
पंजाब में 37 साल बाद आई भीषण बाढ़, पीड़ित बोले कहाँ है मान सरकार ?
द फ़ेडरल देश की टीम इस समय पंजाब में ग्राउंड पर है.बाढ़ से क्या नुस्कान हुआ है और क्या उन तक सरकारी मदद पहुँच रही है, ये सब जानने का प्रयास है. ये रिपोर्ट कपूरथला के सुल्तानपुर लोधी तहसील से.
Punjab Floods : पंजाब में इस बार लगभग 37 साल बाद आई भीषण बाढ़ ने जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है। खासकर ग्रामीण इलाकों में हालात बेहद गंभीर हैं। गांवों में चारों तरफ पानी फैला हुआ है, खेत बर्बाद हो गए हैं और लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। बड़े पैमाने पर फसलों और पशुओं की हानि हुई है।
द फ़ेडरल देश की टीम ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया। इसी कड़ी में टीम कपूरथला जिले की सुल्तानपुर लोधी तहसील पहुंची और वहां के ग्रामीणों से उनकी आपबीती जानी। लोगों का कहना है कि इस बाढ़ ने उनकी सालों की मेहनत पर पानी फेर दिया है। धान और अन्य फसलें पूरी तरह नष्ट हो चुकी हैं, कई मवेशी मर गए हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि सरकारी मदद अब तक नहीं मिली है।
गांव वालों का कहना है कि केवल कुछ गैर-सरकारी संगठन और स्थानीय लोग ही आगे आए हैं, जबकि प्रशासन और सरकार पूरी तरह नदारद है। इस वजह से जनता में नाराज़गी भी साफ दिखाई दे रही है। ग्रामीणों का कहना है कि वे लगातार मदद की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन अब तक किसी तरह की ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
सरकार की ओर से सिर्फ इतना कहा गया है कि बाढ़ का पानी पूरी तरह उतरने के बाद नुकसान का आकलन किया जाएगा और उसी आधार पर मुआवजे की योजना बनाई जाएगी। लेकिन तब तक ग्रामीणों को अपने हाल पर ही छोड़ दिया गया है। इस रवैये से लोगों में निराशा गहरी हो रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि पंजाब जैसे कृषि प्रधान राज्य में बाढ़ से हुई तबाही का असर केवल किसानों पर ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। फसलों का भारी नुकसान राज्य की खाद्य आपूर्ति और किसानों की आय दोनों को प्रभावित करेगा।
ग्रामीणों की मांग है कि सरकार तुरंत राहत सामग्री उपलब्ध कराए, मवेशियों और फसलों के नुकसान का आकलन किए बिना अंतरिम मुआवजा दिया जाए और जल्द से जल्द पुनर्वास कार्य शुरू किया जाए।
फिलहाल, बाढ़ प्रभावित इलाके मदद की बाट जोह रहे हैं और लोग अपने दम पर जीवन को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या सरकार उनकी इस पीड़ा को समय रहते समझेगी और ठोस कदम उठाएगी, या फिर ग्रामीणों को लंबे समय तक अपनी समस्याओं से अकेले ही जूझना पड़ेगा?
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