
जलवायु परिवर्तन या बाज़ार की मार, कश्मीर में बादाम किसान परेशान
कश्मीर में बादाम की खेती घटकर 20,000 हेक्टेयर से 4,000 हेक्टेयर रह गई। जलवायु संकट, बाज़ार की मार और सरकारी अनदेखी से किसान अब सेब की ओर रुख़ कर रहे हैं।
जापान जिस तरह अपने चेरी ब्लॉसम सीज़न के लिए दुनिया भर में जाना जाता है, उसी तरह कश्मीर की पहचान सदियों तक बादाम के फूलों से रही है। वसंत ऋतु में जब पहाड़ों की चोटियों और सीढ़ीदार खेतों पर सफेद बादाम के फूल खिलते थे, तो पूरी घाटी एक अलग ही सौंदर्य का दृश्य प्रस्तुत करती थी।
बदलते वक़्त की तस्वीर
कश्मीर के पुलवामा ज़िले के रहमो गाँव के 34 वर्षीय किसान रेय्यास अहमद मंटू कहते हैं – “बादाम के फूल हमारी ज़िंदगी का हिस्सा थे। हर वसंत गाँव में इसका उत्सव होता था, लेकिन अब जश्न मनाने जैसा कुछ नहीं बचा है।” वह डरते हैं कि अगली पीढ़ी शायद इस नज़ारे को कभी देख ही न पाए।
1990 के दशक में जम्मू-कश्मीर में 20,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर बादाम की खेती होती थी। पुलवामा और बडगाम के उर्वर करेवा मैदान बादाम की बाग़वानी के लिए मशहूर थे। पुलवामा तो बादाम उत्पादन का गढ़ माना जाता था।
सरकारी आंकड़ों की गवाही
लेकिन साल 2006-07 तक यह क्षेत्र घटकर 16,374 हेक्टेयर रह गया और 2019-20 तक यह और गिरकर केवल 4,177 हेक्टेयर पर सिमट गया। स्थानीय किसानों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन, फसल की देखभाल की कठिनाई, और सरकारी उदासीनता ने बादाम की खेती को हाशिये पर पहुँचा दिया। इसके साथ ही भारतीय बाज़ार में कैलिफ़ोर्निया बादाम की आमद ने कश्मीरी बादाम की माँग को बुरी तरह प्रभावित किया। 2023-24 में अकेले कैलिफ़ोर्निया से भारत में 400 मिलियन पाउंड बादाम का आयात हुआ, जो पिछले साल की तुलना में 21% अधिक था।
सेब के बागानों की ओर रुझान
पिछले दस वर्षों में कश्मीर के बड़े हिस्सों में बादाम के बागानों को काटकर उनकी जगह सेब के बाग लगाए जा रहे हैं। मंटू बताते हैं कि 2020 में उनके पास 3.1 एकड़ में बादाम का बाग था, जो अब घटकर 0.9 एकड़ रह गया है। वे कहते हैं, “2020 में इस ज़मीन से 25 क्विंटल बादाम निकले थे, लेकिन दाम इतने गिर गए कि यह अब लाभकारी नहीं रहा। मजबूरी में 2.25 एकड़ बादाम का बाग काटकर सेब लगाना पड़ा।”बडगाम के इम्तियाज़ अहमद भट और शोपियां के आबिद शफ़ी जैसे कई किसान भी यही कदम उठा चुके हैं।
प्राकृतिक चुनौतियां और नुकसान
विशेषज्ञ बताते हैं कि बादाम के फूल मार्च-अप्रैल में जल्दी खिलते हैं, इसलिए वे ठंडी हवाओं, असमय बारिश और बर्फ़बारी से आसानी से नष्ट हो जाते हैं। किसान शिकायत करते हैं कि कई बार फूल खिलते ही अचानक ठंड पड़ने से पूरी फसल नष्ट हो जाती है। वहीं सिंचाई की सुविधाओं की कमी, अधूरे बने बाँध और नहरों ने समस्या और बढ़ा दी है।
आर्थिक तुलना : बादाम बनाम सेब
अध्ययनों के अनुसार, मध्यम घनत्व वाली बादाम की खेती में प्रति हेक्टेयर लगभग ₹1.03 लाख निवेश की ज़रूरत होती है और तीन टन उपज मिलती है। दूसरी ओर, हाई-डेंसिटी सेब की खेती में शुरुआत में करीब ₹45 लाख का निवेश करना पड़ता है, लेकिन उत्पादन 61.6 टन प्रति हेक्टेयर तक हो सकता है। यही कारण है कि किसान अधिक लाभ और सरकारी सहयोग के चलते सेब की खेती को प्राथमिकता दे रहे हैं।
किसानों की आवाज़ और उम्मीदें
किसानों का आरोप है कि सरकार ने चावल और सेब जैसी नई किस्में तो पेश कीं, लेकिन बादाम की खेती की अनदेखी की। पुलवामा के मजीद अहमद कहते हैं – “कभी तीन किलो चाय के बदले एक किलो बादाम मिलता था, अब हालात उलट हैं।”
हालाँकि, सरकारी अधिकारी दावा करते हैं कि देर से फूलने वाली और बाज़ार की माँग वाली किस्में लाई जा रही हैं ताकि बादाम की खेती को फिर से लाभकारी बनाया जा सके। पुलवामा के बाग़वानी अधिकारी जाविद अहमद कहते हैं, “बादाम के बाग लगाना सेब की तुलना में सस्ता है और रखरखाव भी कम है। अगर अच्छी किस्में और सिंचाई मिलें तो किसान अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं।”
मंटू भी पूरी तरह उम्मीद नहीं खोए हैं। वे कहते हैं – “अगर सरकार अच्छे पौधे, सिंचाई और उचित दाम दे तो मैं फिर से बादाम के बाग बढ़ा सकता हूँ। पेड़ अब भी ज़िंदा हैं। अगर ऐसा हुआ, तो एक बार फिर कश्मीर की वादियों में वसंत का आग़ाज़ बादाम के फूलों से होगा।