दिल्ली स्कूल फीस नियम
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दिल्ली शिक्षा बिल 2025: पारदर्शिता और जवाबदेही की ओर कदम

दिल्ली सरकार ने शिक्षा बिल 2025 पास कर निजी स्कूलों की फीस पर नियंत्रण की दिशा में बड़ा कदम उठाया है.


दिल्ली सरकार ने राजधानी के सभी प्राइवेट स्कूलों में फीस निर्धारण और नियमन के लिए "दिल्ली स्कूल शिक्षा (फीस निर्धारण और नियमन में पारदर्शिता) विधेयक, 2025" पेश किया है. यह कानून फीस बढ़ोतरी में पारदर्शिता लाने और अभिभावकों को निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा बनाने का दावा करता है.

शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने कहा कि यह कानून मनमानी फीस वृद्धि को रोकने और स्कूलों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए लाया गया है. यह विधेयक मानसून सत्र में दिल्ली विधानसभा से पारित हुआ है और अब यह सीधे तौर पर दिल्ली के 1,700 निजी स्कूलों पर लागू होगा. इससे पहले 1973 के नियम केवल 300 स्कूलों पर लागू होते थे.

फीस निर्धारण में अभिभावकों की भूमिका

इस विधेयक के तहत स्कूलों में फीस निर्धारण और शिकायत निवारण समितियों का गठन किया जाएगा. इन समितियों में अभिभावकों, शिक्षकों, स्कूल प्रबंधन और सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि फीस बढ़ाने का निर्णय अब एकतरफा न होकर सामूहिक रूप से लिया जाए.

अभिभावकों के अनुसार, यह कदम स्वागत योग्य है, लेकिन वे अधिक जवाबदेही और सार्वजनिक परामर्श की भी मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि पारदर्शिता तभी प्रभावी होगी जब सरकार और स्कूल प्रशासन पूरी तरह से अपनी नीतियों और खर्चों को सार्वजनिक करें.

विधेयक की मुख्य प्रावधान

विधेयक में फीस प्रस्ताव को तय करने के लिए स्पष्ट समयसीमा दी गई है.

स्कूल-स्तरीय समिति द्वारा 15 जुलाई तक फीस प्रस्ताव को मंजूरी दी जानी चाहिए.

जिला-स्तरीय समिति को इसे 30 जुलाई तक पारित करना होगा.

सितंबर तक अंतिम निर्णय लिया जाएगा.

अगर 45 दिनों के भीतर सहमति नहीं बनती है, तो अपील समिति हस्तक्षेप करेगी और अंतिम फैसला लेगी.

उल्लंघन पर सजा

यदि कोई स्कूल सरकार की मंजूरी के बिना फीस बढ़ाता है, तो उस पर 1 लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. साथ ही यदि स्कूल अतिरिक्त वसूली गई फीस वापस नहीं करता है, तो उस पर दोगुना दंड भी लगाया जाएगा.

इसके अलावा, शिक्षा निदेशक को भी विशेष अधिकार दिए गए हैं ताकि वे उल्लंघन करने वाले स्कूलों पर तुरंत कार्रवाई कर सकें.

अभिभावकों और सरकार के बीच मतभेद

जहाँ सरकार का दावा है कि यह विधेयक स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाएगा और पारदर्शिता लाएगा, वहीं कई अभिभावक समूहों का कहना है कि इस कानून को लागू करने से पहले जनसुनवाई और व्यापक परामर्श होना चाहिए था. उनका तर्क है कि केवल समिति बनाने से समस्या हल नहीं होगी, जब तक कि स्कूल प्रबंधन को खर्चों और बजट का पूरा ब्योरा सार्वजनिक करने के लिए बाध्य न किया जाए.

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