
हैदराबाद के कूड़े का जहर: जवाहर नगर के निवासियों की बदतर होती जिंदगी
जैसे-जैसे अदालतें, पर्यावरण संगठन और नगर निगम इस मामले में संघर्ष कर रहे हैं। वहीं, स्थानीय निवासी दिन-ब-दिन बढ़ते स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहे हैं। खासकर बच्चों की हालत सबसे चिंताजनक है, जो जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं और प्रदूषित पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं।
कूड़े के ढेर की गंध इतनी तीव्र है कि वह नजर आने से पहले ही महसूस हो जाती है। पिछले लगभग तीन दशकों से हैदराबाद, जो 2024-25 स्वच्छ सर्वेक्षण में एक मिलियन से अधिक आबादी वाले शहरों में छठे स्थान पर है और 7-स्टार गार्बेज-फ्री सर्टिफिकेशन प्राप्त कर चुका है, खुद को साफ-सुथरा रखने के लिए पड़ोसी इलाके जवाहर नगर पर बोझ डाल रहा है।
351 एकड़ क्षेत्र में फैला जवाहर नगर डंपिंग यार्ड रोजाना अनुमानित 8,500 से 12,000 टन म्युनिसिपल कचरा प्राप्त करता है। जनवरी में, तेलंगाना सरकार ने मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के निर्देश पर शहर के चार कोनों में residential क्षेत्र से दूर चार डंप यार्ड बनाने का आदेश दिया था। लेकिन कई महीने बाद भी जवाहर नगर, जो हैदराबाद से 31 किलोमीटर दूर है, शहर के कचरे के बोझ तले दबा हुआ है।
स्वास्थ्य और जीवन की कीमत
जवाहर नगर ही नहीं, आसपास के राजीव गांधी कर्मिक नगर, अंबेडकर नगर, मलकरेम, गब्बिलाल पेटा, चेर्याल, हरिदास पल्लि, अहमद गुड़ा, तिम्मैयापल्ली, दममयगुड़ा, नागारम और रामपल्ली जैसे क्षेत्रों के निवासी इस समस्या का सामना कर रहे हैं। 30 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर अनिल कुमार सत्तुपल्ली ने 2021 में दममयगुड़ा में मकान खरीदा था, लेकिन वहां की बदबू और प्रदूषण से अब वह अपना मकान बेच भी नहीं पा रहे। उन्होंने कहा कि मेरी सेहत खराब हो गई है, लगातार बदबू के साथ जीना मुश्किल हो गया है। मैं सरकार से मांग करता हूं कि वह इतना कूड़ा इस डंपिंग यार्ड में न लाए।
प्रदूषण की गंध से परे: स्वास्थ्य संकट और जल प्रदूषण
कूड़े से निकलने वाली बदबू के अलावा, मक्खियां और मच्छर कूड़े से उत्पन्न रोगाणुओं को पास के घरों तक पहुंचा रहे हैं। निवासी लीक लीक (leachate) प्रदूषण, टॉक्सिक पानी के स्थानीय जल स्रोतों में रिसाव और सूखे कूड़े को जलाकर बिजली उत्पादन से निकलने वाले धुएं से होने वाली बीमारियों से भी पीड़ित हैं।केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) को दी गई रिपोर्ट में बताया कि जवाहर नगर के कूड़ा से बिजली बनाने वाले संयंत्र के फ्लाई ऐश में कैडमियम का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन की soil सीमा से 1000 गुना अधिक है।
जल स्रोतों का प्रदूषित होना
लीचेट कूड़ा निकासी से मलकरेम झील, हरिदास पल्लि झील, चेर्याल झील, दममयगुड़ा झील सहित कई जलाशयों का पानी काला और विषाक्त हो गया है। स्थानीय लोग पहले से ही प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। दममयगुड़ा के दैनिक मजदूर बोया गंगापुरी ने बताया, "कूड़े के प्रदूषण के कारण मेरे हाथ और पैरों पर घाव हो गए हैं। इलाज करवाया, पर कोई फायदा नहीं। इससे काम करना भी मुश्किल हो गया है।"
स्थानीय निवासियों की आवाज
राजीव गांधी नगर की बच्चू सुजाता ने कहा कि 2017 में मकान बनाया था, तब से बदबू और प्रदूषित पानी के साथ रह रहे हैं। रात को नींद नहीं आती, चलने पर जलन होती है, स्वास्थ्य लगातार बिगड़ रहा है। मकान बेचने की कोशिश भी की, लेकिन कोई नहीं खरीदता।
चिकित्सकों का दृष्टिकोण
आश्रिता अस्पताल, मल्लापुर के विशेषज्ञ डॉक्टर एस. राममोहन् राव ने कहा कि जवाहर नगर डंपिंग यार्ड से निकलने वाला प्रदूषण आसपास के लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है। कई मरीज सांस लेने में दिक्कत, त्वचा रोग और जलने की शिकायत लेकर आते हैं।
नगर निगम और कचरा प्रबंधन
ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (GHMC) निजी कंपनी Re Sustainability (पूर्व में Ramky) को प्रति टन ₹1,453 देकर कूड़ा प्रबंधन का काम देती है। खाद्य और कसाई घरों का कचरा बेच दिया जाता है, औद्योगिक व अस्पताल कचरे को प्लांटों में प्रोसेस किया जाता है और सूखे कचरे को RDF (रिफ्यूज़-डेराइव्ड फ्यूल) के रूप में बिजली उत्पादन में इस्तेमाल किया जाता है।
प्रदूषण और शिकायतें
स्थानीय निवासी केशोजु भाग्यलक्ष्मी ने बताया कि रात में पावर प्लांट से काला धुआं निकलता है और तेज आवाज होती है, जो मांस जलने जैसी गंध देता है। कई बार शिकायत की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं। निवासी संगठन भी लगातार शिकायतें करते रहे हैं, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। राजीव गांधी कर्मिक नगर के बंदारी नरसिम्हुलु ने कहा कि हमने एनजीटी और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। यहां रहना मुश्किल हो गया है।
पर्यावरण कार्यकर्ताओं की मांग
पर्यावरण और सामाजिक कार्यकर्ता लुबना सरवथ ने कहा कि कूड़ा घर-घर पर ही गीला और सूखा अलग करके स्थानीय स्तर पर निपटाया जाना चाहिए। केंद्रित कचरा प्रबंधन से जवाहर नगर के निवासियों की जान खतरे में है।