फिलहाल ध्वस्त होने से बच गया अल-फलाह यूनिवर्सिटी के चेयरमैन का पुश्तैनी घर, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की रोक
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शुक्रवार को हाई कोर्ट द्वारा दिए गए स्टे आदेश के बाद अब मामला दोबारा अदालत में आने तक महू कैंटोनमेंट बोर्ड उस स्थल पर किसी भी तरह की तोड़फोड़ या संरचनात्मक कार्रवाई नहीं कर सकेगा।

फिलहाल ध्वस्त होने से बच गया अल-फलाह यूनिवर्सिटी के चेयरमैन का पुश्तैनी घर, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की रोक

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने ‘मौलाना की बिल्डिंग’, जो अल फलाह यूनिवर्सिटी के चेयरमैन जवाद सिद्दीकी का पुश्तैनी घर है के विध्वंस पर रोक लगा दी है। न्यायालय ने यह टिप्पणी भी की कि इस घर पर अंतिम नोटिस लगभग 30 साल पहले जारी किया गया था।


मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने शुक्रवार को अल फलाह यूनिवर्सिटी के चेयरमैन जवाद सिद्दीकी से जुड़े महू स्थित एक आवास के विध्वंस को अस्थायी रूप से रोकते हुए 15 दिन का अंतरिम स्टे दे दिया। जस्टिस प्रणय वर्मा ने विध्वंस नोटिस की जांच करते हुए कहा कि पहले नोटिस 1996-97 में जारी किए गए थे।

अदालत ने कहा, “यदि लगभग 30 साल बाद किसी कार्रवाई की जरूरत समझी गई, तो याची को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए था।”

ताजे नोटिस का संबंध ‘रेड फोर्ट ब्लास्ट’ जांच से जुड़ी जांच से

ताजा विध्वंस नोटिस ऐसे समय आया है जब सिद्धीकी परिवार एक बहुराज्यीय धोखाधड़ी केस की दोबारा जांच के घेरे में है। यह जांच तब तेज हुई जब हरियाणा के फरीदाबाद स्थित अल फलाह मेडिकल कॉलेज के कम से कम दो डॉक्टरों का नाम एक संदिग्ध आतंकी मॉड्यूल से जुड़ा बताया गया, जिसे 10 नवंबर को दिल्ली के लाल किले के पास हुए विस्फोट के पीछे माना जा रहा है।

चार मंजिला यह इमारत, जिसे स्थानीय लोग “मौलाना की बिल्डिंग” के नाम से जानते हैं, महू के कायस्थ मोहल्ले की सबसे पहचानने योग्य संरचनाओं में से एक है। हाई कोर्ट का स्टे अब कैंटोनमेंट बोर्ड को आगे की किसी भी कार्रवाई से रोकता है।

याचिका क्या कहती है?

यह स्टे अब्दुल माजिद की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया। माजिद अपने परिवार के साथ इस इमारत में रहते हैं। याचिका में कहा गया है कि कैंटोनमेंट बोर्ड के नोटिस में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि इमारत का कौन-सा भाग अवैध है।

माजिद का कहना है कि बोर्ड ने 1996-97 के दस्तावेजों पर भरोसा किया, जबकि वर्तमान स्थिति का कोई सर्वे या मूल्यांकन नहीं किया गया, जिससे विध्वंस नोटिस का आधार अस्पष्ट है।

सुप्रीम कोर्ट की 2025 गाइडलाइंस का उल्लंघन?

अधिवक्ता अजय बगड़िया ने अदालत को बताया कि नोटिस सुप्रीम कोर्ट की 2025 की उन गाइडलाइंस का उल्लंघन करता है, जिनमें विध्वंस से पहले 15 दिन का जवाब देने का समय अनिवार्य है। लेकिन बोर्ड ने सिर्फ 3 दिन की मोहलत दी।

उन्होंने यह भी बताया कि लगभग तीन दशक पहले भी ऐसे नोटिस भेजे गए थे, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

संपत्ति का स्वामित्व भी विवाद में

उन्होंने कहा, “यह घर मूल रूप से मोहम्मद हम्माद सिद्दीकी का था, जो जवाद सिद्दीकी के पिता थे। बाद में उन्होंने इसे अपने बेटे को ट्रांसफर किया। जवाद ने आगे यह संपत्ति अब्दुल माजिद को उपहार में दे दी, और अब माजिद खुद को वैध मालिक बताते हैं।”

इस सप्ताह की शुरुआत में जवाद के छोटे भाई हमूद अहमद सिद्दीकी को हैदराबाद से गिरफ्तार किया गया। वह लगभग 25 साल से फरार थे। उन पर 2000 से जुड़े कई निवेश धोखाधड़ी मामलों के आरोप हैं, जिनमें रिटायर्ड सेना और एमईएस कर्मियों को फर्जी निवेश योजनाओं के जरिए ठगा जाना शामिल है

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