थिरुपरनकुंद्रम दीपम विवाद: जानें क्या है प्राचीन स्तंभ का दावा, जिसे विशेषज्ञों ने किया खारिज
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थिरुपरनकुंद्रम दीपम विवाद: जानें क्या है प्राचीन स्तंभ का दावा, जिसे विशेषज्ञों ने किया खारिज

पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार, थिरुपरनकुंद्रम की पहाड़ी की चोटी पर मदुरई नायक काल (लगभग 300 साल पुराना) का एक अभिलेख मौजूद है, जिसमें स्पष्ट लिखा है कि दीप कहां जलाया जाना चाहिए।


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मदुरई के थिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी पर स्थित एक पत्थर के स्तंभ पर दीप जलाने की अनुमति देने की मांग ने तमिलनाडु में नया विवाद खड़ा कर दिया है। हिंदू संगठन के सदस्य राम रविकुमार द्वारा दायर याचिका के बाद यह विवाद तेज हो गया है, जबकि पुरातत्वविदों, इतिहासकारों और आगम विशेषज्ञों ने स्पष्ट कर दिया है कि यह स्तंभ किसी भी प्रकार का पवित्र ढांचा नहीं है।

विशेषज्ञों की आपत्ति

याचिकाकर्ता और दक्षिणपंथी समूहों का दावा है कि दरगाह से 15 मीटर दूर स्थित इस पत्थर के स्तंभ पर दीप जलाया जाना चाहिए। लेकिन मंदिर अधिकारियों और विशेषज्ञों का कहना है कि इतिहास में कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं मिलता कि इस स्तंभ पर कभी दीप प्रज्ज्वलित किया गया हो।

थिरुपरनकुंद्रम स्तंभ से जुड़े दावे

थिरुपरनकुंद्रम तमिल देवता भगवान मुरुगन का प्रथम पवित्र स्थल माना जाता है। कार्तिगई दीपम के अवसर पर कई दशकों से मंदिर प्रांगण में दीप जलाने की परंपरा चलती आ रही है। इस पहाड़ी पर मंदिर, दरगाह और जैन गुफाएं भी स्थित हैं। स्थानीय लोगों और भक्तों ने बताया कि कई वर्षों से पूजा-अर्चना का दीप उच्चिपिल्लैयर मंदिर के पास स्थित दीप मंडपम में जलाया जाता है। जबकि दक्षिणपंथी समूह जिस प्राचीन पत्थर के स्तंभ का दावा कर रहे हैं, वह मंदिर के दूसरी ओर दरगाह के निकट स्थित है और उस पर कभी दीप नहीं जलाया गया।




विशेषज्ञों ने बताए तथ्य

पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार, थिरुपरनकुंद्रम की पहाड़ी की चोटी पर मदुरई नायक काल (लगभग 300 साल पुराना) का एक अभिलेख मौजूद है, जिसमें स्पष्ट लिखा है कि दीप कहां जलाया जाना चाहिए। लेकिन दक्षिणपंथी समूह जिस स्तंभ पर दीप जलाने की मांग कर रहे हैं, वह ऐतिहासिक अभिलेखों में किसी पवित्र उपयोग से नहीं जुड़ा है।

ब्रिटिश काल के सर्वे स्तंभ

तमिलनाडु पुरातत्व विभाग के पूर्व सहायक निदेशक सी. संथालिंगम ने The Federal से कहा कि पहाड़ी पर तीन समान पत्थर के स्तंभ हैं और ये ब्रिटिश काल के सर्वे स्टोन जैसे दिखते हैं। उन्होंने बताया कि एक स्तंभ दरगाह के पास है। दूसरा टूटा हुआ स्तंभ पहले के पास मिलता है। तीसरा स्तंभ उनसे कुछ सौ मीटर दूर स्थित है। संथालिंगम ने कहा कि संबंधित स्तंभ में थियोडोलाइट सर्वे उपकरण रखने की सुविधा दिखती है, जो भू-सर्वेक्षण के लिए ब्रिटिश काल में उपयोग की जाती थी। उन्होंने कहा कि इन स्तंभों के ज्यामितीय चिह्न दीप जलाने से संबंधित नहीं हैं। इसके विपरीत उच्चिपिल्लैयर मंदिर के पारंपरिक दीप स्तंभ पर दीप प्रज्ज्वलन से जुड़ा अभिलेख मौजूद है।

आगम परंपरा ने भी स्तंभ के दावे को बताया गलत

आगम विशेषज्ञ सत्यवेल मुरुगनार ने बताया कि विजयनगर काल से चली आ रही परंपरा के अनुसार दीप उच्चिपिल्लैयर मंदिर के पास 90-डिग्री के संरेखण में जलाया जाता है, ताकि दीप और मंदिर गोपुरम एक सीध में आएं। इतिहासकार वी. मरप्पन ने कहा कि विवादित स्तंभ इस 90-डिग्री संरेखण के पूरी तरह विपरीत दिशा में स्थित है, इसलिए इसका दीप प्रज्ज्वलन से कोई संबंध नहीं हो सकता।

वकील ने जताई असहमति

The Federal ने जब विशेषज्ञों की बातों के साथ याचिकाकर्ता राम रविकुमार के वकील अरुण स्वामीनाथन से बात की तो उन्होंने कहा कि संबंधित स्तंभ क्षतिग्रस्त है और इसे सर्वे स्तंभ नहीं माना जा सकता। उन्होंने दावा किया कि स्तंभ के शीर्ष पर कभी पत्थर का दीप पात्र (cup) था। जिसे बाद में “कुछ लोगों की साजिश” से हटा दिया गया। सरकार की आज की “हरकतों” को देखते हुए पुराने समय में भी हेरफेर होने से इनकार नहीं किया जा सकता। जब उनसे पूछा गया कि क्या कोई ऐतिहासिक प्रमाण है कि इस स्तंभ पर दीप जलाया जाता था तो उन्होंने कहा कि परंपरा समय के साथ बदल गई होगी और वे इसे फिर से स्थापित करना चाहते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि स्तंभ के आधार (basement) से यह सिद्ध होता है कि यह सर्वे स्तंभ नहीं था।

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