हाथियों की मौत या सिस्टम की हत्या? सवालों में ‘गजराज’
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हाथियों की मौत या सिस्टम की हत्या? सवालों में ‘गजराज’

पश्चिम बंगाल में तेज रफ्तार ट्रेन से तीन हाथियों की मौत ने 'गजराज' AI सिस्टम की धीमी प्रगति और रेलवे-वन विभाग के समन्वय की विफलता को उजागर किया है।


Elephant Accident: 'कवच' सिस्टम की विफलता के बाद अब भारतीय रेलवे एक और अहम ट्रैक सुरक्षा उपकरण ‘गजराज’ को लागू करने में लापरवाही बरतने के आरोपों से घिर गई है। यह एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित Intrusion Detection System (IDS) है, जिसे 2022 में इस उद्देश्य से शुरू किया गया था कि ट्रेनों और हाथियों के बीच टकराव रोका जा सके। लेकिन 18 जुलाई को पश्चिम बंगाल के झाड़ग्राम जिले में एक तेज़ रफ्तार ट्रेन से टकराकर तीन हाथियों की मौत जिसमें दो शावक थे। इस प्रणाली की प्रभावशीलता और लागू न होने पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

जांच में खुली चूक की परतें

प्राथमिक जांच से यह स्पष्ट हो गया कि यह हादसा रेलवे और राज्य के वन विभाग के बीच समन्वय की कमी का नतीजा था। अधिकारियों का कहना है कि IDS सिस्टम का उद्देश्य ही इस तरह की गलतफहमी को रोकना है, लेकिन यह तकनीक होते हुए भी इसका इस्तेमाल न होना अफसोसनाक है।रेलवे सूत्रों के मुताबिक, दक्षिण-पूर्व रेलवे (SER) ज़ोन में ‘गजराज’ सिस्टम की स्थापना का प्रस्ताव 2023 से लंबित है।

उत्तर-पूर्व में सफल, बंगाल में ठहरी प्रक्रिया

पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (Northeast Frontier Railway) के उत्तर बंगाल क्षेत्रों में दिसंबर 2022 में IDS के लागू होने के बाद ट्रैक पर हाथियों की मौत के मामले में भारी कमी आई थी। एक वरिष्ठ रेलवे अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर स्वीकार किया कि अन्य संवेदनशील क्षेत्रों को इस सुरक्षा कवच के दायरे में लाने की प्रक्रिया बहुत धीमी है।

कैसे काम करता है ‘गजराज’ सिस्टम?

यह सिस्टम ट्रैक के नीचे बिछाए गए ऑप्टिकल फाइबर केबल (OFC) से जुड़े रहता है। जब हाथी चलते हैं तो उनके कंपन को यह उपकरण पहचान लेता है और रीयल-टाइम अलर्ट चालकों और संबंधित अधिकारियों को भेजता है। जहां यह तकनीक उपलब्ध नहीं है, वहां स्थानीय वन अधिकारी रेलवे को हाथियों की गतिविधियों के बारे में ईमेल, व्हाट्सएप या कॉल के जरिए सूचना देते हैं।

हादसे की पूरी कहानी

18 जुलाई की रात करीब 10:56 बजे वन अधिकारियों ने ट्रैक के पास हाथियों की मौजूदगी की जानकारी एक साझा व्हाट्सएप ग्रुप में दी। लेकिन उस रात के समय में किसी भी रेलवे अधिकारी ने शायद यह संदेश नहीं पढ़ा। ट्रेन के चालक को हाथियों की जानकारी नहीं थी, और उसने स्पीड कम नहीं की नतीजा: तीन निर्दोष हाथियों की मौत।इस हादसे के बाद राज्य वन विभाग ने ट्रेन के ड्राइवर, सारडीहा स्टेशन मैनेजर और खड़गपुर डिवीजन के ट्रैफिक इंस्पेक्टर के खिलाफ लापरवाही का मामला दर्ज कर लिया है।

खड़गपुर डिवीजन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दावा किया कि IDS की स्थापना का प्रस्ताव अंतिम स्वीकृति चरण में है। वहीं राज्य के प्रधान वन संरक्षक संदीप सुंद्रीयाल ने रेलवे को फिर से कहा है कि दक्षिण बंगाल के ट्रैकों पर तुरंत यह प्रणाली लगाई जाए।

संवेदनशील गलियारों की सूची

पश्चिम बंगाल में 26 हाथी गलियारे हैं, देश में सबसे ज़्यादा। इनमें से 15 उत्तर बंगाल और 11 दक्षिण बंगाल में हैं। जंगली इलाकों वाले झाड़ग्राम क्षेत्र की 100 से अधिक संवेदनशील जगहों की पहचान एक साल पहले ही ‘गजराज’ के लिए की जा चुकी थी।2022 में NFR के अलीपुरद्वार डिवीजन और असम के लुमडिंग डिवीजन में इस तकनीक को सफलतापूर्वक लागू किया गया था। रेलवे के मुताबिक यह प्रणाली 99.5% सटीकता के साथ हाथियों की मौजूदगी को पहचानती है।

सिर्फ बड़ी घोषणाएं

दिसंबर 2023 में यह निर्णय हुआ था कि IDS को 700 किलोमीटर क्षेत्र में लगाया जाएगा, जिसे बाद में बढ़ाकर 1,158 किलोमीटर किया गया। लेकिन आज तक बहुत ही कम काम पूरा हुआ है।पूर्वी तट रेलवे ज़ोन में केवल 349 किमी पर कार्य चल रहा है। दक्षिण रेलवे ज़ोन में 55.85 किमी। उत्तर-पूर्व रेलवे ज़ोन में 36 किमी यानी कुल मिलाकर काफी सुस्ती है।

'कवच 4.0' भी पिछड़ा

ठीक ऐसी ही सुस्ती एंटी-कोलिज़न सिस्टम 'कवच 4.0' में भी देखी जा रही है। दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-कोलकाता के 3,000 किमी ट्रैक पर इसे मार्च 2025 तक लागू होना था, लेकिन अब यह समयसीमा दिसंबर 2025 कर दी गई है। हाथियों की मौत केवल एक तकनीकी चूक नहीं, बल्कि एक गहरी संवेदनशीलता और समन्वय की विफलता को उजागर करती है। जिस तकनीक को बनाकर हम गर्व करते हैं, अगर उसे समय पर जमीन पर नहीं उतारा जाए, तो उसकी कीमत जंगल और उसके मासूम निवासियों को चुकानी पड़ती है।अगर भारत को वाइल्डलाइफ फ्रेंडली इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना है, तो 'गजराज' जैसे सिस्टम को केवल रिपोर्ट में नहीं और जल्द से जल्द ज़मीन पर लगाना होगा।

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