कला-परंपरा के संगम में नया अध्याय, अय्यप्पन कूथु में महिला की दस्तक
x

कला-परंपरा के संगम में नया अध्याय, अय्यप्पन कूथु में महिला की दस्तक

अय्यप्पन थीयाट्टु में पहली बार एक महिला, आरएलवी आर्यादेवी, ने कूथु का प्रदर्शन कर परंपरा में ऐतिहासिक बदलाव और नारीशक्ति की मिसाल पेश की।


Ayyappan Theyyattu Art: अय्यप्पन थीयाट्टु एक विशुद्ध अनुष्ठानिक कला है, जिसे केरल के मध्य और उत्तरी भागों के मंदिरों, इल्लम (ब्राह्मणों के पारंपरिक आवास) और अन्य पवित्र स्थलों में सदियों से निभाया जाता रहा है। यह कला मुख्यतः पुरुषों द्वारा की जाती रही है और भगवान शास्ता (अय्यप्पा) को समर्पित होती है। इसमें उनके जीवन की कथाएं थोट्टम और कूथु के रूप में प्रस्तुत की जाती हैं।

इस कला का प्रदर्शन कलम (फूलों की रंगोली), पाट्टु (गान), कूथु और कोमारम (ओरेकल डांस) के माध्यम से किया जाता है। अंत में 12,000 नारियल फोड़कर भगवान शिव के 12,000 भूतगणों को प्रसन्न किया जाता है। यह अनुष्ठान विशेष रूप से आठ थियाडी नंबियार परिवारों द्वारा किया जाता है, जो मंदिरों से जुड़ी एक पारंपरिक समुदाय है। हालांकि आज यह परंपरा विलुप्ति की कगार पर है, क्योंकि इसमें रुचि और वित्तीय समर्थन की भारी कमी है।

इतिहास में पहली बार महिला की प्रस्तुति

एक सप्ताह पहले इस परंपरा में ऐतिहासिक बदलाव आया। आरएलवी आर्यादेवी थियाडी जो कि कथकली कलाकार और वरिष्ठ थीयाट्टु कलाकार मुलंकुन्नथुकावु थियाडी रमन नंबियार की पुत्री हैं उन्होंने इस कला के प्रमुख अंग ‘कूथु’ का प्रदर्शन किया। यह पहली बार था जब किसी महिला ने इस अनुष्ठानिक कला में हिस्सा लिया।

यह प्रदर्शन उनके पिता के 70वें जन्मदिन (26 जुलाई) पर त्रिपुनिथुरा के एक विद्यालय में किया गया। आर्यादेवी के इस कदम ने इतिहास रच दिया।

पिता की प्रेरणा और समाज की प्रतिक्रिया

रमन नंबियार ने इस परंपरा को मंदिरों से बाहर आम लोगों के सामने लाने का कार्य किया। जब उनकी बेटी ने कूथु प्रस्तुत करने की इच्छा जताई, तो उन्होंने संकोच के बावजूद उसे प्रोत्साहित किया। हालांकि कुछ परिजनों ने चेताया कि महिला की भागीदारी से देवता नाराज़ हो सकते हैं, लेकिन रमन इन रूढ़ियों से विचलित नहीं हुए।

आर्यादेवी बचपन से ही इस कला के करीब थीं। पिता घर पर युवाओं को सिखाते थे और आर्यादेवी भी उनके साथ थोट्टम, ताल और अभिनय सीखती रहीं। हालांकि उन्हें मंच पर प्रदर्शन का अवसर नहीं मिला, इसलिए उन्होंने चित्रकला और कथकली की ओर रुख किया। फिर भी अय्यप्पन थीयाट्टु के प्रति उनका लगाव बना रहा।

नारी शक्ति का प्रभावशाली प्रदर्शन

आर्यादेवी ने कहा, “शुरुआत में थोड़ी घबराहट हुई, लेकिन कथकली का प्रशिक्षण बहुत काम आया। मैंने लगभग दो घंटे तक कूथु प्रस्तुत किया। यह मेरे पिता और परिवार के लिए एक समर्पण था।” उनके इस प्रयास में चचेरे भाई-बहनों और पिता ने भरपूर सहयोग दिया। उनके चचेरे भाई टी.के. श्रीवलसन ने भी उन्हें प्रस्तुति से पहले कुछ रिफ्रेशर कक्षाएं दीं। एक दशक पहले आर्यादेवी ने कलम बनाना शुरू किया था। यह पांच पारंपरिक रंगों से भगवान अय्यप्पा की फूलों से बनी चित्रकला होती है, जो इस कला का एक अभिन्न हिस्सा है।

कला के घटक और पौराणिक कथाएं

अय्यप्पन थीयाट्टु की शुरुआत कूरैयिडल (ध्वजारोहण) से होती है। उच्चापाट्टु, कलमेज़ुथु, थिरी उजिचिल, मुल्लाक्कल्पाट्टु, एडुम कूरुम, कलप्रदक्षिणम, कालथिलाट्टम और अंत में 12,000 नारियल फोड़ने की रस्म थेंगायेरु होती है। इस कला का मूल आधार पलाज़िमथनम नामक पौराणिक कथा है, जिसमें अय्यप्पा का जन्म शिव और विष्णु (मोहिनी रूप) के मिलन से होता है। इसमें अय्यप्पा को गृहस्थाश्रम में भी दर्शाया गया है। पत्नी प्रभा और पुत्र सत्यक के साथ।

परंपरा और बदलाव के बीच संतुलन

रमन नंबियार का मानना है कि इस कला के सौंदर्य पक्ष को लंबे समय तक अनदेखा किया गया। 1970–80 के दशक में यह केवल एक कर्मकांड था, लेकिन 1990 के बाद इसे कलात्मक रूप दिया गया। आज यह कला त्रिशूर, पलक्कड़ और मलप्पुरम जिलों में स्थित आठ थियाडी नंबियार परिवारों द्वारा संरक्षित है: मुलंकुन्नथुकावु, चेरुप्पुलसेरी, एलमकुलम, मुंडामुका, थायमकावु, इरिंजालकुड़ा, मलमक्कावु और पेरुम्पिलावु।

टीएस वासुन्नी, जो कि एक वरिष्ठ थीयाट्टु कलाकार हैं, कहते हैं कि आय के स्थायी स्रोत न होने से युवा इस कला से दूर हो रहे हैं। मैंने यह कला नियमित रूप से केवल रिटायरमेंट के बाद शुरू की।

आधुनिक संदर्भ में उम्मीद की किरण

भद्रा राजनीश, संस्कृत व्याख्याता और थायंबका कलाकार, ने आर्यादेवी की पोशाक तैयार की थी। उन्होंने कहा, “मैं एक पुरुष प्रधान कला क्षेत्र में आई और 70 से अधिक मंचों पर अपनी बहन के साथ प्रदर्शन किया। आज भी प्रतिभा ही सबसे बड़ा मूल्य है। टीएस परमेश्वरन जैसे कलाकार इस कला को केवल मंदिरों में ही प्रस्तुत करते हैं। वे इसे अपने पूर्वजों की विरासत मानते हैं और किसी भी तरह की समझौता नहीं करना चाहते।

वरिष्ठ गायक हरिदासन कुरुप कहते हैं कि आज पूरी कला के ज्ञाता केवल दो ही लोग बचे हैं रमन नंबियार और केशवनकुट्टी नंबियार। शेष केवल खंडों का प्रदर्शन कर सकते हैं।

अस्तित्व की लड़ाई और भविष्य की योजना

केवल आठ परिवारों में सिमटी इस कला में, हर परिवार की शैली और परंपरा अलग-अलग होती है। रमन नंबियार बताते हैं कि यह कला अब अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच चुकी है। वे अपने बच्चों और परिजनों के साथ उदयस्तमनम कूथु (भोर से संध्या तक चलने वाला कूथु) आयोजन करने जा रहे हैं ताकि आम जनता इस कला की अहमियत को समझ सके।

अय्यप्पन थीयाट्टु केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक जीवित परंपरा है, जो सामाजिक, धार्मिक और कलात्मक तत्वों से समृद्ध है। आर्यादेवी का योगदान इस बात का संकेत है कि परिवर्तन और परंपरा साथ चल सकते हैं, अगर दृष्टिकोण समर्पण और संतुलन से भरा हो।

Read More
Next Story