
सत्ता, सीट और सियासत, राज्यसभा की चार सीटों ने हिला दी कश्मीर की राजनीति
24 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर की चार राज्यसभा सीटों पर चुनाव होंगे। एनसी-कांग्रेस में तनातनी, भाजपा की रणनीति और निर्दलीयों की भूमिका से समीकरण जटिल बने हैं।
24 अक्टूबर को आखिरकार जम्मू-कश्मीर से राज्यसभा की चार रिक्त सीटों पर चुनाव होने जा रहे हैं। ये सीटें फरवरी 2021 से खाली थीं। सामान्य परिस्थितियों में यह चुनाव केवल संसद के उच्च सदन में जम्मू-कश्मीर के प्रतिनिधित्व की बहाली के प्रतीक मात्र होते, लेकिन इस बार मामला इतना सीधा नहीं है। इन चुनावों ने केंद्रशासित प्रदेश की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है।
तनावपूर्ण गठबंधन और भाजपा की चाल
भाजपा ने यह घोषणा कर सबको चौंका दिया कि वह चारों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी, जबकि उसके पास विधानसभा में सिर्फ एक सीट जीतने लायक ही संख्या बल है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की राजनीति दिल्ली और श्रीनगर के बीच संतुलन साधने की कोशिश में उलझी हुई है, वहीं कांग्रेस राज्यसभा में अपनी मौजूदगी बढ़ाने की हरसंभव कोशिश कर रही है। नतीजा सियासी गलियारों में क्रॉस-वोटिंग और ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ (वोटों की खरीद-फरोख्त) की आशंका गहराने लगी है।
इसी बीच, एक और विवाद ने हालात को और पेचीदा बना दिया है जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल (LG) के पास विधानसभा में पाँच सदस्यों को नामित करने के अधिकार को लेकर चल रहा मामला अभी अदालत में विचाराधीन है। यदि 16 अक्टूबर की सुनवाई में अदालत ने इस अधिकार पर रोक नहीं लगाई और LG मनोज सिन्हा ने 24 अक्टूबर से पहले नामांकन कर दिए, तो यह विधानसभा के समीकरण को पूरी तरह बदल सकता है और भाजपा को एक अतिरिक्त सीट जीतने का मौका मिल सकता है।
कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच तनातनी
इस पूरे परिदृश्य में सबसे बड़ी खाई एनसी (नेशनल कॉन्फ्रेंस) और कांग्रेस के बीच बन गई है। दोनों पार्टियों ने पिछले विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा था, लेकिन अब वे सरकार में साझेदार नहीं हैं। फिर भी दोनों के पास कुल 47 विधायक (एनसी के 41 और कांग्रेस के 6) हैं। इनके अलावा मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को सीपीएम विधायक एम.वाई. तरीगामी और पाँच निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन प्राप्त है — यानी कुल 53 विधायकों का आंकड़ा, जो तीन राज्यसभा सीटें जीतने के लिए पर्याप्त है।
ऐसे में यह माना जा रहा था कि एनसी और कांग्रेस मिलकर तीन सीटें आसानी से जीत सकती हैं। मगर कांग्रेस एक सीट अपने हिस्से में चाहती है, जबकि उमर अब्दुल्ला इस पर तैयार नहीं दिख रहे। सूत्रों के अनुसार, एनसी के वरिष्ठ नेता फारूक अब्दुल्ला (जो खुद उम्मीदवार होंगे) ने दिल्ली में कांग्रेस नेतृत्व से एक सीट देने का संकेत दिया था, लेकिन उमर इसके सख्त खिलाफ हैं। बताया जा रहा है कि उमर अपने पिता के अलावा सज्जाद किचलू और आगा महमूद को राज्यसभा भेजना चाहते हैं।
कांग्रेस खेमे को शक है कि उमर अब्दुल्ला केंद्र सरकार से सीधे टकराव से बचना चाहते हैं, और इसी वजह से प्रधानमंत्री मोदी या राज्य का दर्जा बहाल करने के वादे पर वे अब तक मुखर नहीं हुए। पार्टी के भीतर यह भी चर्चा है कि “अगर फारूक अब्दुल्ला ने कांग्रेस को एक सीट देने पर जोर डाला, तो उमर के कुछ विधायक भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए क्रॉस-वोटिंग या अनुपस्थित रह सकते हैं।”
क्रॉस-वोटिंग का खतरा
कांग्रेस के पास केवल छह विधायक हैं, यानी उसकी सौदेबाज़ी की ताकत सीमित है। लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है कि “अगर उमर कांग्रेस को सीट नहीं देते, तो हमारे कुछ विधायक एनसी उम्मीदवार के खिलाफ वोट डाल सकते हैं या मतदान से दूर रह सकते हैं।”जम्मू-कश्मीर कांग्रेस प्रमुख तारिक हमीद कर्रा ने ‘द फेडरल’ से कहा कि “एनसी के साथ अभी तक राज्यसभा चुनावों को लेकर कोई औपचारिक बैठक नहीं हुई है,” लेकिन पार्टी “खुश होगी अगर उसे एक सीट मिल जाए।” वहीं एनसी प्रवक्ता तनवीर सादिक ने पुष्टि की कि कांग्रेस ने वाकई एक सीट मांगी है, पर अंतिम फैसला पार्टी नेतृत्व करेगा।
स्वतंत्र विधायकों की उलझन
इन चुनावों में यह देखना भी दिलचस्प होगा कि पीडीपी (महबूबा मुफ्ती) के तीन विधायक, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के सज्जाद लोन, आम आदमी पार्टी के जेल में बंद विधायक मेहराज मलिक और निर्दलीय विधायक खुर्शीद व कुल्लै किसे वोट देते हैं।लंगेट के निर्दलीय विधायक खुर्शीद ने कहा, “मैं भाजपा उम्मीदवार को वोट नहीं दूंगा, लेकिन एनसी का भी समर्थन करना मुश्किल है। वे सत्ता में आने के बाद अनुच्छेद 370, राज्य का दर्जा, कर्मचारियों की बर्खास्तगी जैसे मुद्दों पर चुप रहे।”
इन स्वतंत्र विधायकों में यह भावना गहराई से बैठी है कि उमर सरकार ने पिछले 11 महीनों में सुरक्षा बलों द्वारा नागरिकों की हत्याओं पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया। खासकर पहलगाम आतंकी हमले के बाद से यह असंतोष और बढ़ गया है।
हालांकि अधिकांश निर्दलीय विधायक मानते हैं कि अगर वे मतदान से दूर रहे तो भाजपा को फायदा होगा, पर वे यह भी चाहते हैं कि “उमर अब्दुल्ला दिल्ली के साथ थोड़ी सख्ती से पेश आएं।” कुछ का मानना है कि सज्जाद लोन भाजपा के पक्ष में वोट देंगे, जबकि पीडीपी शायद मतदान से दूर रहे।
दक्षिण कश्मीर के शोपियां से निर्दलीय विधायक शब्बीर अहमद कुल्लै ने कहा, “हमारे लिए यह चुनाव किसी ‘अच्छाई’ को चुनने का नहीं, बल्कि ‘कम बुराई’ को चुनने का है एक तरफ एनसी है जिसने घाटी के मसलों पर कुछ खास नहीं किया, और दूसरी तरफ भाजपा है जिसने कश्मीर को उसके संवैधानिक अधिकारों से वंचित कर दिया।”
राज्यसभा की चार सीटों के लिए होने वाले ये चुनाव जम्मू-कश्मीर की राजनीति का रुख तय करेंगे। यह सिर्फ सीटों की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह इस बात की परीक्षा भी है कि क्या नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस वास्तव में एक-दूसरे पर भरोसा कर सकती हैं या फिर भाजपा एक बार फिर राजनीतिक गणित के जरिए खेल पलट देगी। 24 अक्टूबर को सिर्फ वोट नहीं पड़ेंगे, बल्कि जम्मू-कश्मीर की सियासी दिशा का फैसला भी होगा।