चुनाव आते ही कहां गया गुपकार,  महबूबा को अब्दुल्ला परिवार ने क्यों छोड़ा
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चुनाव आते ही कहां गया गुपकार, महबूबा को अब्दुल्ला परिवार ने क्यों छोड़ा

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दल पसीना बहा रहे हैं। लेकिन खास बात यह है कि अनुच्छेद 370 के नाम पर जो गुपकार बना हुआ था वो अब नजर नहीं आ रहा है।


Jammu Kashmir Assembly Polls: जम्मू कश्मीर में 10 साल बाद और अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव हो रहे हैं इसलिए यह चुनाव आम लोगों और राजनीतिक दलों के लिए बेहद खास है। चार महीने पहले लोकसभा चुनाव में लोगों ने जिस उत्साह और जोश के साथ बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया वह लोकतंत्र के प्रति लोगों के बढ़ते विश्वास और भरोसे को दर्शाता है। चुनाव में लोगों की जोरदार भागीदारी सियासी दलों को पूरी तैयारी के साथ चुनावी मैदान में उतरने को विवश किया है। नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस, भाजपा, पीडीपी और अन्य क्षेत्रीय दल चुनावी अखाड़े में उतर चुके हैं अंतर बस इतना है कि कोई पार्टनर के साथ उतरा है तो किसी को पार्टनर नहीं मिला।

इन दो परिवारों का दबदबा
जम्मू कश्मीर की सत्ता में शुरुआत से ही दो परिवारों का दबदबा रहा है ये अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार हैं...बारी-बारी से कभी अकेले तो कभी कांग्रेस और भाजपा के समर्थन से ये सत्ता का सुख भोगते आए हैं। जम्मू कश्मीर की सत्ता में आने का फॉर्मूला भी इन्हें पता है चुनाव पूर्व और चुनाव बाद के राजनीतिक हालात को परखते हुए ये अपने लिए गठबंधन के साथी ढूंढ लेने में माहिर हैं। इस बार गठबंधन की रेस में नेशनल कांफ्रेंस ने बाजी मार ली है। चुनाव पूर्व उसका गठबंधन कांग्रेस के साथ हुआ है दूसरी पारिवारिक पार्टी पीडीपी का हाथ खाली रह गया है या कहिए कि नेशनल कांफ्रेस और कांग्रेस ने महबूबा को अधर में छोड़ दिया है।
इंडिया गठबंधन का हिस्सा लेकिन..
महबूबा मुफ्ती की पीडीपी राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया अलायंस का हिस्सा है हालांकि, लोकसभा चुनाव में वह गठबंधन के हिस्से के तौर पर चुनाव नहीं लड़ी। महबूबा मुफ्ती अनंतनाग से चुनाव लड़ी और इस सीट पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के अल्ताफ अहमद से उन्हें हार मिली। लोकसभा में महबूबा की पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। जम्मू कश्मीर में लोकसभा की पांच सीटें हैं। इनमें से दो सीटों श्नीनगर और अनंतनाग राजौरी सीट पर नेशनल कांफ्रेंस, दो सीटों जम्मू और उधमपुर पर भाजपा और बारामूला सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुआ।
विधानसभा में राह अलग अलग
लोकसभा चुनाव के समय भी जब गठबंधन धर्म के तहत पीडीपी को सीट देने की बात चली तो उमर अब्दुल्ला ने अपने तेवर कड़े कर लिए वह पीडीपी को अपने हिस्से की सीट देने के लिए तैयार नहीं हुए झख मारकर महबूबा और उनकी पीडीपी को अकेले चुनाव लड़ना पड़ा। गठबंधन धर्म में सियासी दल की हैसियत उसके वोट बैंक और उसकी जीत की संभावनाएं टटोलने के बाद तय होती है। जाहिर है महबूबा इस समय घाटी में कमजोर हैं वह जिताऊ पार्टी नहीं हैं। यह बात कांग्रेस और फारूक-उमर अच्छी तरह समझते हैं इसलिए, चुनाव मैदान में दोनों ने पीडीपी को अकेले छोड़ दिया है। इंडिया अलायंस में पीडीपी केवल कागज पर है धरातल पर वह अकेले है।
अकेली पड़ीं मुफ्ती
जम्मू कश्मीर की सियासत में महबूबा इस समय खुद को अलग-थलग पा रही हैं। राष्ट्रीय या क्षेत्रीय स्तर की कोई भी पार्टी उनके साथ नहीं है फिर भी उन्होंने हौसला नहीं खोया है शनिवार को अपना घोषणापत्र यानी कि मेनिफेस्टो जारी करते हुए उन्होंने एक बड़ा दांव चल दिया...महबूबा ने सीधे कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के गठबंधन पर सवाल उठाते हुए सियासी गोली दाग दी उन्होंने कहा कि यह गठबंधन एजेंडे पर नहीं बल्कि सीट बंटवारे पर हुआ है...साथ ही उन्होंने यह भी कह दिया कि कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस यदि उनके एजेंडे को अपना लेते हैं तो वह 90 सीटों पर उनका समर्थन करेंगी। साथ ही महबूबा ने अपने इस बयान से कई निशाना साधा है...उन्होंने लोगों को यह बताने की कोशिश है कि इस गठबंधन का आधार केवल सीट है अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए वही लड़ रही हैं।
मेनिफेस्टो में क्या है खास
पीपुल एस्पिरेशन के नाम से महबूबा ने जो अपना घोषणापत्र जारी किया है। उसमें अनुच्छेद 370 और 35ए को बहाल करने की बात कही गई है। दावा यह भी किया गया है कि इन्हें निरस्त करने से कश्मीर मुद्दा और जटिल हो गया है और इससे लोगों में अलगाव की भावना गहरी हुई है इसके अलावा पीडीपी ने राज्य में 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने, पानी पर टैक्स खत्म करने, गरीबों को साल में 12 सिलेंडर देने, वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन सहित कई लोकलुभावन वादे किए हैं।
सूत्रों का कहना है कि इस गठबंधन से महबूबा को बाहर रखने की वजह अब्दुल्ला परिवार है...फारूक और उमर अब्दुल्ला दोनों महबूबा को सियासी ताकत बनते नहीं देखना चाहते। उनका इरादा महबूबा को हाशिए पर रखने का है...बहरहाल, जम्मू कश्मीर के चुनावी अखाड़े में मुकाबला दोस्ताना होगा या वाकई में महबूबा नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के उम्मीदवारों के खिलाफ जोरदार हमला बोलेंगी यह देखना दिलचस्प होगा।
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