
मद्रास हाईकोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव, INDIA गठबंधन के सांसदों ने दीपम विवाद पर दिया प्रस्ताव
1 दिसंबर को कर्थिगई दीपम अनुष्ठान पर दिए गए आदेश के आधार पर 120 से अधिक विपक्षी सांसदों ने उन पर न्यायिक अतिक्रमण और वैचारिक पक्षपात का आरोप लगाया है।
इंडिया गठबंधन के 120 से अधिक सांसदों ने मंगलवार (9 दिसंबर) को मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जी. आर. स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग नोटिस लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को सौंपा।
जज पर न्यायिक अतिक्रमण का आरोप
DMK के नेतृत्व में और कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, CPI(M) तथा गठबंधन के अन्य सहयोगियों के समर्थन से यह प्रस्ताव दायर किया गया है। इसमें जस्टिस स्वामीनाथन पर “न्यायिक अतिक्रमण” और “दुर्व्यवहार की श्रेणी में आने वाले कृत्य” करने का आरोप लगाया गया है। यह आरोप उनके 1 दिसंबर के उस आदेश से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने मदुरै के तिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी पर स्थित मंदिर में हिंदू भक्तों को पारंपरिक कर्थिगई दीपम जलाने की अनुमति दी थी—जहां सदियों पुरानी एक दरगाह भी स्थित है।
DMK संसदीय दल की नेता और तूतीकोरिन सांसद कनिमोळी ने स्पीकर को यह नोटिस सौंपा। उनके साथ प्रियंका गांधी वाड्रा, अखिलेश यादव, सु वेंकटेशन, वैथिलिंगम और कई अन्य विपक्षी सांसद भी थे।
महाभियोग प्रस्ताव में मुख्य आरोप
107 लोकसभा सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित और 9 दिसंबर दिनांकित इस प्रस्ताव में जस्टिस स्वामीनाथन (जो 2017 में मद्रास हाई कोर्ट में नियुक्त हुए) को हटाने की मांग की गई है। दस्तावेज़ में न्यायिक निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। मुख्य आरोप इस प्रकार हैं—
निष्पक्षता पर संदेह: कहा गया है कि उनकी कार्यशैली उनकी निष्पक्षता, पारदर्शिता और न्यायपालिका की धर्मनिरपेक्ष कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
अनुचित पक्षपात: आरोप है कि उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ता एम. श्रीचरण रंगनाथन को मामलों में अनुचित प्राथमिकता दी और एक विशेष समुदाय के अधिवक्ताओं से पक्षपातपूर्ण व्यवहार किया।
वैचारिक पक्षपात: कहा गया है कि उनके कुछ फैसले एक विशिष्ट राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित दिखाई देते हैं, जो भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के विपरीत है।
नोटिस में यह भी उल्लेख है कि लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों द्वारा राष्ट्रपति और भारत के मुख्य न्यायाधीश को लिखे गए पत्रों की प्रतियां तथा उनके अनुलग्नक सबूत के रूप में संलग्न किए गए हैं।
प्रमुख हस्ताक्षरकर्ताओं में अखिलेश यादव, कनिमोळी, टीआर बालू, थिरुमावलवन सहित कई सांसद शामिल हैं, जो भारत भर की विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। सूची विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को समेटे हुए है, जो इस प्रस्ताव के लिए क्रॉस-पार्टी समर्थन को दर्शाती है।
‘जज का आदेश बेहद चिंताजनक’: स्टालिन
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इस कदम का स्वागत किया और जज के आदेश को “बेहद चिंताजनक” बताया, जो “एक बहुधार्मिक पवित्र स्थल की साम्प्रदायिक सद्भावना को भंग कर सकता है।”
1 दिसंबर को, जस्टिस स्वामीनाथन ने हिंदू संगठनों को पहाड़ी पर कर्थिगई दीपम की सदियों पुरानी परंपरा निभाने की अनुमति दी थी। उन्होंने इसे “सदियों से तमिल हिंदू संस्कृति और परंपरा का अभिन्न हिस्सा” बताया था।
मुस्लिम समूहों और राज्य सरकार की आपत्तियों को खारिज करते हुए, जज ने प्रशासन को निर्देश दिया था कि आवश्यक व्यवस्था सुनिश्चित की जाए और दरगाह को कोई नुकसान न पहुंचे।
विपक्ष ने आरोप लगाया है कि यह एकल-न्यायाधीश का आदेश “एक धर्म को दूसरे पर बढ़ावा देने” जैसा है और संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का उल्लंघन करता है।
BJP का पलटवार: ‘न्यायिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला’
बीजेपी ने इस महाभियोग प्रस्ताव पर तीखा हमला करते हुए इसे “न्यायिक स्वतंत्रता पर बेशर्म हमला” और “ईमानदार जजों को डराने का प्रयास” बताया।
बीजेपी की तमिलनाडु इकाई के पूर्व अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने कहा, “एक ईमानदार जज, जिसने सदियों पुरानी हिंदू परंपरा को कायम रखा, उसे सिर्फ इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि फैसला DMK सरकार के खिलाफ गया। यह खुली बदले की कार्रवाई और जातिगत नफरत है। क्या वे किसी अल्पसंख्यक समुदाय या प्रभावशाली जाति के जज को छूने की हिम्मत करेंगे?”
वरिष्ठ बीजेपी नेताओं ने यह भी कहा कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में अब तक किसी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज को सफलतापूर्वक महाभियोग के जरिए नहीं हटाया गया है, जबकि कई प्रयास हुए।
साथ ही, मौजूदा प्रस्ताव ऐसे सदन में लाया गया है जहां NDA के पास स्पष्ट बहुमत है—इसलिए लोकसभा और राज्यसभा दोनों में आवश्यक दो-तिहाई समर्थन हासिल करना लगभग असंभव है।
लंबी और जटिल महाभियोग प्रक्रिया
संविधान के अनुच्छेद 124(4) और न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के तहत किसी जज के महाभियोग की प्रक्रिया काफी लंबी और कठिन है:
कम से कम 100 लोकसभा सासद या 50 राज्यसभा सांसद नोटिस पर हस्ताक्षर करें
नोटिस स्वीकार होने पर तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की जाती है
जज को हटाने के लिए दोनों सदनों में विशेष बहुमत चाहिए — यानी उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों में से दो-तिहाई समर्थन
अंतिम आदेश राष्ट्रपति द्वारा जारी किया जाता है
किसी हाई कोर्ट जज के खिलाफ महाभियोग तभी सफल हो सकता है जब लोकसभा और राज्यसभा—दोनों में—दो-तिहाई बहुमत मिले। भारत के संसदीय इतिहास में यह संख्या लगभग कभी पूरी नहीं हुई।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए यह प्रस्ताव स्पीकर की मेज से आगे बढ़ने की संभावना बहुत कम है, लेकिन इसने तमिलनाडु में राजनीतिक और साम्प्रदायिक बहस को जोरदार रूप से भड़का दिया है।

