
पहलगाम आतंकी हमले के विरोध में कश्मीर के अखबार हुए काले, घाटी का दिल फिर छलनी
पहलगाम आतंकी हमले के विरोध में बुधवार 23 अप्रैल, 2025 को कश्मीर के प्रमुख अखबारों ने अपने पहले पन्ने काले कर दिए।
कश्मीर की वादियों में फिर मातम पसर गया। दिल दहला देने वाले पहलगाम आतंकी हमले के विरोध में बुधवार 23 अप्रैल, 2025 को कश्मीर के प्रमुख अखबारों ने अपने पहले पन्ने काले कर दिए। यह कोई साधारण विरोध नहीं था यह एक बेजुबान चीख थी, एक जलते हुए दिल की पुकार, जो काग़ज़ की स्याही से गूंज उठी है।
इस अमानवीय हमले में 26 निर्दोष जानें चली गई। ज़्यादातर वो लोग जो इस वादी की खूबसूरती देखने, कुछ सुकून के पल जीने आए थे। लेकिन उन्हें मिला क्या? गोलियों की गूंज, खून से लथपथ वादियाँ, और बिखरी हुई उम्मीदें।
"कश्मीर झुलस गया, कश्मीरी शोक में डूबे हैं"। ग्रेटर कश्मीर की यह हेडलाइन काले पृष्ठ पर सफेद अक्षरों में कुछ ऐसे उभरी, मानो किसी ने आसमान से रोशनी छीन ली हो। नीचे लाल रंग में छपी पंक्तियाँ जैसे खून के आँसू बहा रही थीं "पहलगाम में आतंक का तांडव, 26 मौतें।"
"घाटी में नरसंहार, बचाइए कश्मीर की आत्मा" नामक भावनात्मक संपादकीय में लिखा गया, "यह हमला सिर्फ इंसानों की जान पर नहीं, कश्मीर की रूह पर वार है। हमारी मेहमाननवाज़ी, हमारा प्यार, हमारी शांति — सबकुछ लहूलुहान हो गया। वे जो यहां सुकून खोजने आए थे, उन्हें मिली चीखें, अफरा-तफरी और मातम।"
यह संपादकीय किसी पत्रकार की कलम से नहीं, एक घायल दिल से निकला प्रतीत होता है, वह दिल जो चाहता है कि कश्मीर फिर से ‘धरती का स्वर्ग’ कहलाए, न कि एक जख्मी ज़मीन।
एकजुटता की सिसकी
संपादकीय ने इस त्रासदी को रोक पाने में चूक की ओर इशारा करते हुए, सुरक्षा व्यवस्था में गहराई और सजगता की गुहार लगाई। "कश्मीर के लोग बहुत कुछ सह चुके हैं, लेकिन अब और नहीं। यह हमला हमें बांट नहीं सकता। हमें जोड़ना होगा — सरकार, सुरक्षाबल, समाज और हर इंसान को एक सुर में बोलना होगा कि हम आतंक के आगे नहीं झुकेंगे।"
"हमें वो दिन वापस लाने हैं जब पहलगाम की वादियों में बच्चों की हँसी गूंजे, न कि गोलियों की आवाज़। जब मेहमानों को फूलों की खुशबू मिले, बारूद की नहीं। कश्मीर को फिर से मुस्कुराना होगा — और यह तभी होगा जब हम एक साथ खड़े होंगे, एक ही दिल बनकर।"