झारखंड में BJP के पास मरांडी जैसे बड़े नेता, चंपई सोरेन की जरूरत क्यों पड़ी
अब चंपई सोरेन ने भी साफ कर दिया है कि वो बीजेपी का हिस्सा बनने जा रहे हैं। इसे ना सिर्फ बीजेपी बल्कि झारखंड की सियासत में बड़े बदलाव की तरह देखा जा रहा है।
Jharkhand Assembly Elections 2024: इस साल के अंत तक दो और राज्यों महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं। झारखंड में जहां बीजेपी की सरकार है तो वहीं महाराष्ट्र में महायूति की सरकार है। बीजेपी के लिए ये दोनों राज्य कम से कम दो वजहों से खास है। झारखंड और महाराष्ट्र में बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। लिहाजा चुनौती अधिक है। झारखंड़ के कद्दावर नेता और अभी हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री चंपई सोरेन ने ऐलान कर दिया है कि वो बीजेपी का हिस्सा बनने जा रहे हैं। आमतौर पर आयातित नेताओं का मूल दल में विरोध होता है। लेकिन झारखंड बीजेपी के बड़े, मझले और छोटे कार्यकर्ता भी कोल्हान के टाइगर का सम्मान और स्वागत कर रहे हैं। इस बात की चर्चा भी है कि बीजेपी चंपई सोरेन को अपना चेहरा बनाकर आगे बढ़ सकती है और यह एक ऐसी तस्वीर है जो महाराष्ट्र की याद दिलाती है।
महाराष्ट्र का शिंदे प्रसंग
2022 का वो साल याद होगा जब महाराष्ट्र में राजनीतिक बवंडर के बाद यह साफ हो चुका था कि उद्धव ठाकरे की गद्दी जा चुकी है। लेकिन सस्पेंस यह था कि राज्य का अगला सीएम कौन होगा। जब सीएम के लिए एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम के लिए देवेंद्र फड़नवीस के नाम का ऐलान हुआ तो हर कोई अचंभित था। बाद में इसे बीजेपी की सोची समझी रणनीति बताया गया। ये बात सच है कि 2024 के आम चुनाव में बीजेपी- एकनाथ शिंदे गुट अच्छा नहीं कर पाया। लेकिन सरकार बिना किसी अड़चन के कार्यकाल पूरा करने जा रही है। ऐसे में क्या बीजेपी, महाराष्ट्र की तर्ज पर ही झारखंड में भी चंपई सोरेन को आगे करेगी।
चंपई के लिए बीजेपी ही क्यों
दरअसल कोल्हान इलाके की कुल 14 सीटों में से बीजेपी को 2019 के विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली। ऐसे में इस इलाके में बीजेपी को एक ऐसे नेता की जरूरत थी जो उस कमी को पूरा कर सके। अब झारखंड मुक्ति मोर्चा के अंदर माहौल कुछ इस तरह का बना कि चंपई सोरेन को घुटन महसूस होने लगी। वो किसी तरह से खुली हवा में सांस लेना चाहते थे। यहां एक सवाल है कि चंपई सोरेन जो सेक्यूलर राजनीतिक के झंडाबरदार रहे वो कांग्रेस का या आरजेडी का दामन थाम सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इस सवाल का जवाब साफ है, जब कांग्रेस और आरजेडी, हेमंत सोरेन के साझेदार हैं तो वो उन दलों का दामन कैसे थाम लेते। कुल मिलाजुलाकर राजनीतिक तस्वीर इस तरह की बनी कि चंपई और बीजेपी एक दूसरे के लिए ज्यादा प्रासंगिक नजर आए।