
दुकानों के बाहर नेम प्लेट लगाने का आदेश सही या गलत, SC करेगा तय
मुजफ्फरनगर पुलिस ने पिछले सप्ताह कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित सभी भोजनालयों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का निर्देश दिया था.
Kaanwar Yatra Route Name Plate: दुकानों के बाहर नेम प्लेट लगाने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी है. इस याचिका पर अब से कुछ देर बाद सुनवाई की जा सकती है. याचिका में कहा गया है कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित खाने पीने से सम्बंधित दुकानों, भोजनालयों, ठेलों आदि पर दुकानदारों को नाम लिखने का आदेश गलत है और एक धर्म विशेष के खिलाफ है.
जस्टिस हृषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की पीठ एनजीओ एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स द्वारा दायर मामले की सुनवाई कर सकती है. तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा ने भी उत्तर प्रदेश सर्कार के इन निर्देशों के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है.
ज्ञात रहे कि मुजफ्फरनगर पुलिस ने पिछले सप्ताह कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित सभी भोजनालयों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का निर्देश दिया था. बाद में, प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली यूपी सरकार ने पूरे राज्य में इस आदेश को लागू कर दिया. उत्तराखंड सरकार ने भी इसी तरह का आदेश दिया है. इसके अलावा मध्य प्रदेश के उज्जैन में भी ये आदेश लागू किया गया है.
सांसद महुआ मोइत्रा की याचिका में तर्क दिया गया है कि ये आदेश कई संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी याचिका में, उन्होंने दोनों राज्य सरकारों द्वारा पारित आदेशों पर रोक लगाने की मांग की है, जिसमें कहा गया है कि ऐसे निर्देश समुदायों के बीच कलह को बढ़ाते हैं.
टीएमसी नेता ने कहा कि तीर्थयात्रियों के आहार विकल्पों का सम्मान करने के कथित आधार पर मालिकों और यहां तक कि उनके कर्मचारियों के नामों का खुलासा करने के लिए मजबूर करना, "ये स्पष्ट करता है कि आहार विकल्प व्यक्तिगत - और इस मामले में धार्मिक - पहचान के जबरन प्रकटीकरण के लिए एक बहाना या एक प्रॉक्सी है."
याचिका में कहा गया है, "तीर्थयात्रियों की आहार संबंधी प्राथमिकताओं का सम्मान करने और कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के कथित लक्ष्य के साथ जारी किए गए निर्देश स्पष्ट रूप से मनमाने हैं, बिना किसी निर्धारण सिद्धांत के जारी किए गए हैं, कई संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं और कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के राज्य के दायित्व को समाज के सबसे कमजोर और हाशिए पर पड़े वर्गों पर डाल दिया गया है."
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद और एमनेस्टी इंडिया के पूर्व प्रमुख आकार पटेल ने भी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. याचिकाओं में आगे तर्क दिया गया कि ये परामर्श, जिसे जबरन लागू किया जाता है, राज्य प्राधिकार का अतिक्रमण है तथा सार्वजनिक नोटिस और उसका प्रवर्तन कानून के प्राधिकार के बिना है.
दिलचस्प बात ये है कि इस कदम पर विपक्ष के साथ-साथ एनडीए के कुछ सहयोगियों की ओर से भी तीखी प्रतिक्रिया आई है. भाजपा के सहयोगी जेडीयू और आरएलडी भी इस विवादास्पद आदेश को वापस लेने की मांग में शामिल हो गए हैं.