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राहुल गांधी जमीनी स्तर पर कांग्रेस नेतृत्व को मजबूत करना चाहते हैं, जिसके तहत वे नए जिला पार्टी प्रमुखों को सशक्त बनाना, पिछड़े वर्गों को आक्रामक रूप से साधना और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से मिलीभगत करने वाले विघटनकारी तत्वों को पार्टी से बाहर निकालना चाहते हैं। (फाइल फोटो)

कांग्रेस में जमीनी स्तर पर बदलाव की कोशिशों में गंभीर ‘दिक्कतें’

AICC के एक नेता ने दावा किया कि राहुल गांधी द्वारा ‘भाजपा एजेंट’ नेताओं को बाहर निकालने की मांग ने जिला प्रमुखों के चयन की प्रक्रिया को बिगाड़ दिया है।


पिछले एक महीने में राहुल गांधी ने गुजरात में अपने कांग्रेस सहयोगियों को तीन प्रमुख बातें बार-बार दोहराईं, जहां वे पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए एक और ‘पायलट प्रोजेक्ट’ आजमा रहे हैं। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष का उद्देश्य है जमीनी नेतृत्व को मजबूत करना, जिला कांग्रेस प्रमुखों का चयन कर उन्हें सशक्त बनाना, पिछड़े वर्गों को आक्रामक रूप से साधना और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ मिलीभगत करने वाले ‘विघटनकारियों’ को पार्टी से बाहर निकालना।

यह रणनीति सतह पर तो सही प्रतीत होती है। लेकिन गुजरात में तीन दशकों से सत्ता से बाहर रहने की वजह से कांग्रेस का जमीनी नेटवर्क बिखर गया है, उसे उन समुदायों का समर्थन भी खोना पड़ा जो 1980 के दशक तक इसके पक्के वोटर थे, और पार्टी अब भाजपा की खुली व गुप्त विघटनकारी कोशिशों के लिए बेहद संवेदनशील हो गई है।

कांग्रेस की योजना पटरी से उतरी

इस पायलट प्रोजेक्ट को लागू करने के लिए कांग्रेस ने इस महीने की शुरुआत में 43 एआईसीसी पर्यवेक्षकों, 7 सहायक एआईसीसी पर्यवेक्षकों और 183 पीसीसी पर्यवेक्षकों को नियुक्त किया।

गुजरात के प्रत्येक जिले को एक एआईसीसी पर्यवेक्षक और चार पीसीसी पर्यवेक्षक दिए गए हैं, ताकि स्थानीय स्तर पर चर्चा के बाद हर जिले से छह उम्मीदवारों की सूची 10 मई तक तैयार की जा सके। यह सूची पार्टी हाईकमान को भेजी जाएगी, जो नए जिला कांग्रेस कमेटी (डीसीसी) प्रमुखों का चयन करेगा।

हालांकि, लॉन्च के दो हफ्तों के भीतर ही यह संगठनात्मक सुधार योजना राहुल के बताए मूल सिद्धांतों से भटकने लगी है।

अंदरूनी कलह और आरोप

इस परियोजना में जुड़े सूत्रों के अनुसार, अब नेताओं द्वारा डीसीसी प्रमुख पद के दावेदारों को बदनाम करने के लिए उन्हें ‘भाजपा के एजेंट’ बताना आम हो गया है। राहुल द्वारा पिछड़ी जातियों को साधने पर जोर देने से विभिन्न जातियों के जिला स्तरीय नेताओं के बीच आपसी टकराव और बढ़ गया है।

इसके अलावा, डीसीसी को सशक्त बनाने की पहल को राज्य नेतृत्व के एक वर्ग द्वारा रोकने की कोशिश हो रही है, जिन्हें डर है कि अगर राहुल की योजना सफल होती है तो उनका प्रभाव कम हो जाएगा।

उत्तर गुजरात और सौराष्ट्र के ओबीसी बहुल जिलों में, जहां कांग्रेस कभी मजबूत थी, वहां पर्यवेक्षकों को स्थानीय नेताओं से तीव्र विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

गलत जानकारी और जातिगत राजनीति

एक आम शिकायत यह है कि एआईसीसी द्वारा नियुक्त टीम को राज्य के वरिष्ठ नेताओं द्वारा या तो गुमराह किया जा रहा है या दबाव में लिया जा रहा है, ताकि ऐसे नामों को सूची में डाला जाए जो स्थानीय कार्यकर्ताओं की बैठकों में कभी सामने नहीं आए।

एक उदाहरण है सौराष्ट्र का पोरबंदर जिला, जो कांग्रेस का गढ़ रहा है। यहां दरबार समुदाय के एक ऊंची जाति के नेता को डीसीसी प्रमुख पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा है, जबकि जिले में पिछड़ी जाति मेहर समुदाय की बड़ी आबादी है। इस समुदाय ने ही कभी अर्जुन मोढवाड़िया को राज्य कांग्रेस नेतृत्व तक पहुंचाया था। लेकिन मोढवाड़िया पिछले साल मार्च में भाजपा में चले गए, जिससे कांग्रेस को इस क्षेत्र में अपना सबसे प्रभावशाली मेहर नेता खोना पड़ा।

स्थानीय कार्यकर्ताओं में निराशा

पोरबंदर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि संगठन सृजन अभियान के जरिए मेहर समुदाय पर फिर से ध्यान दिया जाएगा, लेकिन पर्यवेक्षकों की दो सप्ताह की बैठकों से उन्हें निराशा हुई है।

एक स्थानीय नेता ने बताया, “पोरबंदर में दरबार और मेहर समुदायों में टकराव का इतिहास रहा है। यहां जिला कांग्रेस इकाई में मेहर समुदाय के लोग अधिक हैं, और वे दरबार समुदाय के किसी नेता को जिला अध्यक्ष के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते।”

गलत जिले से उम्मीदवार

उत्तर गुजरात के बनासकांठा जिले में अंजना पटेल समुदाय के मवजी चौधरी का नाम डीसीसी प्रमुख पद के लिए सामने आ रहा है। वे हाल ही में भाजपा से लौटकर कांग्रेस में आए हैं, लेकिन वह बनासकांठा जिले के निवासी ही नहीं हैं। उन्होंने खुद स्वीकार किया कि वे पास के पाटन जिले में बेहतर काम कर सकते हैं, जहां अंजना पटेल समुदाय की बड़ी आबादी है।

चौधरी ने बताया, “मैं उस समय चुनाव प्रचार टीम का हिस्सा था जब गेनिबेन ठाकोर ने बनासकांठा से लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन मेरी मजबूत पकड़ पाटन में है, जहां मैं कई सालों से काम कर रहा हूं।”

राज्य नेतृत्व की भूमिका

एक एआईसीसी पर्यवेक्षक ने बताया कि संगठन सृजन अभियान को गुजरात में शुरुआती दिक्कतें इसीलिए आ रही हैं क्योंकि राज्य नेतृत्व की ओर से गलत जानकारी दी जा रही है। उन्होंने कहा, “राज्य के वरिष्ठ नेता अपने वफादारों को नियुक्त कराने के लिए पर्यवेक्षकों को गलत इनपुट दे रहे हैं, जिससे अभियान प्रभावित हो रहा है।”

एक अन्य एआईसीसी नेता ने दावा किया कि राहुल गांधी द्वारा कांग्रेस में मौजूद ‘भाजपा एजेंटों’ को बाहर निकालने की सार्वजनिक घोषणा ने डीसीसी प्रमुखों के चयन की प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाया है।

उन्होंने कहा, “हर दिन कोई न कोई स्थानीय नेता दूसरे पर भाजपा एजेंट होने का आरोप लगाता है। हमें कैसे पता चले कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ? अगर हर आरोप पर लोगों को हटाना शुरू कर दें तो कांग्रेस का झंडा उठाने वाला भी कोई नहीं बचेगा।”

समर्पित कार्यकर्ताओं का मोहभंग

पार्टी सूत्रों के अनुसार, पर्यवेक्षकों को जमीनी स्तर से सही जानकारी नहीं मिल पा रही है क्योंकि पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं को या तो वर्षों तक नजरअंदाज किया गया है या वे पार्टी छोड़कर भाजपा या आम आदमी पार्टी में गए और अब वहां भी फिट नहीं बैठते।

वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी

वरिष्ठ कांग्रेस नेता मनहर पटेल ने बताया कि पिछले दो वर्षों में 75 जिला कांग्रेस नेता या तो पार्टी छोड़ चुके हैं या निष्क्रिय हो गए हैं क्योंकि उन्हें कभी सुना ही नहीं गया।

उन्होंने बताया कि कैसे प्रभावशाली सहकारी नेता नटू ठाकोर की बात राज्य कांग्रेस नेतृत्व ने नहीं सुनी, जिससे वे 2020 में भाजपा में चले गए।

पटेल ने कहा, “जब 2021 में सहकारी चुनाव हुए तो हम अमूल समेत सभी दुग्ध सहकारियों को भाजपा से हार गए, जो कभी कांग्रेस का गढ़ था।”

ढांचे में बदलाव की जरूरत

गुजरात कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष दोशी ने स्वीकार किया कि जिला पुनर्गठन योजना में “अस्थायी अड़चनें” आई हैं, लेकिन उन्होंने स्थिति की गंभीरता को कम करके बताया। उन्होंने कहा, “स्थानीय नेताओं को अब तक यकीन नहीं है कि इस बार पार्टी सच में बदलाव कर रही है। हमें उन्हें विश्वास दिलाना होगा।”

उन्होंने उम्मीद जताई कि जैसे-जैसे पर्यवेक्षक बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से बातचीत करेंगे, वैसे-वैसे समस्याएं सुलझेंगी।

क्या 10 मई की डेडलाइन पूरी होगी?

अब सवाल यह है कि क्या एआईसीसी द्वारा गठित यह बड़ी टीम 10 मई की डेडलाइन तक डीसीसी प्रमुखों के नाम तय कर पाएगी? और इससे भी अहम बात यह है कि क्या यह कवायद वाकई अगले साल के महत्वपूर्ण गुजरात विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस के संगठन को फिर से खड़ा कर पाएगी — खासकर जब यह प्रक्रिया पहले ही जमीनी स्तर पर कड़वाहट पैदा कर चुकी है?

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