जो सोना उगलने वाले खेत, उनके हिस्से में बदनसीबी की रेत : पंजाब की बाढ़ की दर्दनाक हकीकत
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पंजाब के इन खेतों में जहां फसल लहलहाती थी, बाढ़ के बाद अब रेत ही रेत भर गई है। किसानों को राहत देने के लिए पंजाब सरकार अब 'जिसका खेत, उसकी रेत' स्कीम लाई है। (वीडियो ग्रैब : सोशल मीडिया)

जो 'सोना' उगलने वाले खेत, उनके हिस्से में बदनसीबी की रेत : पंजाब की बाढ़ की दर्दनाक हकीकत

बाढ़ की वजह से गाद और रेत भरने से पंजाब की खेती बड़ी मात्रा में तबाह हो गई है। पंजाब सरकार का आकलन है कि 1.92 लाख हेक्टेयर एरिया में खड़ी फसलें तबाह हो गई हैं। यानी 4.74 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन में खड़ी फसलों को नुकसान हुआ है।


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पंजाब और उसके खेत-खलिहानों में एक अलग तरह का 'रोमांटिसिज्म' रहा है। खासकर फिल्मों ने पंजाब के खेतों, उन खेतों में लहलहाती फसलों और उन फसलों से आई समृद्धि को एक अलग तरह की रुमानियत दी है। किसे याद नहीं होगे पंजाब के वे खेत, जो लोगों ने सिनेमा के पर्दे पर नब्बे के दशक की सुपर-डुपर हिट फिल्म 'दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे' में देखे होंगे। किसे याद नहीं होंगे वे खेत, जो लोगों ने 'रंग दे बसंती' फिल्म के ज़रिये देखे होंगे।

और भी न जाने कितनी ही फिल्मों, कितने ही गानों, कितने ही म्यूजिक एलबमों में आपने पंजाब की धरती के दिलकश रंग देखे होंगे। रुपहला पर्दा पंजाब की धरती, पंजाब की खेती, पंजाब की मिट्टी, पंजाब की किसानी और पंजाब के समाज को लेकर एक अलग तरह के आकर्षण वाला संसार रचता है।

लेकिन आज हाल ये हैं कि पंजाब को पंजाब बनाने वाले उन्हीं खेतों में उदासियां हैं। आंसू हैं। चिंतायें हैं।

जिन दरियाओं ने पंजाब की धरती में समृद्धि के बीज अंकुरित किए। जिन दरियाओं के पानी से सिंची फसलों से पंजाब के खेत सोना उगलते रहे हैं। जो नदियां पंजाब में अमृत की धारा प्रवाहित करती रही हैं, उन्हीं की लहरों पर ऐसा काल सवार होकर आया कि उसने देखते ही देखते पंजाब की उर्वर ज़मीन को मरुस्थल बना दिया।

सोना उगलने वाली ज़मीन के एक बड़े हिस्से पर आज चारों तरफ गाद ही गाद और रेत ही रेत दिखाई दे रही है। न जाने पंजाब की इस उर्वरा भूमि को किसकी नजर लग गई।


खेतों में रेत की मोटी परत जम गई है। एक किसान हाथ से रेत निकालते हुए (वीडियो ग्रैब : X/@SukhpalKhaira)


पंजाब के मेहनतकश किसान ने इस माटी में अपने पुरुषार्थ के बीज बोये थे। उन्हें अपने पसीने से सींचा था। लेकिन हिमालयी इलाके से विकराल रूप धरकर आईं सतलुज, रावी और ब्यास नदियों ने मैदान में उतरते ही सब कुछ तबाह कर दिया।

पंजाब सरकार के राजस्व मंत्री हरदीप सिंह मुंडियान के हवाले से जो ख़बरें छपी हैं, उनमें बताया गया है कि पंजाब में 1.92 लाख हेक्टेयर एरिया में खड़ी फसलें तबाह हो गई हैं। इसे अगर हम एकड़ में समझें तो करीब 4.74 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन में खड़ी फसलें नष्ट हो गई हैं। सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब में बाढ़ से 2,214 गांव इससे प्रभावित हो चुके हैं और 55 लोगों की जान जा चुकी है। इस सैलाब से लगभग 4 लाख लोग प्रभावित हुए हैं और राज्य को 14 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो चुका है। इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंजाब के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए 1600 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की भी घोषणा की है।

लेकिन पंजाब को गहरे ज़ख़्म मिले हैं। इस आपदा में पंजाब ने सबसे ज्यादा क्या खोया, अगर इसे दो शब्दों में कहें तो एक हैं, वो 55 जिंदगियां और दूसरा है, रेत से पटे हुए खेत। ये खेत जो हरियाली और फसलों से लकदक रहे हैं और पंजाब को सचमुच शस्य श्यामला भूमि का स्वरूप देते रहे हैं, ये देखना दर्दनाक है कि उन खेतों में जमी रेत की मोटी परतों ने ज़मीन को खेती के लिए अनुपयोगी बना दिया है।

इसीलिए पंजाब की भगवंत मान सरकार ने सोमवार 8 सितंबर को एक अहम फैसला किया। एक स्कीम लाई गई है, जिसका नाम है 'जिसका खेत, उसकी रेत'। इसके तहत पंजाब सरकार ने बाढ़ से प्रभावित किसानों को उनके खेतों में जमा रेत और मिट्टी बेचने की अनुमति दे दी है। सरकार के मुताबिक़, इस फ़ैसले से किसानों को राहत मिलेगी और रेत बेचकर प्रभावित किसान अपने नुकसान की भरपाई कर सकेंगे।

ये फैसला इसलिए लेना पड़ा क्योंकि पंजाब में किसानों के खेतों में जो गाद और रेत जमा हो गई है उसने न सिर्फ खरीफ की फसल को बर्बाद कर दिया, बल्कि आने वाली रबी सीजन की फसल पर भी खतरा मंडरा रहा है। यानी अगर खेतों से रेत जल्द से जल्द नहीं हटाई गई, तो पंजाब के किसान बहुत गंभीर आर्थिक संकट में फंस जाएंगे।

ताज्जुब की बात ये है कि तेज बारिश और बाढ़ की घटनाओं के बढ़ने के बावजूद पंजाब में अब तक कोई फसल बीमा नीति लागू नहीं हो पाई है।केंद्र की प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 2016 में शुरू हुई थी, जिसमें किसान सिर्फ 1.5% से 5% तक प्रीमियम देते हैं, बाकी खर्च राज्य और केंद्र मिलकर उठाते हैं। लेकिन मीडिया रिपोर्ट बता रही है कि पंजाब ने इसे कभी लागू नहीं किया।

राज्य के खजाने पर ज़्यादा बोझ, क्लेम निपटाने में पारदर्शिता की कमी जैसी तमाम वजहें गिनाकर इससे कन्नी काट ली गई। अब हो क्या रहा है कि पंजाब में अब हर आपदा के साथ किसानों का नुकसान बढ़ रहा है। लेकिन स्थायी बीमा नीति न होने से वे और असुरक्षित होते जा रहे हैं। ऊपर से जिन खेतों के दम पर उन्होंने खुशहाली की पटकथा लिखी थी, वहां की उपजाऊ मिट्टी के ऊपर अब रेत की मोटी चादर बिछ गई है।

जिस माटी ने पांच दरियाओं की इस भूमि में खुशहाली दी। जहां समृद्धि लहलहाई। उस माटी को हर हाल में बचाने और उसमें फिर से उम्मीदों की नई फसल लहलहाने का इरादा है। हालात कठिन हैं, लेकिन पिछले चार दशक के इस सबसे बड़े कुदरती संकट से लड़ने की हिम्मत पंजाब को 'चढ़दी कला' के जीवन दर्शन से मिल रही है। पंजाब फिर से उठ खड़े होने की जद्दोजहद में जुटा हुआ है।

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