मेरे मन की वही व्यथा है जो भरत जी की थी,इस तस्वीर को देखिए,त्रेतायुग रिटर्न !
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'मेरे मन की वही व्यथा है जो भरत जी की थी',इस तस्वीर को देखिए,त्रेतायुग रिटर्न !

सीएम पदभार संभालने के बाद आतिशी ने कहा कि जिस तरह से भगवान राम ने नैतिकता को स्थापित किया ठीक वैसे ही केजरीवाल जी भी कर रहे हैं।


Delhi CM Atishi News: समय को किसी सीमा में बांध नहीं सकते, वो आगे बढ़ता जाता है और हम सब उसके बारे में चर्चा करते हैं। अगर धार्मिक मान्यता के हिसाब से देखें तो वर्तमान समय कलयुग का है। एक खास दल यानी आम आदमी पार्टी के बड़े नेता,छोटे नेता और कार्यकर्ता भगवान राम और भरत की बात कर रहे हैं। इस तरह की बात क्यों की जा रही है उसे समझने से पहले दिल्ली की सीएम आतिशी ने सीएम का पदभार संभालने के बाद क्या कुछ कहा पहले उसे जानिए। दिल्ली की सीएम आतिशी पदभार संभालने के बाद प्रेस कांफ्रेंस कर रही थीं और पहली लाइन कुछ इस तरह शुरू की,' आज मेरे मन की व्यथा बिल्कुल भरत जी की तरह है, जिस तरह से भगवान श्रीराम के वनवास के बाद भरत जी ने 14 साल तक खड़ाऊं रखकर अयोध्या की शासन सत्ता संभाली ठीक वैसे ही वो भी अगले चार महीने के लिए दिल्ली की सत्ता संभाल रही हैं।



अपने पिता के आदेश पर भगवान राम वनगमन किए, उन्होंने नैतिकता और मर्यादा की मिसाल पेश की ठीक वैसे ही अरविंद केजरीवाल ने भी नैतिकता और मर्यादा की मिसाल पेश की है। उन्होंने इस्तीफा देकर यह बताया कि कुर्सी उनके लिए अहम नहीं है। दो साल से बीजेपी लगातार उन्हें परेशान कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देते हुए जब कहा कि गिरफ्तारी दुर्भावना के तहत की गई है तो कोई दूसरा शख्स गद्दी पर फिर काबिज हो जाता। लेकिन अरविंद जी ने कुर्सी का मोह नहीं किया। हमें उम्मीद है कि फरवरी के महीने में जनता उन्हें एक बार फिर अपार प्रेम देगी और वो कुर्सी पक बैठेंगे। तब तक अरविंद जी की कुर्सी इस कमरे में ऐसे की रहेगी। लेकिन यहीं से कई सवाल भी खड़े होते हैं। मसलन अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी जब हुई तो उन्होंने पद त्याग कहां किया था। उन्होंने तो बाकायदा जेल से सरकार चलाई।

केजरीवाल के विरोधी कहते हैं कि यह तो कुछ वैसी ही बात है कि हम स्वयं को क्लीन चिट देंगे। जब मन में आएगा इस्तीफा देंगे, जब मन में आएगा गद्दी पर बैठेंगे। जब दिल्ली की आतिशी सीएम कहती हैं कि चार महीने के लिए वो कुर्सी संभाल रही हैं तो वो किसे बरगलाने का काम कर रही हैं। दिल्ली में विधानसभा का चुनाव तो जनवरी फरवरी में होना ही है। दरअसल यह जनता के जज्बात से खेलने की कोशिश हो रही है। अगर भगवान राम के आदर्शों पर चलने की बात होती तो अरविंद केजरीवाल को यह कहना चाहिए कि जब तक वो बेदाग नहीं साबित होते हैं तब तक कुर्सी पर नहीं बैठेंगे। जब उनके वकील कहते हैं कि यह केस 10 साल, 20 साल तक चल सकता है तो क्या चार महीने में जनता के फैसले पर वो खुद को बेदाग साबित करेंगे। अगर ऐसा है तो देश के बाकी नेताओं के खिलाफ जब मुकदमे चले तो वे खुद अपनी सुविधा के मुताबिक बेदाग साबित कर गद्दी पर काबिज हो जाते।

दिल्ली की सियासी हलचल पर नजर रखने वाले कहते हैं कि भारत की राजनीति में अगर सबसे अधिक भावनाओं का दोहन किसी दल ने किया है तो वो आम आदमी पार्टी है। आम आदमी पार्टी का हर छोटा बड़ा नेता खुद को मान बैठा है कि वो पाक साफ और निर्दोष हैं. उनके खिलाफ साजिश की जाती है। देश के दूसरे नेताओं में नैतिकता और त्याग की कमी है। लेकिन जब इन्हीं आदर्शों को जमीन पर उतारने की बात होती है तो सिद्धांतों से किनारा कस लेते हैं। मसलन हरियाणा विधानसभा चुनाव में टिकट वाले मसले को देखिए। आम आदमी पार्टी के नेता 9 टिकट की ख्वाहिश रख रहे थे। लेकिन जब कांग्रेस से बात नहीं बनी तो सभी 90 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। यानी कि लेन देने का मसला इस दल के लिए एकतरफा होता है। दरअसल इस पार्टी का मकसद है कि नैतिकता का चोला, खुद को पीड़ित बताते हुए जितना अधिक हो सके सियासी फसल को काटते रहो।

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