पहले इस्तीफा अब चोला भी बदला,  BJP के हुए केजरीवाल के करीबी कैलाश गहलोत
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पहले इस्तीफा अब चोला भी बदला, BJP के हुए केजरीवाल के करीबी कैलाश गहलोत

आप से इस्तीफा देने के 24 घंटे के भीतर ही कैलाश गहलोत बीजेपी का हिस्सा बन गए। दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इसे अरविंद केजरीवाल के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।


Kailash Gehlot News: जैसे मौसम का खुद पर वश नहीं रहता ठीक वैसे ही नेताओं का खुद पर वश कम ही होता। अगर ऐसा होता तो विचारधारा इतनी आसानी से सुविधा के हिसाब से नहीं बदलती। बात यहां उस शख्स की कर रहे हैं जो व्यवस्था बदलने वाली पार्टी यानी आम आदमी पार्टी का हिस्सा बना। नाम उनका कैलाश गहलोत है लेकिन पहचान बदल गई है। रविवार को आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दिया। अभी 24 घंटे भी नहीं बीते थे कि कदम बीजेपी के चौखट पर पड़े और खुद को भगवामय कर दिया। यानी कि बीजेपी के हिस्सा बन गए। जाहिर सी बात है कि इस्तीफा देने और बीजेपी में शामिल होना कोई अचानक वाली घटना नहीं है। सियासत में जो भी कुछ असामान्य दिखता है वो अचानक ही होता है। लेकिन पटकथा पहले से तैयारी कर ली जाती है।

आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल, कैलाश गहलोत पर भरोसा करते थे। दिल्ली के ट्रांसपोर्ट विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। केजरीवाल की महत्वाकांक्षी परियोजना महिला सम्मान योजना पर काम भी कर रहे थे। ऐसे में जब उन्होंने रविवार को यमुना प्रदूषण, राजनिवास से टकराव जैसे मुद्दे को अपने इस्तीफे की वजह बताया तो लोगों के दिल और दिमाग में सवाल कौंधा कि आखिर यह विचार भाव उनके दिमाग में तब आया जब दिल्ली विधानसभा का चुनाव अगले साल होना है।

सियासत के जानकार कहते हैं कि अब यह सवाल खुद बेमानी है। जैसे एग्जाम में बेहतर अंक हासिल करने के लिए छात्र रणनीति बनाता है और तैयारी करता है, ठीक वैसे ही सियासी चेहरे भी करते हैं। लेकिन यह सच है कि अब सियासत में नैतिकता मूल्य बोध कम हो गया है। खैर कैलाश गहलोत का मन आप से से क्यों खट्टा हुआ और बीजेपी को लगा कि सत्ता से जो वनवास मिला है उसे गहलोत के जरिए दूर किया जा सकता है।

दिल्ली की सियासत पर नजर रखने वाले कहते हैं कि कैलाश गहलोत जंमीनी स्तर के नेता हैं। पश्चिमी दिल्ली यानी जाट और देहात से जुड़ी सीटों पर प्रभाव भी है। लिहाजा आम आदमी पार्टी के लिए झटका तो है। कुछ लोग यह कह रहे हैं कि आतिशी को जितनी जिम्मेदारी दी गई उससे कैलाश गहलोत खुश नहीं थे। सीधे और सरल तरीके से समझें तो एक तरह से जलन थी। सियासत में इस तरह की स्थिति का निर्माण होता है। लेकिन बात सिर्फ यह नहीं है।

दरअसल जिस तरह से दिल्ली सरकार की राजनिवास से टकराव बना रहा है वैसी सूरत में भी कैलाश गहलोत अपने विभाग से जुड़े काम को आसानी से जमीन पर उतार लिया करते थे। इससे आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता गहलोत पर शक करने लगे थे । इसके साथ ही जिस तरह से 15 अगस्त झंडारोहण में कैलाश गहलोत के नाम पर राजनिवास ने सहमति दे दी उसके बाद कहीं न कहीं यह शक पुख्ता हुआ कि गहलोत अब उतने विश्वासी नहीं रहे। अगर गहलोत के नाम पर राजनिनवास को कोई आपत्ति नहीं उस सूरत में भी वो झंडारोहण के लिए मना कर सकते। यानी कि कहीं न कहीं आम आदमी पार्टी के थिंक टैंक और गहलोत में दूरी बढ़ने लगी थी।

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