हरियाणा में विश्नोई समाज का कितना जोर, चुनावी तारीख तक बदल गई
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हरियाणा में विश्नोई समाज का कितना जोर, चुनावी तारीख तक बदल गई

हरियाणा के हिसार, सिरसा और फतेहाबाद जिले बिश्वोई बहुल हैं। इस समाज से जुड़े लोग करीब 11 सीट के नतीजों को प्रभावित करते हैं।


Bishnoi Community in Haryana: किसी समाज का असर कितना अधिक हो सकता है उसे आप चुनाव आयोग के फैसले से समझ सकते हैं। हरियाणा में चुनाव की तारीख पहले 1 अक्तूबर थी। लेकिन अब चुनाव पांच अक्तूबर को होंगे। तारीख बदलने के लिए बीजेपी और इनेलो दोनों की तरफ से अर्जी लगाई गई थी। हवाला लंबे वीकेंड का था। राजनीतिक दलों का तर्क था कि इससे चुनाव के मतदान प्रतिशत में कमी आएगी। इसके अलावा एक पर्व का भी जिक्र किया गया था जिसे हरियाणा में विश्नोई समाज मनाता है। विश्नोई समाज के लोग अपने आराध्य के दर्शन के लिए राजस्थान जाते हैं। अब बात जब विश्नोई समाज की हो रही है कि इस समाज का हरियाणा की राजनीति में जाट समाज की तरह कितना असर है। आखिर वो कौन सी वजह है कि चुनाव आयोग द्वारा तारीखों में बदलाव के बाद कांग्रेस या दूसरे दलों की तरफ से विरोध नहीं हुआ।

11 विधानसभा सीटों पर असर
अगर आप हरियाणा के सियासी चौसर को देखें तो कुल 90 सीटें हैं। सरकार बनाने के लिए किसी भी राजनीतिक दल को 46 सीट की जरूरत होगी। यानी कि कुल लड़ाई कम से कम 46 सीट की है। राजनीति की परीक्षा में उम्मीदवार विकास, वादे और दावे का नाम लेकर अपने विरोधियों की खामी गिनाकर जनता के दिल और दिमाग में उतरने की कोशिश करते हैं। जो राजनीतिक चेहरा अपने प्रयासों में कामयाब होता है वो चंडीगढ़ स्थित विधानसभा में बैठता है जिसे कामयाबी नहीं मिलती उसे पांच और साल का इंतजार करना पड़ता है।
इन जिलों में दबदबा
अगर बिश्नोई समाज की बात करें तो हिसार, सिरसा और फतेहाबाद वो जिले हैं जहां इस समाज का असर है। जैसे सोनीपत, रोहतक, जींद में जाट समाज का है। हिसार, सिरसा और फतेहाबाद में आने वाली करीब 11 विधानसभाओं में वोटर्स की संख्या 2 लाख है। आदमपुर, ऐलनाबाद, टोहाना, सिरसा, उकलाना, नलवा, फतेहाबाद, बरवाला, डबवाली, लोहारू और हिसार में इनका असर है। इसका अर्थ यह है कि अगर आप इस समाज को साधने में कामयाब हुए तब नतीजा आपके पक्ष में होगा।
बिश्नोई समाज का मतलब
अगर आप हरियाणा के इतिहास से थोड़ा भी वाकिफ होंगे तो गुरु जांभेश्वर का नाम सुना होगा। यह विश्वोई समाज के पूज्य हैं। अक्तूबर के महीने गुरु की याद में आसोज महोत्सव हर साल राजस्थान के मुकाम में होता। बिश्वोई समाज के मुताबिक करीब 450 साल पहले राजस्थान में अकाल पड़ा था। उस समय गुरु जांभेश्वर के चाचा पूल्होजाी पंवार समराथल इलाके में आए थे। जांभो जी ने ही पूल्हो जी के धर्म नियमों की आचार संहिता बनाई। ऐसा कहा जाता है कि जांभोजी ने अपने चाचा अपनी दिव्य दृष्टि दी। अकाल की वजह से बिश्नोई समाज के लोग देश के दूसरे हिस्सों में चल गए।
राजनीतिक तौर पर सक्रिय समाज
इस समाज का गठन 1919 में यूपी के नगीना में हुआ था. गुरु जांभेश्ववर सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़ने रका आह्वान करते थे। उन्होंने बहुदेववाद, नरबलि, पिंडदान को नकारा। कर्मवाद, विचारवाद और अच्छे आचरण को आधार बनाया। अपनी संपत्ति का दान दे दिया और बीकानेर जिले के समराथल चले गए।बिश्नोई शब्द बिस और नोई से है। बिस का अर्थ 20 और नोई का अर्थ 9 से है। दोनों को मिलाकर 29 होता है। लिहाजा इस समाज ने 29 नियमों की आचार संहिता बनाई। इस समाज से जुड़े लोग गुरु जांभेश्वर को भगवान विष्णु का अवतार भी मानते हैं। अगर बिश्वोई समाज को देखें तो ये मूल रूप से जाट रहे हैं हालांकि समाज की दूसरी जातियां भी इसकी हिस्सा हैं। चुनाव में पारंपरिक तौर पर ये कांग्रेस से जुड़े रहे हैं हालांकि बदलते समय के साथ इनके मिजाज में बदलाव हुआ और टैक्टिकल यानी मौके और जरूरत के हिसाब से निर्णय लेते रहे हैं।
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