मतदाता अधिकार पर हमला? केरल विधानसभा ने SIR पर कड़ा विरोध जताया
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मतदाता अधिकार पर हमला? केरल विधानसभा ने SIR पर कड़ा विरोध जताया

केरल विधानसभा ने EC के विशेष गहन मतदाता सूची संशोधन (SIR) का विरोध किया। प्रस्ताव में NRC और CAA से जुड़े लोकतंत्र पर खतरे की चेतावनी दी गई।


सोमवार, 29 सितंबर को केरल विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें चुनाव आयोग (EC) द्वारा मतदाता सूची का विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision – SIR) करने की योजना का विरोध किया गया। यह प्रस्ताव मुख्यमंत्री पिनराई विजयन द्वारा नियम 118 के तहत पेश किया गया था और इसमें चेतावनी दी गई कि यह अभ्यास विवादास्पद राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लागू करने का एक गुप्त प्रयास बन सकता है। प्रस्ताव में कुछ सुधार भी किए गए, जो विधायकों (MLAs) द्वारा सुझाए गए थे।

बिहार का उदाहरण पेश किया मुख्यमंत्री ने

मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार में पहले किए गए SIR प्रक्रिया ने व्यापक चिंता पैदा की थी, क्योंकि इसके दौरान कथित तौर पर मतदाता सूची से नामों को मनमाने ढंग से हटाया गया। प्रस्ताव में कहा गया: “बिहार में बहिष्कार की राजनीति स्पष्ट रूप से देखी गई। वहां जो हुआ, वह राष्ट्रीय स्तर पर इसी तरह की रणनीति अपनाए जाने की चिंता पैदा करता है।”

विधानसभा ने इस अभ्यास के समय को लेकर भी चिंता जताई। केरल जल्द ही स्थानीय निकाय चुनावों की ओर बढ़ रहा है, जिसके बाद 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं। सदन का तर्क था कि इस समय SIR करना न तो सामान्य माना जा सकता है और न ही मासूमियत से किया गया कदम। प्रस्ताव में कहा गया: “SIR जैसी प्रक्रिया के लिए सावधानीपूर्वक तैयारी और व्यापक परामर्श आवश्यक है। इसे जल्दी में लागू करना लोगों की मंशा को प्रभावित करने के प्रयास की आशंका पैदा करता है।”

विवादित शर्तें

सदन ने यह भी कहा कि केरल में पिछली बार गहन मतदाता सूची संशोधन 2002 में हुआ था। वर्तमान अभ्यास को उसी ढांचे पर आधारित करना “अवैज्ञानिक और अनुचित” है। SIR के सबसे विवादित पहलुओं में से एक यह है कि 1987 के बाद जन्म लेने वाले लोगों को वोटर बनने के लिए माता-पिता में से किसी एक के नागरिकता दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे। 2003 के बाद जन्मे लोगों के लिए यह शर्त दोनों माता-पिता के दस्तावेज जमा करने तक बढ़ जाती है।

विधानसभा ने चेतावनी दी कि इस तरह की शर्तें संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत दिए गए सार्वभौमिक मताधिकार का उल्लंघन करती हैं। प्रस्ताव में कहा गया: “दस्तावेजों की कमी के कारण मतदाता पंजीकरण से वंचित करना नागरिकों के मौलिक लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है।”

CAA को लेकर चिंताएँ

सदन ने यह भी कहा कि अध्ययनों से पता चलता है कि ऐसे दस्तावेज़ीकरण की शर्तें हाशिए पर रहने वाले समुदायों को सबसे अधिक प्रभावित करेंगी। इसमें अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिलाएं और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग शामिल होंगे। प्रस्ताव में यह भी चेतावनी दी गई कि SIR नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को मजबूत करने के प्रयासों के साथ मेल खा सकता है, जिसे आलोचक कहते हैं कि यह नागरिकता को सांप्रदायिक बनाता है। “जो लोग नागरिकता को सांप्रदायिक बनाना चाहते हैं, वे SIR का इस्तेमाल अपनी रणनीति को लागू करने के लिए करेंगे। यह सीधे लोकतंत्र के लिए चुनौती है।”

चुनाव आयोग से अपील

सदन ने पारदर्शिता बनाए रखने का आह्वान करते हुए चुनाव आयोग से कहा कि वह मौलिक अधिकारों के उल्लंघन वाले उपायों से परहेज़ करे और इसके बजाय निष्पक्ष एवं समावेशी तरीके से नियमित मतदाता सूची संशोधन करे। प्रस्ताव को शासक वाम दल और विपक्षी संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (UDF) दोनों के समर्थन से पारित किया गया, जो विधानसभा में दुर्लभ सर्वसम्मति का उदाहरण है।

सदर प्रस्ताव की अंतिम पंक्ति में कहा गया: “यह सदन सर्वसम्मति से मांग करता है कि चुनाव आयोग ऐसे कदमों से पीछे हटे जो सार्वभौमिक मताधिकार को प्रभावित करते हैं और इसके बजाय मतदाता सूचियों का पारदर्शी, निष्पक्ष संशोधन सुनिश्चित करे।”

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