पारिवारिक संघर्ष या राजनीतिक रणनीति? के कविता प्रकरण से बढ़ी हलचल
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पारिवारिक संघर्ष या राजनीतिक रणनीति? के कविता प्रकरण से बढ़ी हलचल

बीआरएस से एमएलसी कविता का निलंबन तेलंगाना की राजनीति में भूचाल ला दिया है। कलेश्वरम विवाद, पारिवारिक टकराव और पार्टी की रणनीति पर बहस तेज़ हो गई है।


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K Kavitha News: बीआरएस यानी भारत राष्ट्र समिति से एमएलसी के. कविता के निलंबन के बाद क्या किसी तरह का असर पड़ेगा। क्या यह सिर्फ पारिवारिक तनाव का नतीजा था या बात कुछ और। इससे बीआरएस की आंतरिक राजनीति पर क्या असर होगा। इस विषय पर कैपिटल बीट के खास कार्यक्रम में द फेडरल ने पैनलिस्ट कुरपाटी वेंकट नारायण और पापा राव डी से बातचीत की।

बीआरएस में भूचाल

बीआरएस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने अपनी बेटी के. कविता को पार्टी से निलंबित कर दिया। वजह बनी उनकी खुली आलोचना, जिसमें उन्होंने वरिष्ठ नेताओं टी. हरीश राव और जे. संतोष कुमार पर मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी से मिलीभगत का आरोप लगाया। विवाद कलेश्वरम परियोजना से जुड़ा है, जिसे राज्य सरकार ने सीबीआई को सौंपने का फैसला किया है। इसी दौरान विधानसभा में जस्टिस पी.सी. घोष आयोग की रिपोर्ट भी पेश की गई।

घोषणा के बाद कविता समर्थक सड़कों पर उतर आए। पार्टी के बाहर भी यह बहस छिड़ी कि यह कदम बीआरएस के लिए निर्णायक मोड़ है या फिर महज आंतरिक अनुशासनात्मक कार्रवाई।


आरोप और जवाबी आरोप

कविता का सीधा आरोप था कि हरीश राव और संतोष कुमार ने रेवंत रेड्डी का साथ दिया, जिससे केसीआर की छवि धूमिल हुई। कलेश्वरम प्रोजेक्ट से जुड़े मुद्दे हाल के दिनों में अदालत और विधानसभा दोनों में गूंजते रहे। केंद्र में है मेडीगड्डा (लक्ष्मी) बैराज, जो गोडावरी पर बने कलेश्वरम लिफ्ट इरिगेशन प्रोजेक्ट का अहम हिस्सा है। बैराज की खामियों ने तकनीकी और प्रशासनिक जांच के साथ-साथ कांग्रेस और बीआरएस के बीच राजनीतिक टकराव को और गहरा दिया।

कविता की संगठनात्मक पहचान तेलंगाना जागृति के जरिए बनी, जिसे वे अलगाव आंदोलन से ही चला रही हैं। उनके नेटवर्क से जुड़े नेताओं ने निलंबन को "अन्यायपूर्ण और राजनीतिक रूप से प्रेरित" बताया।

'पारिवारिक संघर्ष' बनाम 'केसीआर का पुनरुत्थान'

नारायण का कहना था कि यह संकट बीआरएस परिवार के भीतर नेतृत्व की होड़ से उपजा है। पार्टी सत्ता गंवाने के बाद से केटीआर, हरीश और कविता के बीच भावी नेतृत्व को लेकर खींचतान तेज हुई है।

यह आंतरिक पारिवारिक विवाद है, पार्टी नेतृत्व की होड़ है, और इसी ने मौजूदा संकट को जन्म दिया है।” – नारायण

इसके उलट, पापा राव ने दलील दी कि निलंबन से पार्टी पर कोई असर नहीं पड़ेगा, बल्कि जनता के बीच केसीआर की लोकप्रियता और बढ़ी है।

आज चुनाव हों तो बीआरएस 119 में से 100 सीटें जीत सकती है।” – पापा राव

निलंबन से पार्टी पर असर

नारायण ने इसे लंबे समय से चल रही अंतर्विरोधों की परिणति बताया और कहा कि सत्ता खोने के बाद आंतरिक खींचतान और भी खुलकर सामने आई है। जांचों ने पार्टी की कमजोरियों को उजागर किया है।

वहीं, राव के मुताबिक कविता द्वारा हरीश जैसे नेताओं पर हमला पार्टी की रणनीति को नुकसान पहुंचाता। उन्होंने विधानसभा में हरीश राव की कलेश्वरम पर आक्रामक बहस को उदाहरण बताते हुए कहा कि पार्टी का कोर नेतृत्व मजबूत है और एकजुट है।

दोनों पैनलिस्टों ने माना कि कविता की पार्टी में पकड़ सीमित है और वह कभी चुनावी राजनीति का केंद्रीय चेहरा नहीं रहीं। केसीआर ने उन्हें कभी मंत्री पद नहीं दिया, जिससे यह साफ होता है कि उनकी राजनीतिक भूमिका सीमित रही है।

कलेश्वरम: राजनीतिक और कानूनी रणभूमि

बहस में यह साफ हुआ कि कलेश्वरम विवाद ही असली राजनीतिक अखाड़ा है। विधानसभा में घोष आयोग की रिपोर्ट, सीबीआई जांच और अदालतों में सुनवाई ने इस मुद्दे को लगातार सुर्खियों में बनाए रखा है। तकनीकी खामियों से लेकर राजनीतिक जवाबदेही तक चर्चा लगातार चल रही है।हरीश राव, जिन्होंने सिंचाई मंत्री रहते हुए कलेश्वरम का अहम हिस्सा संभाला था, अब हर बार विधानसभा या अदालत में यह मुद्दा उठने पर चर्चा के केंद्र में आ जाते हैं।

कविता और कार्यकर्ताओं का आगे का रास्ता

नारायण का अनुमान है कि ज्यादातर कार्यकर्ता केंद्रीय नेतृत्व का ही साथ देंगे। तेलंगाना जागृति से जुड़े नेटवर्क में भी असर सीमित रह सकता है।वहीं, राव का मानना है कि कविता को संगठन से बाहर करना पार्टी के लिए फायदेमंद है। इससे स्थानीय निकाय चुनावों और विधानसभा में पार्टी की रणनीति पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा।

दोनों पैनलिस्ट एक बात पर सहमत रहे कि बीआरएस का भविष्य इस बात पर निर्भर है कि जनता कांग्रेस सरकार के प्रदर्शन को कैसे देखती है, न कि कविता की राजनीतिक यात्रा पर। कलेश्वरम ही आने वाले समय में राज्य की राजनीति का सबसे बड़ा मुद्दा रहेगा।

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