दिल्ली में कृत्रिम बारिश की तैयारी, प्रदूषण कम करने का जादुई या अस्थायी उपाय?
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दिल्ली में कृत्रिम बारिश की तैयारी, प्रदूषण कम करने का जादुई या अस्थायी उपाय?

दिल्ली में अक्टूबर में क्लाउड सीडिंग परीक्षण की योजना है ताकि वायु प्रदूषण कम किया जा सके। लेकिन विशेषज्ञ इसे स्थायी समाधान नहीं मानते।


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Delhi Artificial Rain News: दिल्ली सरकार ने अक्टूबर के मध्य में कृत्रिम बारिश यानी क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) के अपने पहले बड़े परीक्षण की योजना बनाई है। पर्यावरण मंत्री मंजिंदर सिंह सिरसा ने इस बारे में घोषणा की। इस परियोजना के लिए सरकार ने 3.21 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं। इस योजना के तहत कुल पांच क्लाउड सीडिंग परीक्षण किए जाएंगे, जिनका उद्देश्य वायु प्रदूषण को कम करना है।

क्लाउड सीडिंग क्या है और यह कैसे काम करता है?

दिल्ली साइंस फोरम के डी. रघुनंदन ने ‘द फेडरल’ से बातचीत में इस प्रक्रिया की व्याख्या करते हुए कहा कि मूल विचार यह है कि विमान या गुब्बारे के माध्यम से ड्राई आइस जैसी कुछ कणों को बादलों में छोड़ा जाता है। ये कण बादलों में नमी को संघनित करने और वर्षा के लिए ड्रॉपलेट्स बनाने में मदद करते हैं। हालांकि, इसके लिए कई पूर्व शर्तें आवश्यक हैं।

सबसे पहले, बादलों में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। यदि बादल पतले या अस्थायी हैं, तो परिणाम नहीं मिलेगा। इसके अलावा, मौसम और वायुमंडलीय परिस्थितियां भी उपयुक्त होनी चाहिए। बादलों का स्थान वही होना चाहिए, जहाँ बारिश चाहिए। बादलों का तापमान और प्रयोग किए जाने वाले रसायन बादलों के प्रकार के अनुरूप चुने जाने चाहिए। ठंडे बादलों के लिए अलग और गर्म बादलों के लिए अलग रसायन प्रयोग किए जाते हैं।

क्लाउड सीडिंग के प्रभाव का आकलन

अधिकतर अध्ययनों से पता चला है कि यदि बारिश होने की संभावना है, तो क्लाउड सीडिंग से वर्षा में लगभग 3-5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। उदाहरण के लिए, यदि मौसम विभाग के अनुसार बारिश की संभावना 30 प्रतिशत है, तो क्लाउड सीडिंग के बाद यह बढ़कर 33-34 प्रतिशत हो सकती है। लेकिन अब तक इन परिणामों का कोई ठोस सांख्यिकीय प्रमाण नहीं है।

कौन से रसायन प्रयोग किए जाते हैं और जोखिम क्या हैं?

क्लाउड सीडिंग में मुख्य रूप से ड्राई आइस (सॉलिड कार्बन डाइऑक्साइड), सामान्य नमक और सिल्वर आयोडाइड का प्रयोग किया जाता है। ये अधिकांशतः सुरक्षित हैं, लेकिन यदि लंबे समय तक बार-बार उपयोग किया जाए तो स्वास्थ्य या पर्यावरण के लिए जोखिम पैदा हो सकते हैं।

दिल्ली में अक्टूबर में परीक्षण की चुनौतियां

रघुनंदन का मानना है कि अक्टूबर में क्लाउड सीडिंग का असर सीमित होगा क्योंकि उस समय नमी-भरे बादल कम होंगे। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण के पीक समय दिसंबर और जनवरी में हैं, लेकिन इस दौरान भी आकाश में पर्याप्त बादल नहीं होते। इसलिए, अक्टूबर में यह परीक्षण शायद वांछित परिणाम न दे।

कहां और कब हुए हैं क्लाउड सीडिंग परीक्षण?

क्लाउड सीडिंग के प्रयोग पहले अमेरिका, यूके और बीजिंग ओलंपिक्स के दौरान किए गए हैं। बीजिंग में इसका प्रयोग शहर में बारिश और प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए किया गया था। हालांकि, इन प्रयासों के प्रभाव का कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

कृत्रिम बारिश क्या वायु प्रदूषण का स्थायी उपाय है?

रघुनंदन का कहना है कि क्लाउड सीडिंग को वायु प्रदूषण का स्थायी समाधान नहीं माना जा सकता। दिल्ली सरकार इसे जादुई उपाय के रूप में प्रस्तुत कर रही है, लेकिन वास्तविक समाधान वाहनों की संख्या कम करना और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना है। दिल्ली में 60 प्रतिशत से अधिक वायु प्रदूषण वाहनों से होता है।

दीर्घकालिक उपाय

वास्तविक समाधान यह है कि निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक परिवहन का उपयोग बढ़ाया जाए। एक बस में 50 लोग बैठ सकते हैं, जबकि एक कार में केवल एक व्यक्ति। इससे प्रदूषण और ईंधन खपत में भारी कमी आती है। इसके लिए सरकार और नीति निर्माता को ऑटोमोबाइल लॉबी जैसी शक्तियों का सामना करना होगा।

दिल्ली में कृत्रिम बारिश का परीक्षण विज्ञान और तकनीकी दृष्टि से रोचक है, लेकिन इसे वायु प्रदूषण पर स्थायी प्रभाव डालने वाला उपाय नहीं माना जा सकता। दीर्घकालिक और प्रभावी उपायों के लिए वाहनों की संख्या कम करना और सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहित करना ही मुख्य रास्ता है।

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