
2023 की भीड़ हिंसा, करूर पुलिस की निष्क्रियता सवालों में
2023 में करूर में आयकर अधिकारियों पर भीड़ ने हमला किया था जिसमें महिला अधिकारी घायल हो गई। पुलिस की निष्क्रियता की वजह से जांच ठप है और न्याय केवल अदालतों तक सीमित है।
Karur 2023 Violence: तमिलनाडु का करूर, जो कभी शांत गलियों और कपड़ा उद्योग के लिए प्रसिद्ध था, अब एक भीषण त्रासदी और राजनीतिक विवाद का केंद्र बन गया है। 27 सितंबर को अभिनेता-राजनीतिज्ञ विजय की पार्टी तमिझग विदुथलाई कच्ची (TVK) की रैली में हुई भगदड़ में 41 लोगों की मौत और कई लोग घायल हुए। विजय की पार्टी ने इस घटना को सत्तारूढ़ डीएमके सरकार की “साजिश” बताया है। आने वाले 2026 विधानसभा चुनावों में यह त्रासदी राजनीतिक बहस का अहम मुद्दा बन सकती है। लेकिन करूर का यह पहला विवाद नहीं है। साल 2023 में इसी शहर ने एक और घटना देखी थी, जिसे अब बहुत कम लोग याद करते हैं—आयकर (I-T) विभाग के अधिकारियों पर हुए सुनियोजित हमले। इस मामले में अब तक न कोई चार्जशीट दाखिल हुई है और न ही क्लोजर रिपोर्ट।
2023 में जब कानून पर भीड़ भारी पड़ी
तमिलनाडु पुलिस की वेबसाइट के अनुसार, इन हमलों से जुड़े चारों मामले अभी भी जांच के अधीन हैं। पुलिस महानिदेशक और करूर के एसपी ने भी इसकी पुष्टि की है। 26 मई 2023 की सुबह शुरू हुआ यह मामला एक सामान्य आयकर छापेमारी की कार्रवाई के रूप में दर्ज होना चाहिए था। आयकर विभाग की टीमें तत्कालीन डीएमके मंत्री वी. सेंथिल बालाजी और उनके करीबी लोगों की संपत्तियों पर छापा मारने पहुँची थीं, जो कैश-फॉर-जॉब्स घोटाले और मनी लॉन्ड्रिंग की जांच से जुड़ा था। लेकिन अधिकारियों के मुताबिक, यह छापा जल्द ही एक भयावह हिंसा में बदल गया — राज्य के प्रतिनिधियों पर खुलेआम हमला हुआ और कानून व्यवस्था को ठेंगा दिखाया गया।
‘प्लान बदल गया’: छापे से पहले लीक हुई खबर
एक वरिष्ठ आयकर अधिकारी ने बताया कि चेन्नई और अन्य जिलों से अधिकारियों को कोयंबटूर बुलाया गया था। उन्हें बताया गया कि छापे के लक्ष्य केरल के त्रिशूर और पलक्कड़ में होंगे। लेकिन रास्ते में ही असली गंतव्य बदल दिया गया — असल में निशाना था करूर। अधिकारी ने बताया कि “रात को ही सेंथिल बालाजी के भाई अशोक कुमार और उनके साथियों को इस छापे की खबर मिल गई थी। उन्होंने अपने मोबाइल और सिम कार्ड फेंक दिए और छिप गए।
पुलिस की खामोशी और भीड़ का हमला
सुबह 6 बजे जब अधिकारी अशोक कुमार के घर पहुंचे तो वह बंद मिला। खतरे का अंदेशा होते ही करूर के एसपी और आईजी को पुलिस सुरक्षा के लिए अनुरोध भेजा गया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। चेन्नई, त्रिची और इरोड में छापेमारी कर रही टीमों को मिनटों में पुलिस सुरक्षा मिल गई, लेकिन करूर में 1 किलोमीटर दूर दो थाने होने के बावजूद पुलिस मौके पर नहीं पहुँची। अगले आधे घंटे में पुलिस के बजाय 50 से ज्यादा लोगों की भीड़ पहुँच गई, जिसने टीम को घेर लिया। कुछ ही देर में दो एंबुलेंस भी पहुँच गईं, जिससे यह हमला पहले से योजनाबद्ध लगने लगा।
महिला अधिकारी पर हमला और अपमान
आयकर की डिप्टी डायरेक्टर एस.एन. योगप्रियंगा और उनकी टीम पर भीड़ ने हमला कर दिया। एफआईआर संख्या 260/2023 में दर्ज है कि अधिकारियों को सीढ़ियों से खींचकर गिराया गया, मारा-पीटा गया और सरकारी दस्तावेज व सील छीन लिए गए। योगप्रियंगा घायल हो गईं। जब उन्होंने हमलावरों से पूछा कि क्या वे नशे में हैं, तो उन्होंने उनके चेहरे पर फूंक मारी। जब अधिकारी ने चेहरा ढका तो उन पर मारपीट का झूठा आरोप लगाया गया। घायल हमलावरों को एंबुलेंस में बिठाकर भेज दिया गया, जबकि पुलिस अब तक नहीं पहुँची थी।
कॉमनवेल्थ मेडलिस्ट अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार
अशोक कुमार के घर पर एक और छापा चल रहा था, जहां महिला राजस्व निरीक्षक गायत्री जी और उनकी टीम पर हिंसक भीड़ टूट पड़ी। गायत्री, जो कॉमनवेल्थ गेम्स की पदक विजेता रह चुकी हैं, को भीड़ ने धक्का दिया और उनके साथ अभद्रता की। बाद में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। एफआईआर संख्या 377/2023 में दंगा, हमला, अश्लील हरकतें और महिलाओं से छेड़छाड़ जैसे गंभीर अपराध दर्ज किए गए।
कई स्थानों पर हमले और एक करोड़ नकद लूटा गया
एक अन्य अधिकारी के. कृष्णकांत की टीम पर 60 से अधिक लोगों की भीड़ ने हमला किया और जब्त किए गए दस्तावेज और लगभग 1 करोड़ रुपये नकद छीन लिए। इसी तरह आईआरएस अधिकारी ऐश्वर्या की टीम से भी दस्तावेज छीन लिए गए और वारंट फाड़ दिए गए। मजबूर होकर सभी टीमें करूर एसपी ऑफिस में शरण लेने पहुंचीं। छापेमारी तभी दोबारा शुरू हुई जब सीआरपीएफ की सुरक्षा मिली।
हमलावर अस्पतालों में भर्ती, न्याय में देरी
हमले के बाद 64 लोग जिनमें आरोपी, उनके रिश्तेदार और दोस्त शामिल थे। अचानक अस्पतालों में भर्ती हो गए। उन्होंने नकली बीमारियों का बहाना बनाकर पुलिस पूछताछ से बचने की कोशिश की। करूर पुलिस ने 50 अज्ञात लोगों के खिलाफ दंगा और सरकारी कर्मचारी पर हमले की धाराएं लगाईं। 16 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें डीएमके कार्यकर्ता और स्थानीय प्रभावशाली नाम शामिल थे। अधिकारियों के मुताबिक, गिरफ्तारियां महज दिखावे के लिए थीं।
कानूनी संघर्ष और अदालत की सख्ती
जब स्थानीय वकीलों ने आयकर अधिकारियों की पैरवी से इनकार कर दिया, तो अधिकारियों ने मदुरै बेंच में याचिका दायर की। न्यायमूर्ति जी. इलंगोवन ने पाया कि निचली अदालतों ने बिना उचित कारण के आरोपियों को जमानत दी थी। उन्होंने जमानत रद्द की और आरोपियों को आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया।इसके बावजूद, जांच आगे नहीं बढ़ी। कई आरोपी जेल में रहते हुए भी “बीमारी” के नाम पर अस्पतालों में समय काटते रहे।
न्यायिक प्रक्रिया में राजनीतिक दबाव
दो साल बीत चुके हैं, लेकिन चार्जशीट दाखिल नहीं हुई। 11 से अधिक गवाहों के बयान दर्ज हो चुके हैं, पर मुकदमे की दिशा अभी तक स्पष्ट नहीं है।सीसीटीवी फुटेज की मांग पर भी करूर नगर निगम और पुलिस ने कोई जवाब नहीं दिया। हमले में घायल अधिकारी अब खुद को सिस्टम द्वारा धोखा खाया हुआ महसूस करते हैं। हमने कानून का पालन किया, लेकिन राज्य ने हमारी रक्षा नहीं की। न्याय सिर्फ अदालतों ने दिया, एक अधिकारी ने कहा।
करूर का सबक
करूर आज सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि एक मिसाल बन गया है कि कैसे स्थानीय सत्ता और राजनीतिक प्रभाव, कानून के शासन को भी दबा सकते हैं। अदालतों ने जहां-जहां हस्तक्षेप किया, वहां न्याय की झलक दिखी, लेकिन पुलिस और प्रशासन की निष्क्रियता ने लोकतांत्रिक जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
2026 के चुनावों के नजदीक आने के साथ, करूर की यह कहानी तमिलनाडु की राजनीति में कानून, सत्ता और न्याय के बीच की खाई को उजागर करती है।