नागरिकता से पहले पहचान! पश्चिम बंगाल में घुसपैठ पर गरमाई राजनीति
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नागरिकता से पहले पहचान! पश्चिम बंगाल में घुसपैठ पर गरमाई राजनीति

कोलकाता में ममता और शुभेंदु की अलग-अलग रैलियों ने बंगाल चुनाव से पहले पहचान, नागरिकता और घुसपैठ जैसे मुद्दों पर सियासी जंग तेज कर दी है।


बुधवार की दोपहर कोलकाता की सड़कों पर दो समानांतर राजनीतिक रैलियों का गवाह बनी, जिसने पश्चिम बंगाल की आगामी विधानसभा चुनावों की दिशा का संकेत दे दिया। एक ओर जहां तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख ममता बनर्जी ने बंगाली प्रवासी मजदूरों को "बांग्लादेशी" बताए जाने के कथित आरोपों के खिलाफ मोर्चा खोला, वहीं दूसरी ओर भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ने मतदाता सूची की गहन जांच की मांग को लेकर चुनाव आयोग कार्यालय की ओर मार्च किया।

चुनावी झलक

इन दोनों रैलियों से यह स्पष्ट होता है कि राज्य का अगला चुनाव प्रदर्शन से ज़्यादा पहचान की राजनीति पर लड़ा जाएगा। दोनों ही पक्षों ने बंगाली भाषी प्रवासी मजदूरों को अपने-अपने राजनीतिक विमर्श का केंद्र बनाया है। जहां टीएमसी उन्हें सांस्कृतिक गौरव और क्षेत्रीय अस्मिता का प्रतीक मान रही है, वहीं भाजपा उन्हें अवैध घुसपैठ के संदिग्ध दायरे में देख रही है।

अवैध प्रवासियों की धरपकड़

भाजपा शासित राज्यों में बांग्लादेशी और रोहिंग्या नागरिकों की पहचान और निर्वासन को लेकर गृह मंत्रालय के निर्देश पर अभियान चलाया जा रहा है। यह कार्रवाई 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद तेज हुई, जिसमें 26 लोग मारे गए थे। आदेश के तहत स्पेशल टास्क फोर्स (STF) को 30 दिनों के भीतर जांच पूरी कर संदिग्धों को बिना कानूनी प्रक्रिया के सीमा पार कराना था।

अवैध निर्वासन पर राजनीति गर्म

हालात तब और बिगड़े जब कुछ भाजपा शासित राज्यों ने बंगाली भाषी भारतीय नागरिकों को ही दस्तावेजों के बावजूद अवैध बताकर हिरासत में लिया और कुछ को तो बगैर किसी सबूत के निर्वासित भी कर दिया गया। यह भारतीय नागरिकता की गरिमा के साथ खुलेआम मज़ाक था। निर्वासित लोगों में कुछ ने बांग्लादेश से अपने परिजनों से संपर्क कर वापस लौटने का रास्ता तलाशा।

MEA का बेतुका रवैया और अस्पष्ट आंकड़े

विदेश मंत्रालय (MEA) ने मई 2025 में बताया कि भारत ने बांग्लादेश से 2,369 अवैध प्रवासियों की नागरिकता की पुष्टि करने को कहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2000 से अधिक लोगों को बांग्लादेश निर्वासित किया जा चुका है। ओडिशा, दिल्ली, असम, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में जिन संदिग्धों को हिरासत में लिया गया, उनसे उनके जन्म प्रमाणपत्र और पुश्तैनी ज़मीन के कागजात मांगे गए जो आमतौर पर ग्रामीण मजदूरों के पास नहीं होते।

असम में बंगालियों पर कार्रवाई

दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र में जय हिंद कॉलोनी के बंगाली निवासियों की बिजली और पानी की आपूर्ति काट दी गई, जबकि उन पर बिजली चोरी और बांग्लादेशी होने का आरोप लगा। इसी तरह असम में 52 वर्षीय आरती दास, जो 1991 में शादी के बाद बंगाल से असम गई थीं, को विदेशी घोषित कर लौटना पड़ा, जबकि वे कूचबिहार में जन्मीं और उनके पिता स्कूल शिक्षक थे।

धार्मिक पहचान से आगे बढ़ा विवाद

कुछ घटनाओं में टारगेट हुए प्रवासी बंगाली हिंदू थे, जिससे यह मुद्दा धार्मिक पहचान से आगे बंगाली पहचान का बन गया। टीएमसी ने इस मौके को भाजपा पर बांग्ला विरोधी मानसिकता का आरोप लगाने में भुनाया।ममता बनर्जी ने कोलकाता के मध्य में 3 किमी लंबे ‘बंगाली गौरव मार्च’ के बाद कहा बंगाल की आत्मा भाजपा की विभाजनकारी विचारधारा से मेल नहीं खाती। अहंकार में अंधे ज़मींदार अब वैध बंगाली नागरिकों को अवैध कह रहे हैं।"

टीएमसी की रणनीति

2021 के चुनाव में टीएमसी ने भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे के जवाब में बंगाली अस्मिता का सफल प्रयोग किया था। पार्टी अब मान रही है कि बंगालियों पर हालिया हमले से ममता बनर्जी को चौथी बार मुख्यमंत्री बनाने का जनसमर्थन फिर मिल सकता है।ममता ने चेतावनी दी कि अगर भाजपा सोचती है कि वो बंगालियों को सताकर चुनाव जीत लेगी या संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर 2026 में जनादेश चुरा लेगी, तो यह उनकी गलतफहमी है।

भाजपा की रणनीति

भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ने दावा किया कि यदि पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षा (SIR) कराई जाए तो 90 लाख रोहिंग्या घुसपैठिये पकड़े जाएंगे। उन्होंने चुनाव आयोग से दरवाज़ा-दरवाज़ा जाकर मतदाता सूची की जांच की मांग की। भाजपा का मानना है कि अवैध प्रवासियों की आड़ में धार्मिक जनसांख्यिकीय बदलाव की आशंका से हिंदू वोट एकजुट होंगे।

कड़वी सच्चाई

जहां भाजपा के अवैध प्रवास और जनसंख्या असंतुलन के दावे अतिरंजित लगते हैं, वहीं राज्य में अवैध दस्तावेज बनवाकर बांग्लादेशियों को भारत में प्रवेश दिलाने वाले गिरोह भी सक्रिय हैं। हाल ही में पाकिस्तानी नागरिक अजाद मलिक की गिरफ्तारी इसका उदाहरण है, जो बांग्लादेशियों को फर्जी कागज़ दिलवाता था।

पहचान की लड़ाई में असली मुद्दे गायब

बुधवार की दोनों रैलियां आगामी चुनाव की ध्रुवीकृत राजनीति का ट्रेलर हैं। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि दोनों ही दल सुविधाजनक नैरेटिव गढ़ने में व्यस्त हैं और असल तथ्यों व जन समस्याओं से दूर खड़े हैं।आगामी विधानसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल का सबसे बड़ा सवाल यही रहेगा क्या यह पहचान की जंग है या नागरिकता की राजनीति?

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