प्रदूषण के खिलाफ जंग में अब कृत्रिम बारिश से आस, क्या है क्लाउड सीडिंग?
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प्रदूषण के खिलाफ जंग में अब कृत्रिम बारिश से आस, क्या है क्लाउड सीडिंग?

दिल्ली के आसमां पर इस समय जहरीली हवा का कब्जा है। इस समस्या से निजात पाने के लिए दिल्ली सरकार ने कृत्रिम बारिश के लिए केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखी है।


What is Artificial Rain: दिल्ली-एनसीआर का दम फूल रहा है। धुंध की मोटी परत छाई हुई है जिसमें जहरीले पीएम 2.5, पीएम 10 के कण हैं। स्मॉग के कहर से निपटने के लिए सभी एजेंसियां सक्रिय भी हैं। लेकिन जमीन पर असर कम नजर आ रहा है। दिल्ली सरकार के पर्यावरण मंत्री ने कहा कि कृत्रिम बारिश के लिए उन्होंने केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखी है। इसके साथ ही उन्होंने प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में सहयोग ना करने के लिए बीजेपी को कोसा। उन्होंने यह भी कहा कि जो कुछ हमारे यानी दिल्ली सरकार के वश में है कर रहे हैं। हम केंद्र से अपील करते हैं कि मौजूदा हालात को देखते हुए मेडिकल इमरजेंसी घोषित करे।

पूरा उत्तर भारत मेडिकल इमरजेंसी की चपेट में है...भारतीय जनता पार्टी की सरकार को इस तरह से देश के लोगों की जान खतरे में डालने का हक नहीं है। उसे काम करना ही होगा। दिल्ली सरकार अपने स्तर पर जो भी काम कर सकती है, कर रही है। हम सितंबर से काम कर रहे हैं। केंद्र सरकार इस तरह चुप नहीं रह सकती। कृत्रिम बारिश अब दिल्ली के लिए आपातकालीन जरूरत बन गई है..."

क्या होता है कृत्रिम बारिश

कृत्रिम बारिश कराने के लिए तय ऊंचाई पर वैज्ञानिक सिल्वर आयोडाइड, शुष्क बर्फ और साधारण नमक को बादलों में फैलाया जाता है। इसे क्लाउड सीडिंग का नाम दिया गया है। इसके लिए हवाई जहाज की मदद ली जाती है। लेकिन इसका इस्तेमाल जरूरी नहीं है। इसे गुब्बारे, रॉकेट और ड्रोन से भी कर सकते हैं। लेकिन सबसे बड़ी सावधानी बादलों के चयन में होती है। सर्दियों के सीजन में बादलों में नमी नहीं होती है। मौसम के शुष्क होने से हो सकता है कि बारिश की बूंदे भाप बनकर उड़ जाए। जहां तक आंकड़ों की बात है तो क्लाउड सीडिंग और बारिश को लेकर पर्याप्त आंकड़ा नहीं है। दूसरी बात ये कि इससे प्रदूषण कितना कम होगा इस संबंध में भी आंकड़ों की कमी है। यानी कि क्लाउड सीडिंग विकल्प तो हैं लेकिन इसे पुख्ता नहीं कह सकते।

इसके अलावा मान लीजिए कि आप दिल्ली और एनसीआर के आसमां पर क्लाउड सीडिंग कराते हैं और जब बारिश का वक्त आया तो हवा की रफ्तार और दिशा किसी दूसरी तरफ हो गई। यानी कि दो तरफा नुकसान उठाना पड़ सकता है। कृत्रिम बारिश कराने में करीब 10 से 15 लाख रुपये का खर्च आता है।


दिल्ली सरकार का मानना है कि ग्रेप चार के लागू होने के बाद भी अगर सुधार नहीं हो रहा है तो कुछ और कदम उठाने होंगे। ऑड ईवन के सवाल पर उन्होंने कहा कि इसकी संभावना पर विचार किया जा रहा है। लेकिन जानकारों का कहना है कि जब तक धूल की मोटी परत नहीं हटेगी तब तक इस विकल्प का फायदा नहीं है। इसके लिए लगातार पानी का छिड़काव किया जा रहा है। इस समय कृत्रिम बारिश ही विकल्प नजर आ रहा है।ऐसा नहीं है कि कृत्रिम बारिश की बात पहली बार हुई हो।

पिछले साल भी नवंबर के महीने में नकली बादलों से बारिश कराने की योजना बनाई गई थी। आईआईटी कानपुर को जिम्मेदारी भी सौंपी गई। लेकिन जमीन पर योजना नहीं उतर सकी। कृत्रिम बारिश के लिए हवा की गति और दिशा को समझना जरूरी है। इसके साथ ही आसमान में करीब 40 फीसद बादल हो। उनमें नमी भी हो। अगर हवा की गति, दिशा या नमी में ऊपर नीचे हुआ तो समझिए कि सारे प्रयास बेकार चले जाएंगे। सबसे बड़ी बात यह है कि अगर बारिश अधिक हो गई तो उससे दूसरे तरह की परेशानी आ सकती है

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