दिहाड़ी मजदूरों पर छाये संकट के बादल, प्रदूषण ने छीनी रोजी-रोटी!
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दिहाड़ी मजदूरों पर छाये संकट के बादल, प्रदूषण ने छीनी रोजी-रोटी!

गंभीर वायु प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली में उठाए गए बड़े कदमों ने हज़ारों दिहाड़ी मज़दूरों को संकट में डाल दिया है. क्योंकि उनमें से ज़्यादातर निर्माण कार्यों में लगे हुए हैं.


Delhi NCR air pollution: दिल्ली-एनसीआर में खराब होती वायु गुणवत्ता से निपटने के लिए सरकार ने प्रतिबंध लगाए हैं. वहीं प्रदूषण रोधी उपायों का खामियाजा निर्माण गतिविधियों में शामिल दिहाड़ी मजदूरों को भुगतना पड़ रहा है. जिसकी वजह से उनका जीवन ठहर गया है. दिहाड़ी पर काम करने वाले श्रमिकों का कहना है कि उन्हें चिंता है कि उनके बच्चे भूख से मर जायेंगे.

वर्तमान GRAP-4 उपायों के अंतर्गत निर्माण और विध्वंस गतिविधियों (C&D) पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जो दिल्ली के कई भागों में "गंभीर से अधिक" वायु गुणवत्ता (वायु गुणवत्ता सूचकांक 450 से ऊपर) दर्ज किए जाने के बाद लागू हुआ.

दो बच्चों की 45 वर्षीय मां सुमन कहती हैं कि अगर हम घर पर बैठे रहेंगे तो क्या खाएंगे? हम अपने बच्चों को क्या खिलाएंगे?" उन्होंने हाल ही में सरकारी सहायता पाने की उम्मीद में अपना लेबर कार्ड रिन्यू करवाया था. लेकिन उनका कहना है कि यह एक निरर्थक प्रयास रहा है. हमारे पास कोई सरकारी नौकरी नहीं है, जहां वेतन अपने आप मिल जाता है. हम रोजाना की कमाई पर जीवित रहते हैं और बिना काम के हमारे पास कुछ भी नहीं है.

मंगलवार को राष्ट्रीय राजधानी में घना धूसर कोहरा छाया रहा और एक्यूआई 488 तक पहुंच गया. दिल्ली की वायु गुणवत्ता रविवार को 'बेहद खराब' श्रेणी में पहुंच गई, जिसके कारण अधिकारियों को सोमवार को ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) के तहत चरण IV के उपाय लागू करने पड़े.

इन उपायों में निर्माण और तोड़फोड़ की गतिविधियों पर प्रतिबंध, आवश्यक वस्तुओं को ले जाने वाले या स्वच्छ ईंधन का उपयोग करने वाले ट्रकों को छोड़कर अन्य ट्रकों के प्रवेश पर प्रतिबंध और स्कूलों को बंद करना शामिल है. कार्यालयों को भी अपने कर्मचारियों के लिए बदलाव करने के निर्देश दिए गए हैं.

63 वर्षीय निर्माण मजदूर बाबू राम के लिए सीएंडडी गतिविधियों पर प्रतिबंध ने उनकी पहले से ही खराब वित्तीय स्थिति को और भी बदतर बना दिया है. उन्हें अपनी पत्नी, बेटे, बहू और पोते-पोतियों का भरण-पोषण करना है, साथ ही उन पर 3 लाख रुपए का कर्ज भी है. वे कहते हैं कि मेरे जैसे लोगों के लिए कोई पेंशन नहीं है. लाडली बहना जैसी योजनाएं भ्रष्टाचार से भरी हुई हैं. बिचौलिए सब कुछ ले लेते हैं और हमें कुछ नहीं मिलता. अगर मैं काम नहीं कर पाऊंगा तो मेरा परिवार नहीं बचेगा.

इसी तरह 42 वर्षीय मजदूर राजेश कुमार कहते हैं कि बिहार के उनके गांव में उनका परिवार उनके द्वारा घर भेजे जाने वाले पैसों पर निर्भर है. वे कहते हैं कि मैंने अभी तक शादी नहीं की है. क्योंकि मेरे ऊपर कई जिम्मेदारियां हैं, जिसमें मेरी बहन की शादी भी शामिल है, जिसके कारण मुझ पर 6 लाख रुपये का कर्ज हो गया है. उन्होंने कहा कि ऐसा हर साल होता है, प्रदूषण के कारण दिल्ली में हाहाकार मच जाता है. लेकिन समस्या का समाधान करने के बजाय सरकार हम जैसे लोगों के लिए और अधिक बाधाएं खड़ी करती है.

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