दिल्ली का बजट: चुनावी घोषणाओं की जीत या नई आर्थिक नीति?
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दिल्ली का बजट: चुनावी घोषणाओं की जीत या नई आर्थिक नीति?

दिल्ली में 27 साल बाद बनी बीजेपी सरकार की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने बजट पेश किया। उन्होंने दिल्ली के बजट में 1 लाख करोड़ रुपये का प्रस्ताव रखा।


दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने 1 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश किया। इसमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि पूंजीगत व्यय को सीधे दोगुना कर 28,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इसे सड़क, शिक्षा, पुल, जल निकासी, परिवहन और अन्य सार्वजनिक सेवाओं में इसे लगाया जाएगा।यह बदलाव अपने आप में महत्वपूर्ण है, क्योंकि पिछले वर्षों में राजस्व व्यय को अधिक प्राथमिकता दी गई थी।

बजट एक राजनीतिक कथा

बजट को गौर से देखें, तो यह सिर्फ एक वित्तीय दस्तावेज नहीं, बल्कि एक राजनीतिक कथा है। भाजपा सरकार ने आम आदमी पार्टी के 15,000 करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय की तुलना में लगभग दोगुना आवंटन कर दिया है।

यह वही रणनीति है जो चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने अपनाई थी, बड़े बुनियादी ढांचे पर जोर और दिल्ली को ‘एक नई राजधानी’ में बदलने का संकल्प। सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ संख्या का खेल है, या वाकई एक नई शासन दृष्टि का संकेत?

आयुष्मान भारत और स्वास्थ्य पर नया जोर

दिल्ली सरकार ने अब आयुष्मान भारत योजना के तहत 10 लाख रुपये तक का बीमा कवर देने की घोषणा की है। इसमें केंद्र सरकार के 5 लाख रुपये के कवर के अलावा, दिल्ली सरकार अतिरिक्त 5 लाख रुपये का टॉप-अप देगी।

भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में भी स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार की बात की थी, लेकिन यह बजट दिखाता है कि वह इसे नए स्तर पर ले जाने की कोशिश कर रही है।

दिल्ली में स्वास्थ्य हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है। आम आदमी पार्टी की सरकार ने मोहल्ला क्लीनिक और सरकारी अस्पतालों के मॉडल को खड़ा किया था।

भाजपा का मॉडल इससे अलग है जिसमें बड़े इंश्योरेंस कवरेज और निजी अस्पतालों को अधिक भागीदारी देने पर जोर है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह योजना सरकारी और निजी अस्पतालों के बीच स्वास्थ्य सेवाओं के वितरण को कैसे प्रभावित करती है।

महिला समृद्धि योजना: चुनावी वादा या समाज कल्याण?

दिल्ली सरकार ने महिलाओं के लिए 5,100 करोड़ रुपये के बजट के साथ ‘महिला समृद्धि योजना’ शुरू की है, जिसके तहत हर महिला को 2,500 रुपये प्रति माह मिलेंगे। यह कदम सीधा-सीधा आम आदमी पार्टी के ‘महिला सम्मान योजना’ के जवाब में दिखता है, जिसमें महिलाओं को 21,00 रुपये देने का वादा किया गया था।

लेकिन असली सवाल यह है कि क्या यह आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में एक ठोस कदम है, या महज एक चुनावी वादा जिसे बजट के जरिए पूरा करने की कोशिश की जा रही है? दिल्ली में महिलाओं की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए सिर्फ नकद सहायता देना पर्याप्त नहीं होगा, रोज़गार, सुरक्षा और संस्थागत समर्थन की भी जरूरत है।

झुग्गी बस्तियों और अनधिकृत कॉलोनियों का मुद्दा

झुग्गी बस्तियों के विकास के लिए 696 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। यह भाजपा के चुनावी वादों के अनुरूप है, जिसमें उसने 1,700 अनधिकृत कॉलोनियों में मालिकाना हक देने की बात कही थी। लेकिन असली चुनौती क्रियान्वयन में है, क्या यह योजना सिर्फ कागजों तक सीमित रहेगी, या वाकई झुग्गीवासियों के जीवन में बदलाव लाएगी?

दिल्ली की राजनीति में झुग्गी बस्तियां हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रही हैं। आम आदमी पार्टी ने जहां ‘झुग्गी वही, मकान नया’ का नारा दिया था, भाजपा का जोर मालिकाना हक देने पर है। लेकिन क्या सिर्फ मालिकाना हक देने से झुग्गीवासियों की स्थिति सुधर जाएगी, या उनके लिए नए बुनियादी ढांचे और रोज़गार के अवसर पैदा करने की भी जरूरत होगी?

यमुना सफाई: प्रतीकवाद या ठोस प्रयास?

यमुना की सफाई के लिए 500 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है और चार विकेन्द्रीकृत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की घोषणा की गई है। भाजपा ने चुनावी वादों में ‘यमुना रिवाइवल प्रोजेक्ट’ की बात की थी, और अब इसे बजट में स्थान मिल गया है।

लेकिन यमुना की सफाई दिल्ली की हर सरकार के एजेंडे में रही है। पहले भी इस पर हजारों करोड़ खर्च हो चुके हैं। फिर भी नदी की हालत जस की तस बनी हुई है। सवाल यह है कि क्या इस बार की योजना में कोई ठोस बदलाव होगा, या यह भी एक और अधूरी योजना बनकर रह जाएगी?

बजट और राजनीति का समीकरण

दिल्ली का यह बजट भाजपा सरकार के लिए एक बड़ा संदेश लेकर आया है। यह सिर्फ वित्तीय प्रबंधन नहीं, बल्कि एक राजनीतिक दस्तावेज भी है। यह बजट आम आदमी पार्टी के मॉडल से अलग दिखना चाहता है, लेकिन क्या यह वाकई ज़मीन पर बदलाव ला पाएगा?

अगले कुछ महीनों में इस बजट का असली इम्तिहान होगा। क्या यह चुनावी वादों को पूरा करने की दिशा में एक ठोस कदम है, या सिर्फ एक वित्तीय घोषणा पत्र, जो कागजों में भले ही चमकदार लगे, लेकिन जनता तक पहुंचने से पहले ही धुंधला पड़ जाए?

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