पहले राज्य और अब है UT, जानें जम्मू-कश्मीर में उमर के सामने क्या हैं मुश्किलें?
10 साल बाद बाद जम्मू-कश्मीर को नई सरकार मिल गई है. इसके साथ ही उमर अब्दुल्ला लगभग 16 साल बाद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में लौट आए हैं.
Omar Abdullah: 10 साल बाद बाद जम्मू-कश्मीर को नई सरकार मिल गई है. नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने बुधवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है. इस शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही उमर अब्दुल्ला अपने पहले कार्यकाल के लगभग 16 साल बाद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में लौट आए हैं. हालांकि, इस 16 साल के वनवास के दौरान घाटी में काफी कुछ बदल गया है. राज्य के अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया गया है. लेह-लद्दाख को राज्य से अलग कर दिया गया है और जम्मू-कश्मीर को अब केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया है. ऐसे में पूर्ण राज्य और अनुच्छेद 370 के तहत के तहत पहले जो अधिकार जम्मू-कश्मीर को मिलते थे. वह अब नहीं मिलेंगे. ऐसे में आइए जानने की कोशिश करते हैं कि उमर अब्दुल्ला को अपने दूसरे कार्यकाल में किन कठिनाईयों और चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.
बता दें कि उमर अब्दुल्ला जनवरी 2009 में 39 वर्ष की आयु में तत्कालीन राज्य के सबसे कम उम्र के सीएम बने थे. उनको अब अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित होने के बाद बदले हुए राजनीतिक हालात को समझना होगा.
पदभार ग्रहण करने के बाद सबसे पहले अब्दुल्ला को केंद्र सरकार, उपराज्यपाल और अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ संबंधों को सावधानीपूर्वक रखने की जरूरत होगी. इसके साथ ही क्षेत्रीय उम्मीदों को राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ संतुलित करना पड़ेगा. क्योंकि उनको राज्य का दर्जा और अनुच्छेद 370 की बहाली की वकालत करते हुए मोदी सरकार के साथ बेहतरीन संबंध स्थापित करने होंगे. हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें उम्मीद नहीं है कि मोदी सरकार अनुच्छेद 370 को तुरंत बहाल करेगी. लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनकी प्राथमिकता जम्मू और कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा बहाल कराना रहेगा.
हालांकि, यह अनिश्चित है कि नई दिल्ली निकट भविष्य में राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए सहमत होगी और होगी भी तो किन नियमों और शर्तों पर. इस लक्ष्य को हासिल करने से अब्दुल्ला को मतदाताओं का कुछ हद तक विश्वास हासिल करने में सफलता मिल सकती है. भले ही वह अनुच्छेद 370 की मांग को ठंडे बस्ते में डाल दें. इसके अलावा अब्दुल्ला ने राजनीतिक कैदियों की रिहाई, सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA) को निरस्त करने और उपभोक्ताओं को मुफ्त बिजली प्रदान करने जैसी चुनाव पूर्व प्रतिबद्धताओं को संबोधित करने का संकल्प लिया है. ऐसे में केंद्र सरकार को इन उपायों से सहमत कराना एक बड़ी बाधा हो सकती है. क्योंकि केंद्र शासित प्रदेश में सीमित अधिकार हैं.
अतीत में शासन के लिए आलोचना का सामना करने के बाद अब्दुल्ला को अपने प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की जरूरत होगी. निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में नागरिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक प्रतिक्रिया और सामुदायिक भागीदारी के लिए तंत्र स्थापित करना आवश्यक होगा. जम्मू और कश्मीर के विविध जनसांख्यिकीय परिदृश्य को देखते हुए सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देना भी प्राथमिकता होगी. जम्मू क्षेत्र में बड़े पैमाने पर भाजपा का समर्थन करने के साथ, अब्दुल्ला की सरकार को सभी मतदाताओं के हितों का प्रतिनिधित्व करने की आवश्यकता होगी.
उमर अबदुल्ला ने हाल ही में कहा था कि यह सरकार उन लोगों के लिए भी उतनी ही सरकार होगी, जिन्होंने भाजपा को वोट दिया और साथ ही उन लोगों के लिए भी जिन्होंने एनसी और कांग्रेस को वोट दिया है.