
नहीं चेते तो बूंद बूंद जल के लिए तरसना होगा, सिर्फ नारे नहीं अमल की जरूरत
जल ही कल है, जल ही जीवन इस तरह के स्लोगन दिल्ली और एनसीआर में बने घरों की दीवारों पर नजर आएंगे। लेकिन अब जरूरत है कि इन नारों पर अमल भी किया जाए।
किसी भी कीमत उनसे पूछो जो उनके पास उपलब्ध नहीं है। आमतौर पर देखा जाता है कि हम उस चीज कि कद्र नहीं करते जो हमें आसानी से उपलब्ध है। लेकिन जो चीज हमें नहीं मिल पाती उसकी अहमियत समझते होंगे। आपने देखा होगा कि लोग पानी के टैब को यूं ही खुला छोड़ देते हैं। पाइप लाइन से पानी लीकेज की वजह से बर्बाद होता है और उसकी वजह से ज्यादातर लोगों को पीने का पानी नहीं मिल पाता। यहां हम बात करेंगे कि दिल्ली और एनसीआर की।
अगर आप दिल्ली के तुगलकाबाद, बसंतकुंज, महरौली, द्वारका, नजफगढ़, महावीर एन्क्लेव में रहते हों तो गर्मी के सीजन में टैंकर की लोग बांट जोहते हैं। यही नहीं टैंकर से पानी जब आता है तो उसे हासिल करने के लिए मारपीट तक हो जाती है। ऐसे में सवाल यह है कि जिम्मेदार कौन है। जानकार बताते हैं कि दिल्ली और एनसीआर के इलाकों में जिस तरह से रियल एस्टेट का कारोबार बढ़ा है उसकी वजह से जलदोहन हो रहा है। व्यवस्था जिनके ऊपर जिम्मेदारी है वो आंख मूंद कर बैठे हुए हैं।
सबसे पहले बात करेंगे कि इस साल एनसीआर के किन इलाकों को घरेलू इस्तेमाल के लिए भूजल की कितनी जरूरत है। गाजियाबाद के लिए 1602 बीसीएम, गौतमबुद्ध नगर के लिए 7936 बीसीएम, फरीदाबाद के लिए 4455 बीसीएम और गुरुग्राम के लिए 5164 बीसीएम (यहां बीसीएम का अर्थ बिलियन क्यूबिक मीटर से है)
दिल्ली में 1290 मिलियन गैलन प्रतिदिन पानी की जरूरत है। उपलब्धता महज 1000 एमजीडी की है। दिल्ली में जलशोधन संयंत्र की संख्या 12, भूमिगत जलाशय 117 और 15 हजार किमी से लंबी पाइपलाइन है।दिल्ली जल बोर्ड को 389 एमजीडी पानी यमुना नदी से, 253 एमजीडी गंगा नदी से, 221 एमजीडी भांखड़ा बांध से, 5169 ट्यूवबेल और 11 रेनीवेल से 137 एमजीडी पानी हासिल होता है।
अगर दिल्ली में जल संग्रहण यानी वाटर कलेक्शन और उपयोग को देखें को तो सबसे खराब स्थिति नई दिल्ली जिले की है। मध्य दिल्ली में यह अनुपात 81 फीसद, पूर्वी दिल्ली में 98 फीसद, नई दिल्ली में 135 फीसद, उत्तरी दिल्ली में 114, उत्तर पूर्वी दिल्ली में 108, उत्तर पश्चिमी दिल्ली में 69 फीसद, शाहदरा में 116 फीसद दक्षिणी दिल्ली में 112, दक्षिण पूर्व दिल्ली में 98, दक्षिण पश्चिम में 94, पश्चिमी दिल्ली में 98 है।
450 एमएलडी पानी की खपत फरीबाद में हैं, 130 एमएलडी भूजल का प्रयोग होता है, ट्यूबवेल की संख्या 1700 है।फरीदाबाद में 100 से अधिक बोरिंग में महज 55 पर कार्रवाई हुई। 2023 में अवैध बोरिंग के खिलाफ 11 केस दर्ज हुए। 2024 में 8 अवैध बोरिंग सील की गई।
साल 2024 में मानसून सीज में गाजियाबाद में भूमि जल रिचार्ज बारिश से 1558 और अन्य स्रोत से 10401 था। गौतमबुद्ध नगर में 13548 वर्षा जल और अन्य से 14044 था। फरीदाबाद में वर्षा जल से 5803 और अन्य स्रोत से 3278 था। वहीं गुरुग्राम में वर्षा जल से 9806 और अन्य स्रोत से 5125 था।
ये महज आंकड़े नहीं हैं, दिल्ली और एनसीआर की हालत को बयां कर रहे हैं। इन आंकड़ों से साफ है कि जहां एक तरफ सरकारी कार्रवाई हल्की है, वहीं सामान्य जन को भी लेना देना नहीं है कि उनकी तरफ से कोशिश होनी चाहिए। अवैध कामों को रोकने के लिए पुलिस और प्रशासन की मदद ली जा सकती है। लेकिन जो जिम्मेदारी आम जन पर है उस जिम्मेदारी को हम सब कहीं न कहीं भूल रहे हैं। जानकार कहते हैं कि अगर हम नहीं चेतेंगे तो जिस तरह से राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक संघर्ष से दो चार हो रहे हैं आने वाले समय में जल के लिए संघर्ष और भयावह होगा और उसके परिणाम को सोचकर सिहर उठेंगे।