हरियाणा में 36 बिरादरी में किसने किसकी कितनी भरी झोली
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हरियाणा में 36 बिरादरी में किसने किसकी कितनी भरी झोली

हरियाणा चुनाव में बीजेपी की तीसरी बार सरकार बनने जा रही है, जो अब तक के इतिहास में पहली बार होने जा रहा है. इस चुनाव में बीजेपी ने सभी 36 बिरादरी को साथ लेकर चलने की बात कही थी, वो वहीँ कांग्रेस के खिलाफ जाट बनाम नॉन जाट का माहौल भी बनाया.


Haryana Elections 2024: हरियाणा चुनाव में बीजेपी की एतिहासिक जीत के बाद अब वोटरों के आंकड़ों पर गौर किया जा रहा है. जहाँ कांग्रेस ने जवान यानी अग्निवीर, किसान और पहलवान को मुद्दा बनाकर 10 साल की सत्ता विरोधी लहर को अपने पक्ष में करने का सपना संजोया तो वहीँ बीजेपी ने सभी 36 बिरादरी को साथ लेकर चलने की बात कही. जिस हिसाब से चुनाव परिणाम आये हैं, उससे ऐसा प्र्तातीत होता है कि बीजेपी ने अपने खिलाफ 10 साल की सत्ता विरोधी लहर को इस तरह से बदला जैसे प्रदेश की जनता ने हुडा शासन के 10 साल के विरोध में वोट किया हो.


जाति वार आंकड़े
परिणाम को आये हुए दो दिन बीत चुके हैं. चुनाव आयोग की तरफ से अलग अलग श्रेणी के आंकड़े भी सामने आने लगे हैं. हरियाणा में चुनाव जाति के आधार भी हुआ. जहाँ कांग्रेस ने भूपिंदर हुडा को इस चुनाव में आगे किया तो पूरे प्रदेश में यही सन्देश गया कि मुख्यमंत्री के लिया जाट चेहरे को आगे किया गया है.
बीजेपी ने इसी को अपना हथियार बनाते हुए जाट बनाम नॉन जाट की बाजी खेली लेकिन जाटों को भी पूरी तरह से नाराज़ नहीं होने दिया.
इतना ही नहीं कुमारी शेल्जा को जिस तरह से प्रदेश के विधानसभा चुनाव से दूर सा रखा गया, जबकि वो बार बार मुख्यमंत्री बनने की इक्छा जाहिर कर चुकी थी लेकिन इसके बावजूद उनकी इस इक्छा को लेकर पार्टी का नेतृत्व शांत शिथिल पड़ा रहा, जिससे जनता के बीच ये सन्देश गया कि हरियाणा में कांग्रेस दलित चेहरे को नहीं बल्कि जाट चेहरे को ज्यादा महत्व दे रही है. जबकि लोकसभा चुनाव में राहुल गाँधी ने बीजेपी घेरने के लिए ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ा था, जहाँ वो हर मामले में दलित का पक्ष लेते दिखते थे. इन सब बातों का असर भी हरियाणा चुनाव में देखने को मिला.
हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल ने बसपा के साथ गठबंधन किया और जेजेपी ने आजाद समाज पार्टी के साथ. यानी यहाँ पर जाट और एससी वोटों को साधने का गठजोड़ तैयार हुआ. हरियाणा में एससी वोटर को कांग्रेस का पक्षधर समझा जाता था, ख़ास तौर से जाटव वोटर को.
इन सब समीकरणों से पार पाने के लिए बीजेपी ने जहाँ एक ओर जाट नॉन जाट पर दांव लगाया तो वहीँ एससी वर्ग में भी जाटव और नॉन जाटव कर दिया. भाजपा ने एससी वर्ग में ख़ासतौर से नॉन जाटव को अपने पक्ष में साधना शुरू किया. उन्हें विश्वास दिलाया कि सरकारी नौकरियों में उनका प्रतिनिधित्व भी जाटव वर्ग का समकक्ष ही किया जाएगा. इस बात का प्रभाव देखने को मिला और नॉन जाटव वर्ग वोटर के बड़े तब्गे ने बीजेपी को वोट दिया.
आंकड़ों पर गौर करें तो बीजेपी को पंजाबी खत्री, ब्राह्मण, राजपूत, गैर जाट ओबीसी ( यादवों )का एकमुश्त वोट मिला, वहीँ कांग्रेस को जाट, गुर्जर, दलित बिरादरी में जाटव, सिख और मुस्लिम ने भरपूर समर्थन दिया.
इस जाट नॉन जाट की राजनीती में बीजेपी को गैर जाट वोटर का समर्थन मिलने से तीन फीसदी वोट का फायदा मिला, जिसकी बदोलत बीजेपी को पिछले चुनाव के मुकाबले सीधे 8 सीटों का फायदा हुआ.

किस वर्ग ने किस दल को कितना वोट दिया
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 की बात करें तो क्षेत्रीय पार्टियों को बहुत बड़ा नुक्सान देखने को मिला, जिसकी वजह से इन क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व ही खतरे में आ गया है. जेजेपी और असपा शून्य पर रहे जबकि इनेलो और बसपा को महज 2 ही सीट मिलीं. इनेलो और जेजेपी को जाटों की पार्टी के तौर पर ही जाना जाता रहा है. लेकिन इस चुनाव में इन दोनों पार्टियों का जाट वोटर बीजेपी और कांग्रेस में बंट गया. जाटों की बात करें तो 53 प्रतिशत वोटर कांग्रेस के साथ तो 28 प्रतिशत बीजेपी के साथ गया. वहीँ इनेलो को महज 6 फीसदी वोट ही मिला.

एससी वोट
एससी वोट की बात करें तो बसपा और असपा का साथ लेने से इनेलो और जेजेपी को कोई फायदा नहीं हुआ, हाँ इतना जरुर कह सकते हैं कि जो थोड़ा बहुत वोट मिला, उससे कांग्रेस को नुक्सान हुआ. बहुजन समाज पार्टी के समर्थक माने जाने वाले 50 पर्सेंट जाटव वोट कांग्रेस के पाले में चले गए जबकि 35 प्रतिशत वोटरों ने बीजेपी को वोट दिया. वहीँ इनेलो और बसपा गठबंधन को सिर्फ 6 प्रतिशत जाटव वोट ही मिले. वहीँ एससी वर्ग में गैर जाटव वोट की बात करें तो 47 प्रतिशत ने बीजेपी पर तो 33 प्रतिशत ने कांग्रेस को वोट दिया. गैर जाटव दलित बिरादरी का लगभग 8 प्रतिशत वोट इनेलो-बीएसपी गठबंधन और 13 प्रतिशत वोट अन्यों के खातों में गया.

ब्राह्मण, सवर्ण और पंजाबी खत्री वोटर ने भगवा को चुना
अगर बात करे सवर्णों की तो हरियाणा चुनाव में सवर्णों ने ये बात साबित कर दी कि बीजेपी उन्हीं की पार्टी है. उन्होंने दिल खोलकर बीजेपी का साथ दिया. अगर जातिवार बात करें तो 51 प्रतिशत ब्राह्मण वोट बीजेपी को मिला जबकि 31 प्रतिशत कांग्रेस के साथ. जो राजपूत वर्ग लोकसभा में बीजेपी से नाराजगी जता रहा था उसी वर्ग ने विधानसभा चुनाव में 59 पर्सेंट वोट ( अन्य सवर्ण जातियां भी शामिल हैं ) बीजेपी को दिया. 22 प्रतिशत कांग्रेस के पाले में गया. इनेलो बीएसपी और अन्य दलों को कुल 18 प्रतिशत ब्राह्मण और 19 प्रतिशत अन्य सवर्ण जातियों का वोट मिला.
वहीँ पंजाबी खत्री वोटर ने बड़े स्तर पर बीजेपी को वोट दिया. 68 प्रतिशत वोट बीजेपी को, 18 प्रतिशत कांग्रेस और 14 फीसदी अन्य दलों को.

7 प्रतिशत मुस्लिम वोटर ने बीजेपी को दिया वोट
मुस्लिम वोटर की बात जब भी आती है तो उसे पूरी तरह से बीजेपी विरोधी बताया जाता है लेकिन इस चुनाव में बीजेपी को 7 प्रतिशत मुस्लिम वोटर ने वोट दिया. कांग्रेस को 59 प्रतिशत और 3 प्रतिशत वोटर इनेलो और बसपा के साथ गया जबकि 31 प्रतिशत वोटर ने अन्यों को वोट दिया.


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