मोरबी त्रासदी: 2 साल बाद भी नहीं हुआ समाधान, पीड़ितों को नहीं मिला कोई मुआवजा
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मोरबी त्रासदी: 2 साल बाद भी नहीं हुआ समाधान, पीड़ितों को नहीं मिला कोई मुआवजा

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद ओरेवा ग्रुप घायलों और पीड़ितों के परिजनों को मुआवजा देने में जल्दबाजी नहीं कर रहा है. इस बीच मुख्य आरोपी जमानत पर बाहर है.


Morbi bridge collapsed: साल 2022 के मोरबी पुल त्रासदी में अपने नौ परिवार के सदस्यों को खोने वाले सतीश रोहितभाई जाला का जीवन पहले जैसा नहीं रहा है. टैक्सी ड्राइवर रहे जाला ने इस त्रासदी में अपने दो बच्चों, अपनी दो बहनों, उनके पतियों और भतीजों और भतीजियों को खो दिया था. मुआवजे के तौर पर उन्हें राज्य सरकार से केवल 1 लाख रुपए की अनुग्रह राशि मिली है. उन्होंने द फेडरल को बताया कि दो साल हो गए हैं, जब हमारी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल गई. कुछ भी उस परिवार को वापस नहीं ला सकता जिसे मैंने खो दिया. लेकिन मैं चाहता हूं कि आरोपी को न्याय के कटघरे में लाया जाए.

बता दें कि गुजरात के मोरबी जिले में मच्छु नदी पर बने पैदल यात्री पुल के ढह जाने से 141 लोगों की मौत हो गई और 180 अन्य घायल हो गए थे. इस घटना को दो साल हो गए हैं. लेकिन पीड़ितों को अभी भी मुआवजे का इंतजार है. इस बीच पुल के रखरखाव का ठेका लेने वाली कंपनी के अधिकारी जमानत पर बाहर हैं और उनमें न तो पश्चाताप के लक्षण दिख रहे हैं, न ही वे अदालत द्वारा आदेशित मुआवजा देने के लिए तैयार हैं.

मुआवजे का अभियान

इस वर्ष 30 नवंबर को गुजरात हाई कोर्ट ने एक स्वप्रेरित जनहित याचिका (पीआईएल) की सुनवाई करते हुए पुल के रखरखाव के लिए जिम्मेदार ओरेवा ग्रुप को मुआवजा प्रक्रिया में तेजी लाने का आदेश दिया था. जून 2024 में पिछली सुनवाई के दौरान जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस प्रणव त्रिवेदी की अध्यक्षता वाली पीठ ने त्रासदी के पीड़ितों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए एक ट्रस्ट का गठन किया था और मामले में दो वकीलों को अदालत के मॉनिटर के रूप में नियुक्त किया था. अदालत ने आरोपी ओरेवा ग्रुप को निर्देश दिया था कि वह पीड़ितों को यथाशीघ्र मुआवजा देने के लिए कंपनी, ट्रस्ट और पीड़ितों के बीच त्रिपक्षीय समझौता कराए. हालांकि, आदेशों के बावजूद पीड़ितों को त्रासदी के दो साल बाद भी मुआवजे का इंतजार है.

ओरेवा ने प्रतिबद्धता जताई, फिर पीछे हट गया

गौरतलब है कि अक्टूबर 2022 में ओरेवा ग्रुप के एमडी जयसुख पटेल ने जमानत के लिए आवेदन करते हुए कंपनी की ओर से मृतकों के परिजनों को 5-5 लाख रुपये और दुर्घटना में घायल हुए लोगों को 1-1 लाख रुपये देने की पेशकश की थी. हालांकि, हाईकोर्ट ने बाद में स्वत: संज्ञान वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कंपनी को सुनवाई के चार सप्ताह के भीतर मृतकों के परिजनों को 10-10 लाख रुपये और घायलों को 2-2 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था. कोर्ट ने पटेल की जमानत याचिका भी खारिज कर दी थी. इसके बाद 8 मार्च 2023 को हुई सुनवाई में पटेल का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने अदालत को बताया कि चूंकि वह जेल में हैं. इसलिए कंपनी मुआवजा राशि जारी नहीं कर सकती.

कंपनी करे भुगतान: सुप्रीम कोर्ट

हाई कोर्ट ने कंपनी को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया था कि मुआवजे की पहली किस्त 22 मार्च 2023 तक पीड़ितों के परिवारों को दे दी जाए. साथ ही, कंपनी को उन 12 बच्चों को, जिन्होंने अपने एक माता-पिता को खो दिया है, 12-12 हजार रुपये प्रति माह का मुआवजा भी देना चाहिए. इसके अलावा कंपनी उन 22 महिलाओं को भी मुआवजा दे, जो इस त्रासदी में विधवा हो गई हैं. इसने ओरेवा से उन अनाथ बच्चों की भी देखभाल करने को कहा, जिन्होंने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया है, जब तक कि वे बालिग न हो जाएं. हालांकि, पटेल ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 22 मार्च को पटेल को ज़मानत दे दी थी. लेकिन पीड़ितों को मुआवज़ा देने के मामले में हाई कोर्ट के निर्देश को बरकरार रखा था. साथ ही कोर्ट ने मोरबी जिला और सत्र न्यायालय को पटेल को जमानत देने की शर्तें तय करने का निर्देश दिया था.

मुआवज़ा, ज़मानत की एक अनिवार्य शर्त

मोरबी सेशन कोर्ट में मामले के सरकारी वकील विजय जानी ने कहा कि पटेल को जमानत मिलने की प्राथमिक शर्त यह थी कि ओरेवा समूह उनके जेल से बाहर आने के तुरंत बाद पीड़ितों को मुआवज़ा देना शुरू कर देगा. पटेल के वकील ने कहा था कि कंपनी पैसे नहीं दे पा रही है. क्योंकि उसके प्रबंध निदेशक जेल में हैं. जानी ने बताया कि पटेल के लिए अन्य शर्तें थीं कि वह अपना पासपोर्ट जमा कराएं, एक लाख रुपये का जमानत बांड भरें, गवाहों को प्रभावित न करें. कोर्ट की पूर्व अनुमति के बिना देश न छोड़ें और सात दिनों के भीतर अपना पासपोर्ट अदालत में जमा कराएं.

उन्होंने कहा कि उन्हें अदालती सुनवाई में शामिल होने के अलावा मुकदमे के लंबित रहने तक मोरबी जिले की सीमा से बाहर रहने का भी निर्देश दिया गया है. जानी ने बताया कि हाई कोर्ट द्वारा निर्धारित मुआवजा राशि के अलावा मोरबी के कलेक्टर, जो कोर्ट द्वारा अधिकृत ट्रस्ट का हिस्सा हैं, ने ओरेवा समूह को उन 10 युवतियों के विवाह का खर्च वहन करने का निर्देश दिया था, जिन्होंने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया था.

आजीविका को नुकसान

जानी ने द फेडरल को बताया कि घटना में रीढ़ की हड्डी में चोट लगने वाले आफताब इसुभाई राठौड़ के लिए 1,40,000 रुपये की मुआवजा राशि भी निर्धारित की गई थी, साथ ही अन्य पीड़ितों द्वारा वहन किए गए चिकित्सा व्यय की प्रतिपूर्ति के लिए भी, जिनका लंबे समय तक इलाज चला. लेकिन कंपनी ने अभी तक इसमें से कुछ भी भुगतान नहीं किया है. पूर्व टैक्सी चालक ज़ाला ने कहा कि दुर्घटना के बाद से मेरी पत्नी की हालत ठीक नहीं है. उन्होंने द फेडरल को बताया कि अपने दोनों बच्चों को खोने के सदमे ने उन्हें लकवाग्रस्त कर दिया है. वह मुश्किल से बोल पाती हैं. दुर्घटना के बाद से मैं अपनी पत्नी की पूरी तरह से देखभाल कर रहा हूं. मैं काम पर वापस नहीं जा सका. ओरेवा समूह द्वारा अभी तक मुआवजा न दिए जाने पर अफसोस जताते हुए जाला ने कहा कि अगर यह धनराशि उन्हें समय पर मिल जाए तो यह उनकी पत्नी के इलाज के लिए मददगार होगी.

मोदक दान

नवंबर के मध्य में पटेल फिर से सुर्खियों में आए. इस बार तुला दान (प्रार्थना के रूप में मंदिर में किसी व्यक्ति के वजन के बराबर वस्तु दान करना) के लिए. कड़वा पाटीदार और कन्या केलवानी मंडल ट्रस्ट द्वारा आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम में पटेल को तराजू के एक तरफ बैठकर देवताओं को मोदक दान करते हुए फोटो खिंचवाया गया. आयोजकों ने कथित तौर पर कहा कि 75 किलो वजन वाले मोदक को 60,000 पाटीदार परिवारों में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाएगा.

आघात

कोर्ट द्वारा अधिकृत ट्रस्ट का हिस्सा रहे मोरबी स्थित सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र परमार ने द फेडरल को बताया कि कम से कम 40 लोग ऐसे हैं, जिन्होंने उस दिन अपने पूरे परिवार को खो दिया था और अब वे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं. नरेंद्रॅ ने पूछा कि नुकसान की भयावहता का अंदाजा लगाना असंभव है. इस त्रासदी में कम से कम 40 लोग अकेले बचे हैं, जिन्होंने उस दिन अपने परिवार को खो दिया था. वे अभी भी गमगीन हैं और उनका मानसिक स्वास्थ्य हर दिन बिगड़ता जा रहा है. ऐसे लोग भी हैं जो अकेले कमाने वाले थे. लेकिन घटना के बाद से वे काम नहीं कर पाए हैं. क्योंकि उनका लंबे समय तक इलाज चला और उन्हें स्थायी चोटें आईं. इन लोगों के लिए कौन जवाबदेह है?

परमार ने कहा कि पिछले दो वर्षों में इस मामले में पटेल सहित 10 में से नौ आरोपियों को जमानत मिल चुकी है. लेकिन पीड़ितों को अभी भी न्याय का इंतजार है. उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन कार्यालय में तत्काल वित्तीय सहायता मांगने गए कुछ लोगों के अलावा किसी को भी मुआवजा नहीं मिला है. न्याय तो दूर की बात है. गौर करने वाली बात यह है कि दो साल बाद भी आरोपियों के खिलाफ आरोप तय नहीं किए गए हैं. मोरबी जिला एवं सत्र न्यायालय में सुनवाई के दौरान मामला तीन सरकारी वकीलों के बीच स्थानांतरित हो चुका है. 2022 में सरकार द्वारा नियुक्त पहले सरकारी वकील एसके वोरा ने दो सुनवाई में उपस्थित न होने के बाद इस्तीफा दे दिया. दूसरे सरकारी वकील के भी सुनवाई में उपस्थित न होने के बाद विजय जानी को नियुक्त किया गया और वे अभी भी मामले को संभाल रहे हैं.

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