निपट गए कुशवाहा हम को भी सिर्फ एक सीट,जानें- चिराग कैसे जीत गए सभी सीटें
बिहार में एनडीए के सहयोगियों में सबसे शानदार प्रदर्शन चिराग पासवान की रही. आखिर उनकी कामयाबी के पीछे की वजह क्या है उसे समझने की कोशिश करेंगे.
Chirag Paswan Victory Reason: लोकसभा चुनाव 2024 में अगर आप बिहार के नतीजों को देखें तो विश्लेषण करने के कई प्वाइंट्स हैं, मसलन राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा अपना चुनाव क्यों हार गए. चिराग पासवान की स्ट्राइक रेट 100 फीसद रही. तेजस्वी यादव ने मेहनत की लेकिन नतीजा बेहतर नहीं आया. बीजेपी और जेडीयू भी 2019 के प्रदर्शन को बरकरार नहीं रख सकी, हिंदुस्तान अवाम मोर्चा के जीतनराम मांझी के लिए नरेंद्र मोदी मददगार बने.
इन सात सीटों पर थी खास नजर
बिहार में सात सीटें गया, काराकाट, खगड़िया, समस्तीपुर, हाजीपुर, जमुई और वैशाली सीटों पर हर एक नजर थी. दरअसल खगड़िया, समस्तीपुर, हाजीपुर, जमुई और वैशाली सीट पर चिराग पासवान की पार्टी, गया में हम और काराकाट में आरएलएम चुनाव लड़ रही थी. रिजल्ट आने के पहले तक लोग कहा करते थे कि चिराग के लिए सभी सीटों को जीत पाना मुमकिन नहीं है. लेकिन नतीजों ने विरोधियों की जुबां पर ताला लगा दिया. अब सवाल यह है कि चिराग को कामयाबी कैसे मिली.
काराकाट में हार गए उपेंद्र कुशवाहा
बता दें कि काराकाट लोकसभा सीट से उपेंद्र कुशवाहा चुनाव लड़ रहे थे. वो एनडीए की तरफ से अधिकृत उम्मीदवार थे. हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा. वो अपनी हार के लिए कहते हैं कि यह छिपी हुई बात नहीं है कि किसकी वजह से वो चुनाव हार गए. वो सीधे तौर पर नाम लेने से तो बचते हैं. लेकिन इशारा पवन सिंह की तरफ करते हैं. पवन सिंह ने इस चुनाव में निर्दलीय किस्मत आजमायी थी.हाल ही में उन्होंने लालू प्रसाद यादव की जमकर तारीफ की है लिहाजा इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि वो पाला भी बदल सकते हैं. इन सबके बीच बात चिराग पासवान की करेंगे जिनका स्ट्राइक रेट 100 फीसद रहा.
सियासी पंडित कहते हैं कि इस दफा चिराग पासवान ने उम्मीदवारों के चयन प्रक्रिया में शैक्षणिक योग्यता को महत्व दिया गया. महिवा उम्मीदवारों को तरजीह दी गई. उदाहरण के लिए समस्तीपुर से शांभवी चौधरी का चयन खास है. शांभवी चौधरी दलित समाज से आती हैं. लेकिन उनके पति भूमिहार हैं. चिराग पासवान ने इस दफा किसी भूमिहार को टिकट नहीं दिया था. लेकिन शांभवी के जरिए उस समाज को भी साधने की कोशिश की गई क्योंकि उनके पति भूमिहार जाति से हैं.
बिहार फर्स्ट का नारा आया काम
चिराग पासवान अपनी सभी सभाओं में बिहार फर्स्ट और बिहारी फर्स्ट के विजन को रखते थे. वैसे तो यह विजन 2021 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी रख चुके थे. लेकिन उसका कोई खास फायदा उस वक्त नहीं मिला था. लेकिन इस दफा इसका फायदा मिलने के साथ जेडीयू का भी समर्थन मिला. खासतौर से समस्तीपुर और खगड़िया में जेडीयू का वोट चिराग की पार्टी के लिए ट्रांसफर हुआ. सीएम नीतीश कुमार ने जमुई, हाजीपुर और वैशाली में चुनावी सभा को संबोधित भी किया था. इसके जरिए यह संदेश देने की कोशिश की इस दफा वो पूरी तरह से चिराग के साथ हैं. इसके अलावा बिहार सरकार में मंत्री जैसे विजय चौधरी और अशोक चौधरी का भी साथ मिला.
नरेंद्र मोदी फैक्टर
इसके अलावा नरेंद्र मोदी का फैक्टर भी अहम रहा. चिराग पासवान की पार्टी से जुड़े लोगों को लगा कि जब पीएम मोदी खुद उनके लिए खड़े हैं तो इससे बड़ी बात क्या हो सकती है. मोदी के साथ आने की वजह से कार्यकर्ताओं के जोश में कई गुणा बढ़ोतरी हुई. दलित समाज की राजनीति पर नजर रखने वाले कहते हैं कि चिराग की जीत को आप किसी संख्या में मत बांधिए. उनकी जीत के बाद दलित समाज का भरोसा चिराग पासवान पर बढ़ा है और आने वाले समय में बिहार की राजनीति में आप बड़े पैमाने पर बदलाव भी देखेंगे.