क्या खेमका की हत्या तय करेगी बिहार की सत्ता की दिशा?
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पटना में व्यवसायी गोपाल खेमका की हत्या के विरोध में निर्दलीय सांसद राजेश रंजन उर्फ ​​पप्पू यादव समर्थकों के साथ विरोध मार्च निकाला था। पीटीआई फोटो

क्या खेमका की हत्या तय करेगी बिहार की सत्ता की दिशा?

गोपाल खेमका की हत्या ने बिहार की कानून-व्यवस्था की पोल खोली। व्यापारियों में डर है और जनता असुरक्षित। नीतीश सरकार पर ‘जंगल राज’ के आरोप फिर गूंजने लगे हैं।


चर्चित व्यवसायी गोपाल खेमका की सरेआम हत्या ने बिहार की कानून-व्यवस्था को लेकर नीतीश कुमार सरकार की साख पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुई इस घटना ने एनडीए सरकार की सुशासन और “कानून का राज” वाली छवि को गहरा झटका दिया है।

गोपाल खेमका के छोटे भाई शंकर खेमका ने सरेआम कहा कि आज की स्थिति पहले से भी बदतर है। वे गुस्से में बोले लालू का जंगल राज इससे बेहतर था, कम से कम हम लोग सुरक्षित तो थे। आज कोई भी सुरक्षित नहीं है।

गोपाल खेमका (65), जो बीजेपी से करीबी माने जाते थे, की शुक्रवार रात (4 जुलाई) पटना के पॉश इलाके में हेलमेट पहने एक बाइक सवार ने गोली मारकर हत्या कर दी। गांधी मैदान थाना महज 300 मीटर दूर था, फिर भी पुलिस को पहुंचने में दो घंटे लग गए। खेमका राज्य में पिछले छह महीनों में मारे गए आठवें व्यवसायी थे।

दूसरी बार दुख का साया

यह खेमका परिवार के लिए दूसरी बड़ी त्रासदी है। दिसंबर 2018 में गोपाल के बेटे गुंजन की भी उसी तरह हत्या हुई थी – दिनदहाड़े, फैक्ट्री के गेट पर गोली मारकर। अब पांच साल बाद पिता की भी हत्या उसी क्रूरता से की गई। दोनों मामलों में पुलिस आज तक किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकी है।

व्यापारियों में डर, सरकार पर भरोसा नहीं

शंकर खेमका की प्रतिक्रिया उस भय और असंतोष को दिखाती है, जो राज्य के व्यापारियों और आम नागरिकों में पनप रहा है। बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन और बिहार चेंबर ऑफ कॉमर्स ने भी खुलकर कानून-व्यवस्था पर चिंता जताई है। औद्योगिक क्षेत्र के अन्य व्यापारी जैसे अजय सिंह ने भी खेमका परिवार से मिलकर बताया कि उन्हें भी जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं, लेकिन सरकार से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।

अपराध का सिलसिला थमा नहीं

गोपाल खेमका की हत्या कोई अलग मामला नहीं है। बीते कुछ दिनों में राज्य भर से अपराध की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं:

मुजफ्फरपुर में अभियंता मोहम्मद मुमताज़ की उनके घर में पत्नी-बच्चों के सामने हत्या।

पटना के दानापुर में स्कूल संचालक अजीत कुमार की गोली मारकर हत्या।

नालंदा में दोहरी हत्या की वारदात।

मोतिहारी में छोटे व्यापारी विष्णुनाथ शाह की हत्या।

सीवान जिले के मलमालिया चौक पर पुरानी रंजिश को लेकर तीन की हत्या और तीन घायल।

वैशाली में चोरी के शक में युवक की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या।

रेत व शराब माफिया का आतंक, पुलिस भी निशाने पर

राज्य में अवैध शराब और बालू माफिया का नेटवर्क इतना ताकतवर हो गया है कि पिछले एक साल में छापेमारी के दौरान दर्जनों पुलिस टीमें उनके हमलों में घायल हो चुकी हैं। आम लोगों का गुस्सा तब और बढ़ गया जब पुलिस ने घटनास्थल तक पहुंचने में देर की और हत्यारों को अब तक गिरफ्तार नहीं किया।

आरजेडी बनाम एनडीए – 'जंगल राज' का नैरेटिव

एनडीए सरकार लगातार राजद के शासन (1990–2005) को “जंगल राज” कहती रही है। लेकिन इस बार यह नैरेटिव खुद एनडीए सरकार के खिलाफ जा रहा है। आरजेडी नेता और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इसे “महा-जंगल राज” करार देते हुए अपने एक्स (पूर्व ट्विटर) अकाउंट पर रोज़ अपराध की खबरें साझा कर रहे हैं। वे यह भी आरोप लगाते हैं कि सरकार के दबाव में स्थानीय मीडिया इन घटनाओं को पहले पन्ने पर जगह नहीं देता।

एनडीए के नेता, खासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, इन घटनाओं पर मौन साधे हुए हैं। कुछ महीने पहले तेजस्वी ने नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया था कि नीतीश कुमार के 20 वर्षों के कार्यकाल में 65,000 हत्याएं और 25,000 बलात्कार के मामले सामने आए। पिछले चार महीनों में अकेले पटना में 116 हत्याएं दर्ज हुई हैं।

मतदाता असमंजस में, डर अभी भी ‘जंगल राज’ से

हालांकि सब कुछ तेजस्वी यादव के पक्ष में जाता नहीं दिखता। कई ग्रामीण और शहरी मध्यम वर्गीय लोग मानते हैं कि भले ही अभी की स्थिति खराब है, लेकिन आरजेडी के आने पर असली जंगल राज लौट आएगा। पटना सिविल कोर्ट के वकील संतोष चौधरी कहते हैं, एनडीए पिछले 19 साल से इसी डर का फायदा उठाकर चुनाव जीतती रही है।”

गोपाल खेमका की हत्या ने बिहार की राजनीति और प्रशासन की नींव हिला दी है। कानून-व्यवस्था को लेकर नीतीश सरकार पर गंभीर सवाल उठे हैं, जो विधानसभा चुनावों में बड़ा मुद्दा बन सकता है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या “सुशासन बाबू” की छवि अब धुंधला रही है? और क्या बिहार फिर से उसी ‘जंगल राज’ की ओर लौट रहा है, जिससे निकलने की बात कर एनडीए दो दशकों से सत्ता में बना हुआ है?

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