
दिल्ली की जहरीली हवा और दिमाग पर खतरा: बढ़ता AQI बना मानसिक संकट
दिल्ली में AQI 461 तक पहुंच गया है। रिसर्च बताती है कि PM2.5 प्रदूषण से डिप्रेशन, तनाव, डिमेंशिया और एंग्जायटी का खतरा तेजी से बढ़ता है।
Delhi NCR Air Pollution : राजधानी दिल्ली की हवा ने रविवार को प्रदूषण का नया रिकॉर्ड बना दिया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, दिल्ली का औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 461 दर्ज किया गया, जो ‘सीवियर’ श्रेणी में आता है।
हालात इतने खराब रहे कि वजीरपुर इलाके में AQI 500 तक पहुंच गया, जबकि नोएडा में यह 490 के पार चला गया। सोमवार को भी दिल्ली का AQI करीब 450 के आसपास बना रहा।
सांस ही नहीं, दिमाग पर भी पड़ता है असर
अब तक वायु प्रदूषण को सांस और दिल की बीमारियों से जोड़कर देखा जाता रहा है, लेकिन नई रिसर्च बताती है कि प्रदूषण मानसिक स्वास्थ्य को भी गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, लंबे समय तक जहरीली हवा में रहने से तनाव (Stress), मानसिक बेचैनी, डिप्रेशन, डिमेंशिया और अल्ज़ाइमर जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।
रिसर्च में PM2.5 और डिप्रेशन का सीधा संबंध
‘जर्नल ऑफ एनवायरनमेंटल इकोनॉमिक्स एंड मैनेजमेंट’ में प्रकाशित एक अध्ययन में सामने आया है कि “PM2.5 के संपर्क का असर अलग-अलग मानसिक बीमारियों पर अलग तरीके से पड़ता है, लेकिन डिप्रेशन और तनाव पर इसका प्रभाव सबसे ज्यादा होता है।”
रिसर्च के मुताबिक, एंग्जायटी की तुलना में डिप्रेशन और स्ट्रेस PM2.5 के प्रति ज्यादा संवेदनशील हैं।
उम्र के हिसाब से असर अलग-अलग
इस अध्ययन में यह भी बताया गया कि प्रदूषण का मानसिक असर उम्र और लिंग के अनुसार बदलता है।
18 साल से कम उम्र के बच्चे मानसिक रूप से सबसे कम प्रभावित पाए गए
18 से 65 साल के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए
65 साल से ऊपर के लोगों में डिप्रेशन का असर दिखा, लेकिन यह सांख्यिकीय रूप से बहुत मजबूत नहीं था
कामकाजी उम्र के लोग सबसे ज्यादा जोखिम में
रिसर्च के अनुसार, वर्किंग एज ग्रुप में डिप्रेशन, एंग्जायटी, तनाव का असर सामान्य आबादी की तुलना में कहीं ज्यादा देखा गया। एक आंकड़े के मुताबिक, PM2.5 में 1 यूनिट की बढ़ोतरी से तनाव के मामलों में 1.7 की वृद्धि दर्ज की गई।
यूरोपियन एजेंसी की चेतावनी
यूरोपियन एनवायरनमेंट एजेंसी (EEA) ने भी चेतावनी दी है कि वायु प्रदूषण और मानसिक बीमारियों के बीच सीधा संबंध है।
एजेंसी के अनुसार डिप्रेशन, सोचने-समझने की क्षमता में गिरावट, आत्महत्या और सेल्फ-हार्म का खतरा भी प्रदूषण से जुड़ा हो सकता है।
बच्चों और बुजुर्गों पर भी असर
अन्य अध्ययनों में यह भी सामने आया है कि बचपन और किशोरावस्था में ट्रैफिक प्रदूषण के संपर्क से किशोरों में एंग्जायटी बढ़ती है
जीवन के पहले साल में PM2.5 के संपर्क से ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर का जोखिम भी बढ़ सकता है
खतरे की घंटी
विशेषज्ञ मानते हैं कि दिल्ली जैसे शहरों में लगातार खतरनाक स्तर का प्रदूषण सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बड़ा खतरा बन चुका है। ऐसे में प्रदूषण नियंत्रण के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता और इलाज पर भी ध्यान देना जरूरी हो गया है।
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