
छोटी गलती, बड़ा खतरा, नागरिकता विवाद में फंसते गरीब भारतीय
पश्चिम बंगाल के आमिर शेख समेत कई गरीब भारतीयों को मामूली दस्तावेजी विसंगतियों पर ‘विदेशी’ घोषित कर हिरासत या बांग्लादेश भेजने के मामले बढ़े हैं।
पश्चिम बंगाल के जियेम शेख आज अपने बेटे के मामले में कड़वे अनुभव से गुजर रहे हैं, जो यह साबित करता है कि भारत में नागरिकता का दर्जा कितना नाजुक हो सकता है। खासतौर पर उन लोगों के लिए जो गरीब और हाशिए पर हैं। उनके 20 वर्षीय बेटे आमिर शेख को पिछले महीने राजस्थान पुलिस ने संदिग्ध “अवैध बांग्लादेशी” करार दिया और बाद में सीमा सुरक्षा बल (BSF) द्वारा कथित तौर पर बांग्लादेश भेज दिया गया।
यह कोई अकेली घटना नहीं है। हाल ही में नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (NLSIU) और क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन द्वारा जारी एक अध्ययन बताता है कि भारत में नागरिकता तय करने की प्रक्रिया में न्याय तक पहुंच गरीबों के लिए बेहद कठिन है।
नागरिकता साबित करने का बोझ
विदेशी अधिनियम के तहत, यदि किसी पर “विदेशी” होने का आरोप लगता है, तो उसे खुद अपनी भारतीय नागरिकता साबित करनी होती है। यह सिद्धांत आपराधिक और दीवानी कानून के सामान्य सिद्धांतों के विपरीत है। आधार, वोटर आईडी या राशन कार्ड जैसे दस्तावेज होने के बावजूद कई लोग अधिकारियों को अपनी नागरिकता साबित करने में असफल हो जाते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, निर्णय प्रक्रिया में मनमानी, दस्तावेजों और मौखिक गवाही की सामूहिक अस्वीकृति, और गलत तरीके से निशाना बनाए जाने से बचाने के लिए कानूनी मानकों का अभाव ये सभी एक संस्थागत बहिष्कार मशीनरी के हिस्से हैं, जिसका असर क्षेत्रीय ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी गंभीर है।
रहीम अली की कहानी
असम के नलबाड़ी जिले के गरीब किसान रहीम अली ने 18 साल अपनी नागरिकता बचाने की लड़ाई में गुजार दिए। 2012 में विदेशी ट्रिब्यूनल ने उन्हें बांग्लादेश से अवैध रूप से आए विदेशी घोषित कर दिया। स्कूल के रिकॉर्ड, वोटर लिस्ट और समुदाय की गवाही देने के बावजूद उनकी बात नहीं मानी गई।
गुवाहाटी हाई कोर्ट ने भी उनके दस्तावेज मामूली विसंगतियों के आधार पर खारिज कर दिए। अंततः सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राज्य ने बिना ठोस सबूत के उनके खिलाफ कार्रवाई की थी। मगर यह न्याय उनके जीवन में देर से आया—तब तक रहीम अली की मौत हो चुकी थी।
छोटी गलतियों पर ‘विदेशी’ करार
रिपोर्ट अनमेकिंग सिटिज़न्स में दर्ज कई मामलों में केवल उम्र या नाम की स्पेलिंग में अंतर के कारण लोगों को विदेशी घोषित कर दिया गया।जैसे, पश्चिम बंगाल के हुगली निवासी प्रवासी मजदूर देबाशीष दास के पास पासपोर्ट, जन्म प्रमाणपत्र, स्कूल सर्टिफिकेट, आधार, पैन, वोटर कार्ड और पुलिस वेरिफिकेशन तक था।फिर भी ओडिशा पुलिस ने उन्हें दिनों तक अस्थायी डिटेंशन कैंप में रखा।
आमिर शेख का मामला
मालदा जिले के जियेम शेख का बेटा आमिर काम की तलाश में राजस्थान गया था, जहां पुलिस ने उसे संदिग्ध बांग्लादेशी बताकर गिरफ्तार किया। जियेम ने 1941 का पैतृक जमीन का दस्तावेज और आधार कार्ड भेजा, लेकिन पुलिस को ईपीआईसी या पैन कार्ड न होने पर शक बना रहा।
24 जुलाई को एक वीडियो सामने आया जिसमें आमिर ने दावा किया कि उसे हथकड़ी लगाकर राजस्थान से पश्चिम बंगाल लाया गया और BSF की मदद से बांग्लादेश भेज दिया गया। हालांकि वीडियो की स्वतंत्र पुष्टि नहीं हो सकी।अब जियेम शेख ने कलकत्ता हाई कोर्ट में हैबियस कॉर्पस याचिका दाखिल की है। मालदा के जिलाधिकारी और स्थानीय सांसद ने केंद्र और BSF से संपर्क किया है। BSF ने बताया कि बांग्लादेश बॉर्डर गार्ड से तीन फ्लैग मीटिंग हो चुकी हैं।
खतरनाक प्रवृत्ति
शेख परिवार की त्रासदी कोई अपवाद नहीं। देशभर में अवैध प्रवासियों के खिलाफ अभियान और मतदाता सूची के विशेष संशोधन की तैयारियां गरीबों व हाशिए पर मौजूद लोगों को और असुरक्षित बना रही हैं। कुछ मामलों में, जैसे मुर्शिदाबाद के नज़ीमुद्दीन मंडल और महबूब शेख, मुंबई पुलिस ने उन्हें बिना अदालत में पेश किए बागडोगरा लाकर BSF के हवाले कर दिया, जिन्होंने उन्हें बांग्लादेश भेज दिया। बाद में बंगाल सरकार के हस्तक्षेप से वे लौटे, लेकिन उनकी आजीविका अब भी अनिश्चित है।
केंद्र का निर्देश और बढ़ती सख्ती
गृह मंत्रालय ने मई में सभी राज्यों को हर जिले में विशेष टास्क फोर्स बनाने और 30 दिनों में अवैध प्रवासियों की पहचान कर BSF को सौंपने का आदेश दिया। यह प्रक्रिया कानूनी प्रावधानों को दरकिनार करते हुए पुलिस को सीधे हिरासत और निर्वासन का अधिकार देती है।फोर्टिफाई राइट्स के अनुसार, 7 मई से 3 जुलाई के बीच भारत ने 1,855 लोगों को बांग्लादेश भेजा, पर यह स्पष्ट नहीं कि इनमें कितने वास्तव में अवैध प्रवासी थे। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के मुताबिक, उनकी सरकार ने 2,000 से ज्यादा प्रवासी मजदूरों को वापस लाया है, जबकि कई अब भी भाजपा-शासित राज्यों के डिटेंशन कैंपों में हैं।
नागरिकता जांच की यह सख्त और अपारदर्शी प्रक्रिया उन लोगों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हो रही है, जो पहले से आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर हैं। आधार, वोटर आईडी, पासपोर्ट जैसे दस्तावेज भी अब उनकी भारतीय पहचान की गारंटी नहीं दे पा रहे। इस माहौल में, एक साधारण विसंगति भी किसी को अपने ही देश में विदेशी बना सकती है।