एकतानगर का विकास, नर्मदा की उपेक्षा, गुजरात मॉडल पर सवाल
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एकतानगर का विकास, नर्मदा की उपेक्षा, गुजरात मॉडल पर सवाल

गुजरात के एकतानगर में 1,140 करोड़ रुपए की परियोजनाओं का उद्घाटन हुआ, पर नर्मदा ज़िले के आदिवासी इलाकों में अब भी सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएँ नहीं हैं।


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गुरुवार (30 अक्टूबर) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा ज़िले में स्थित एकतानगर (Ektanagar) में ₹1,140 करोड़ की परियोजनाओं का उद्घाटन किया। यह वही इलाका है जहां स्टैच्यू ऑफ यूनिटी भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर ऊँची प्रतिमा 2018 में बनी थी। हर साल 31 अक्टूबर को मोदी यहाँ पहुँचते हैं, ताकि पटेल जयंती यानी राष्ट्रीय एकता दिवस (Rashtriya Ekta Diwas) मनाया जा सके। लेकिन इस बार का आयोजन खास है सरदार पटेल की 150वीं जयंती पर एक हफ्ते तक चलने वाला समारोह गुरुवार से शुरू हुआ।

एकतानगर: आधुनिकता की चमक में छिपा जनसंघर्ष

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के आसपास बसा यह नगर आज गुजरात के सबसे चर्चित पर्यटन स्थलों में से एक है। करीब ₹3,000 करोड़ की लागत से बना एकतानगर पहले साधु बेट नामक क्षेत्र था — नर्मदा बांध के पास आदिवासियों का धार्मिक स्थल। यहाँ की 13 आदिवासी बस्तियों की जमीन अधिग्रहित कर चार लेन की सड़कों, खूबसूरत उद्यानों और हेलिपैड से सुसज्जित एक पर्यटन नगरी खड़ी की गई।

लेकिन यह भव्यता नर्मदा ज़िले के बाकी हिस्सों से बिलकुल विपरीत तस्वीर पेश करती है जहाँ आज भी बुनियादी स्वास्थ्य, शिक्षा और सड़क जैसी सुविधाएँ सपना बनी हुई हैं।

1,900 करोड़ की परियोजनाएँ सिर्फ एकतानगर के लिए

नई परियोजनाओं में शामिल हैं — बिरसा मुंडा जनजातीय विश्वविद्यालय, अतिथि सत्कार क्षेत्र (Hospitality District) का दूसरा चरण, वामन वृक्ष वाटिका, सप्तपुड़ा प्रोटेक्शन वॉल, 25 इलेक्ट्रिक बसों वाला ई-बस डिपो, नर्मदा घाट विस्तार, कौशल्या पथ, स्मार्ट बस स्टॉप्स, डैम रेप्लिका फाउंटेन और जीएसईसीएल कर्मचारियों के आवास।

केवल पिछले दो वर्षों में ही एकतानगर में ₹1,900 करोड़ से अधिक के विकास कार्य स्वीकृत हुए। फरवरी 2024 में राज्य सरकार ने यहाँ नए हवाई अड्डे की घोषणा की, जबकि वडोदरा एयरपोर्ट सिर्फ 90 किमी दूर है।2024 के बजट में ₹475 करोड़ पर्यटन व रखरखाव और ₹100 करोड़ नई सड़कों के लिए रखे गए। इनमें से ₹150 करोड़ स्टैच्यू ऑफ यूनिटी परिसर के विकास के लिए और ₹300 करोड़ हॉस्पिटैलिटी ज़ोन के लिए थे।

अक्टूबर 2024 में मोदी ने ₹284 करोड़ की परियोजनाओं का भी उद्घाटन किया था जिनमें पैदल मार्ग, उप-जिला अस्पताल, सोलर पैनल, फायर स्टेशन, बोंसाई पार्क और पार्किंग शामिल थीं।

सात वर्षों में एकतानगर को देश के विभिन्न शहरों — दिल्ली, वाराणसी, चेन्नई, दादर, अहमदाबाद, रीवा और प्रतापगढ़ — से जोड़ने वाली आठ रेल सेवाएँ शुरू की गईं। “जहाँ पर्यटक हेलिपैड पर उतरते हैं, वहाँ महिलाएँ अस्पताल तक नहीं पहुँच पातीं”

स्थानीय आदिवासी कार्यकर्ता महेश वसावा कहते हैं “विडंबना यह है कि सरकार ने नर्मदा के सबसे गरीब इलाके में करोड़ों का टूरिज्म टाउन खड़ा कर दिया। 13 गाँवों की ज़मीन ली गई, और अब यहाँ छह-लेन सड़कें हैं। लेकिन बाकी नर्मदा में महिलाएँ अस्पताल पहुँचने से पहले ही दम तोड़ देती हैं क्योंकि एम्बुलेंस सड़क तक नहीं पहुँचती।”

उनके अनुसार, जहाँ एकतानगर पर करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं, वहीं पूरे जिले में एक भी पूर्ण-सुसज्जित सरकारी अस्पताल नहीं है। अधिकांश मरीजों को वडोदरा (90 किमी दूर) भेजा जाता है।

नर्मदा की गरीबी का भयावह चेहरा

राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (2023-24) के अनुसार, नर्मदा ज़िले की गरीबी दर 22.62% है जो गुजरात में डांग (26.61%) के बाद दूसरी सबसे अधिक है।नीति आयोग की जिला पोषण प्रोफाइल (2023-24) बताती है पाँच वर्ष से कम आयु के 23% बच्चे कुपोषित, और 10% गंभीर रूप से कुपोषित हैं। 53% बच्चे कम वज़न के हैं। 93% बच्चे एनीमिक (रक्ताल्पता के शिकार) हैं जो 2016 के 54% से दोगुना है। 31% महिलाएँ (15–49 वर्ष) कम वज़न की हैं। गर्भवती महिलाओं में एनीमिया 2016 के 58% से बढ़कर 2024 में 76% हो गया।

आंगनवाड़ियों की दयनीय स्थिति

मार्च 2025 में राज्य विधानसभा में बताया गया कि नर्मदा की 334 आंगनवाड़ी केंद्र या तो बंद हैं या किराए की इमारतों में चल रहे हैं। 37 नए केंद्रों के लिए निविदा ही नहीं मिली, 90 केंद्र पंचायत अनुमति के इंतजार में हैं, और 10 परियोजनाएँ 2015 से भूमि अधिग्रहण में अटकी हुई हैं। जिला कलेक्टर बी. जोशी ने माना कि पहाड़ी इलाके के कारण निर्माण धीमा है।

स्वास्थ्य सेवाओं की उपेक्षा

राजपीपला का एकमात्र सिविल हॉस्पिटल डॉक्टरों और उपकरणों की भारी कमी से जूझ रहा है। एक डॉक्टर ने बताया “हमारे पास सिर्फ एक ऑपरेशन थिएटर है। कोविड के दौरान ऑक्सीजन तक की किल्लत थी। अतिरिक्त स्टाफ तो बस प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर रक्तदान शिविर के समय दिखा। मोजदा, तिलकवाड़ा, सगबारा और देदीपाड़ा के स्वास्थ्य केंद्रों में भी यही स्थिति है रिक्त पदों पर अब तक नियुक्तियाँ नहीं हुईं।

आदिवासी भूमि से बना पर्यटन नगर

सरकार ने 13 आदिवासी गाँवों की भूमि अधिग्रहित कर केवड़िया कॉलोनी बनाई, जिसे बाद में एकतानगर नाम दिया गया। इसे नर्मदा जिला प्रशासन से अलग एक विशेष प्रशासनिक इकाई मुख्य प्रशासक, केवड़िया कॉलोनी के तहत रखा गया। कुछ वर्षों में ही यह इलाका चार-लेन सड़कों, हेलिपैड, गेस्ट हाउस, स्मार्ट बसों और गार्डनों से चमकता पर्यटन केंद्र बन गया गुजरात मॉडल का प्रतीक। लेकिन ज़िले की 87% आदिवासी आबादी अब भी विकास से दूर है जहाँ आज भी न सड़क है, न स्कूल, न स्वास्थ्य केंद्र।

‘विकास’ सिर्फ दिखावे तक सीमित

महेश वसावा कहते हैं “सरकार ने एक आदिवासी पट्टी को पर्यटन प्रदर्शन में बदल दिया है, पर ज़्यादातर लोगों के लिए विकास आज भी सपना है।”एकतानगर की चमकदार रोशनी के पीछे नर्मदा की असली कहानी छिपी है — जहाँ ‘एकता’ तो दिखती है, पर समानता नहीं।

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