्रतिबंधित वस्तुएं मिलती हैं तो पुलिस केस भी दर्ज किया जाएगा।
प्रतीकों पर बैन की मांग
कई शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार से मांग की है कि छात्रों द्वारा पहने जाने वाले धागे, तिलक आदि जातीय पहचान वाले प्रतीकों पर पाबंदी लगाई जाए। जाति के आधार पर बैठने की व्यवस्था या उपस्थिति रजिस्टर में जाति कॉलम ना हो। शिक्षकों को विद्यार्थियों को जाति से संबोधित करने पर कड़ी कार्रवाई हो।
शिक्षक और माता-पिता की अहम भूमिका
बाल अधिकार कार्यकर्ता एंड्रयू जेसुराज ने कहा कि सामाजिक समावेशिता स्कूलों से शुरू होती है। शिक्षक और माता-पिता को बच्चों को बराबरी के मूल्य सिखाने होंगे। अगर माता-पिता खुद जाति पर गर्व करते हैं तो बच्चों को जातीय भेदभाव को समझाना मुश्किल हो जाता है।
अहम सिफारिश
जस्टिस चंद्रू की रिपोर्ट में सुझाया गया कि स्कूलों में "स्कूल वेलफेयर ऑफिसर" की नियुक्ति हो। ये अधिकारी जातीय, यौन या रैगिंग संबंधी मामलों पर निगरानी रखें। SCERT (राज्य शिक्षा अनुसंधान परिषद) को शिक्षकों को सामाजिक न्याय की बेहतर समझ देने की जिम्मेदारी मिले। बीते 10 वर्षों में सरकार ने जातीय भेदभाव से निपटने के लिए कोई ठोस सर्कुलर नहीं जारी किया है।
आगे क्या?
24 अप्रैल को विधानसभा सत्र में शिक्षा मंत्री अनबिल महेश पोय्यामोझी जातीय हिंसा को रोकने के लिए नए कदमों की घोषणा कर सकते हैं। जस्टिस चंद्रू ने सिफारिशों के अमल में देरी पर टिप्पणी करने से इनकार किया।