
क्या इस बार सिर्फ महिला वोट के आसरे हैं नीतीश कुमार?
वक्फ बिल पर जेडीयू के स्टैंड ने बिहार में मुस्लिम समुदाय में नीतीश कुमार के प्रति अविश्वास बढ़ा दिया है। तो क्या इसीलिए नीतीश का महिला वोट साधने पर जोर है?
600 'महिला संवाद रथ', 38 जिले, 48,000 गांव और 70,000 स्थानों पर सभायें। बिहार में चुनावी साल में दो करोड़ से ज्यादा महिलाओं तक पहुंचने के लिए नीतीश सरकार ने ये जरिया अपनाया है। इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विधानसभा चुनाव के लिए किस लेवल की तैयारी है।
नीतीश कुमार ने शुक्रवार 18 अप्रैल को पटना में अपने सरकारी आवास से पहले दिन 50 विशेष रूप से डिजाइन किए गए वाहनों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। अब पूरे दो महीने तक बिहार के गांव-गांव छह सौ से ज्यादा ऐसे ही रथों के जरिये महिलाओं से संपर्क साधा जाएगा।
'महिला संवाद रथ' ही क्यों?
बिहार में चूंकि ये चुनावी साल है, इसलिए एक स्वाभाविक सा सवाल भी उठता है कि आखिर 'महिला संवाद रथ' ही क्यों? आखिर चुनावी वर्ष में नीतीश कुमार सरकार का महिलाओं पर इतना फोकस क्यों है? क्या नीतीश कुमार इस साल के आखिर में होने वाले बिहार के विधानसभा चुनाव से पहले महिला वोट को साधना चाहते हैं?
यह समझने के लिए 'द फेडरल देश' ने पटना में वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय से बात की। वे बोले, "नीतीश कुमार महिला वोटरों को लगातार साधने की कोशिश करते रहे हैं। अप्रैल 2016 में जब उन्होंने बिहार में शराबबंदी लागू की थी तो उसे महिलाओं की मांग पर किया गया फैसला बताया था। बिहार में उस शराबबंदी के सामाजिक असर भी देखने को मिले और नीतीश पर महिलाओं का भरोसा भी बढ़ा।"
पटना में राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते कि 'महिला संवाद रथ' अभियान सिर्फ चुनाव को देखते हुए शुरू किया गया है।
उन्होंने 'द फेडरल देश' से कहा, "नीतीश कुमार जब से सत्ता में आए हैं, तब से महिला सशक्तिकरण के लिए लगातार काम कर रहे हैं। स्कूल जाने वाली छात्राओं के लिए साइकिल योजना, महिलाओं को पंचायतो में 50% और सरकारी नौकरियों में 35 % आरक्षण या चाहे पुलिस भर्ती में बेटियों को जगह देने की बात हो, नीतीश कुमार ने महिला सशक्तिकरण को लेकर जाति से ऊपर उठकर काम किया है। इसलिए महिला संवाद रथ उन महिलाओं से फिर से कनेक्ट करने की कोशिश है ताकि योजनाओं का सही फीडबैक लिया जा सके।"
तेजस्वी की माई-बहिन योजना का जवाब?
वैसे महिला वोट की ताकत का अंदाजा बिहार में हर दल को है। बीजेपी राष्ट्रीय स्तर पर इसे अच्छी तरह से भुना चुकी है। बिहार में प्रशांत किशोर की नई-नवेली जनसुराग पार्टी ने भी चुनाव में 40 टिकट महिलाओं को देने की बात कही है।
इस बीच, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने महिला वोटरों को लुभाने के लिए एक बड़ा दांव चला है। उन्होंने हाल ही में घोषणा की है कि आने वाले चुनाव में सरकार बनने के बाद 'माई-बहिन योजना' शुरू की जाएगी जिसमें हर महिला को 2500 रुपये प्रति महीने दिए जाएँगे।
तो क्या अगले दो महीने तक बिहार के गांव-गांव दौड़ने वाले नीतीश कुमार के 'महिला संवाद रथ' तेजस्वी यादव के चले दांव का जवाब तो नहीं है? इस सवाल पर राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार कहते हैं,"वैसे तो महिला संवाद रथ अभियान का मुख्य मकसद सरकार का करीब दो करोड़ महिलाओं तक पहुंचना है। उन्हें अपनी उपलब्धियों के बारे में बताना है। यह बताना भी है कि महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए केवल नीतीश ने ही ठोस काम किया है और आगे भी वही कर सकते हैं। लेकिन ऐसा लग रहा है कि नीतीश का 'महिला संवाद रथ' तेजस्वी यादव की 'माई-बहन योजना' को डायल्यूट करने का प्रयास है।"
मुस्लिम वोट के संभावित नुकसान की क्षतिपूर्ति की जुगत?
तो फिर चुनावी साल में नीतीश कुमार को 'महिला सम्मान रथ' का एक विराट अभियान शुरू करने की ज़रूरत क्यों पड़ी? इस सवाल पर अरुण पांडेय कहते हैं, "नीतीश सरकार ने महिलाओं के कल्याण के लिए कई सरकारी योजनायें चलाई हैं। प्रदेशभर में महिलाओं के 12 लाख जीविका समूह हैं जिनमें करीब 1.50 करोड़ सदस्य हैं। चुनावी साल में यह उन तक पहुंचने की कोशिश है।"
'द फेडरल देश' के इस सवाल पर कि महिला संवाद रथ शुरू करने के पीछे कहीं वक्फ संशोधन बिल वाला फैक्टर भी हो सकता है? वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय कहते हैं, "वक्फ बिल पर नीतीश कुमार के स्टैंड से मुसलमानों में भारी नाराजगी देखने को मिली है। ऐसे में मुस्लिम वोट आने वाले चुनाव में नीतीश के लिए एक चिंता हो सकता है। यही नहीं, जिस अति-पिछड़ा वोट को नीतीश साधते रहे हैं, उसको लेकर भी जेडीयू बहुत आश्वस्त नहीं है। तो ऐसे में महिलाएं ही वो वर्ग है जिसे नीतीश कुमार पक्का वोट बैंक बनाने की जुगत में हैं।"
लेकिन राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार की राय कुछ जुदा है। उन्होंने 'द फेडरल देश' से कहा, "मुझे नहीं लगता कि नीतीश की ये कोशिश मुस्लिम वोट से होने वाले संभावित नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए होगी।"
उन्होंने आगे कहा, "साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान तो वक्फ बिल का कोई मसला नहीं था। तब नीतीश कुमार ने 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। वे सभी हार गए थे।"
बिहार में महिला वोट कितना बड़ा फैक्टर?
नीतीश सरकार हालांकि महिला संवाद रथ कार्यक्रम को नियमित जमीनी जुड़ाव का हिस्सा बता रही है, लेकिन इस अभियान की टाइमिंग और महिला केंद्रित स्वरूप से यह स्पष्ट संकेत है कि यह महिला मतदाताओं को एकजुट करने का एक सोचा-समझा प्रयास है, जिन्होंने पहले भी नीतीश कुमार की जीत में निर्णायक भूमिका निभाई थी।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, बिहार में पिछले तीन विधानसभा चुनावों में महिला मतदाताओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में अधिक रही है। 2020 में, महिलाओं की मतदान दर 59.7% रही, जबकि पुरुषों की 54.7%, यह अंतर कई सीटों पर निर्णायक रहा।
बजट में ही दे दिए थे संकेत
वैसे नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने बिहार चुनाव से पहले महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए बजट में ही इंतजाम कर दिए थे। पिछले साल बिहार कैबिनेट ने इस अभियान के आयोजन के लिए ₹225.78 करोड़ की मंजूरी दी थी। बिहार बजट 2025 में भी महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं, जैसे बिहार राज्य पथ परिवहन निगम में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण, सब्सिडी वाली ई-रिक्शा और दोपहिया वाहन, पिंक टॉयलेट्स और केवल महिलाओं के लिए बसें और छात्रावास।
महिला केंद्रित कार्यक्रमों और योजनाओं की बात भारतीय चुनावी राजनीति में एक नई उभरती प्रवृत्ति भी दिखा रही है, जहां महिलाएं निर्णायक मतदाता के रूप में देखी जा रही हैं। वैसे बिहार का यह मॉडल अन्य राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और दिल्ली से प्रेरित दिखता है। लेकिन 10वीं बार मुख्यमंत्री बनने की हसरत लेकर चल रहे नीतीश कुमार का यह दांव चुनाव से पहले अपने कार्यक्रमों का फीडबैक लेना और जनता की नब्ज टटोलने का एक अवसर भी है।