
केरल में मतदाता सूची संशोधन, पारदर्शिता की कवायद या लोकतंत्र पर संकट?
बिहार की तरह अब केरल में भी मतदाता सूची की विशेष संशोधन प्रक्रिया शुरू होगी। अल्पसंख्यक और प्रवासी समुदाय के बहिष्कार की आशंका गहराई।
बिहार के बाद अब केरल में भी मतदाता सूची की विशेष गहन संशोधन प्रक्रिया (Special Intensive Revision – SIR) लागू होने जा रही है। बिहार में इसी प्रक्रिया के तहत लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम काटे गए थे, जिनमें बड़ी संख्या अल्पसंख्यक और वंचित वर्गों से संबंधित थी। सुप्रीम कोर्ट अब भी बिहार की इस प्रक्रिया की निगरानी कर रहा है।
केरल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) रतन यू. केलकर ने घोषणा की है कि आने वाले हफ्तों में यह प्रक्रिया शुरू होगी। इसमें वर्ष 2002 की मतदाता सूची को वर्तमान (2025) की सूची से मिलान किया जाएगा। उद्देश्य सूची को अधिक सटीक और पारदर्शी बनाना है, लेकिन आशंका जताई जा रही है कि अल्पसंख्यक समुदायों, प्रवासी मज़दूरों और एनआरके (Non-Resident Keralites) को अपनी पात्रता साबित करने में दिक़्क़त हो सकती है।
सामान्य संशोधन से अलग
आमतौर पर Special Summary Revision केवल सूची में अद्यतन और सुधार पर केंद्रित होती है। लेकिन SIR में 2002 की सूची को डिजिटाइज कर मौजूदा सूची से मिलाया जाएगा, यानी सूची को लगभग नए सिरे से बनाया जाएगा। अधिकारियों का अनुमान है कि करीब 80% नाम अपने आप मेल खा जाएंगे, लेकिन शेष नामों के लिए घर-घर जाकर सत्यापन और नए दस्तावेज़ मांगे जाएंगे।
अधिकारियों का कहना है कि जनसांख्यिकीय बदलाव और प्रवास पैटर्न के कारण यह कदम ज़रूरी है। अगर सावधानी से किया गया, तो यह प्रक्रिया मतदाता सूची को आधुनिक और पारदर्शी बना सकती है। लेकिन लापरवाही से यह अल्पसंख्यकों और वंचित समूहों के लिए बहिष्कार का कारण भी बन सकती है।
बिहार का अनुभव और चिंता
बिहार में जब यही प्रक्रिया अपनाई गई थी, तो लगभग 65 लाख नाम सूची से हटा दिए गए। इनमें बड़ी संख्या अल्पसंख्यक और सामाजिक रूप से कमजोर तबकों की थी। इसके चलते राज्यभर में विरोध-प्रदर्शन और कानूनी चुनौतियाँ उठीं। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह आदेश दिया कि जिनके नाम काटे गए हैं, उनकी सूची सार्वजनिक की जाए और कारण बताए जाएँ। साथ ही अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पहचान साबित करने के लिए आधार को स्वीकार किया जाए, लेकिन यह नागरिकता का सबूत नहीं माना जाएगा। इन घटनाओं के बाद केरल में चिंता और गहरी हो गई है, खासकर इसलिए कि अगले साल राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं।
प्रवासी और अल्पसंख्यक सबसे असुरक्षित
केरल की आबादी में धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक बड़ी संख्या में हैं। प्रवासी मज़दूर, जिनके पास स्थायी पते के दस्तावेज़ अक्सर नहीं होते, और एनआरके, जिनके पास सामान्य पहचान पत्र नहीं होते, सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि कम जागरूकता और काग़ज़ी औपचारिकताओं की वजह से कई वैध मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं।
आश्वासन और तैयारी
मुख्य निर्वाचन अधिकारी रतन केलकर का कहना है कि कोई भी पात्र नागरिक मतदाता सूची से बाहर नहीं होगा। प्रवासी और एनआरके ऑनलाइन दस्तावेज़ जमा कर सकेंगे ताकि फिज़िकल वेरिफिकेशन की परेशानी कम हो। राज्यव्यापी जागरूकता अभियान चलाने की भी तैयारी है।20 सितंबर को राजनीतिक दलों की बैठक बुलाई गई है, ताकि प्रक्रिया को लेकर उनकी चिंताओं पर चर्चा हो सके और आम सहमति बनाई जा सके।
पारदर्शिता और कानूनी निगरानी
केरल में राजनीतिक दल हमेशा एक-दूसरे की निगरानी करते हैं। विपक्षी कांग्रेस और सत्तारूढ़ एलडीएफ के बीच आरोप-प्रत्यारोप होते रहे हैं, लेकिन प्रक्रिया को अब तक उत्तर भारत की तुलना में ज़्यादा पारदर्शी माना जाता है।
हालांकि, शहरीकरण और प्रवासी मज़दूरों की बढ़ती संख्या नए विवाद पैदा कर सकती है। पिछली लोकसभा चुनावों में त्रिशूर में बीजेपी पर झूठे किरायानामे के आधार पर मतदाता जोड़ने का आरोप लगा था।सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, चुनाव आयोग को सूची से हटाए गए नाम और कारण सार्वजनिक करने होंगे, ताकि प्रभावित लोग अपील कर सकें। इससे प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहेगी।
ऊंचे दांव
केरल हमेशा से देश में सबसे ऊँचे मतदान प्रतिशत वाला राज्य रहा है। मतदाता सूची पर भरोसे में कमी चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता को चोट पहुँचा सकती है। आने वाले स्थानीय निकाय और विधानसभा चुनावों में छोटी-सी चूक भी बड़े राजनीतिक असर डाल सकती है।
प्रशासनिक स्तर पर तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। 2002 की सूची को डिजिटाइज किया जा रहा है और मौजूदा रिकॉर्ड से मिलान किया जा रहा है। सितंबर के अंत में राजनीतिक परामर्श के बाद घर-घर जाकर सत्यापन अभियान शुरू होगा।
बिहार के बाद अब सबकी नज़र केरल पर
बिहार के अनुभव ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि न्यायपालिका, सिविल सोसाइटी और राजनीतिक दल इस प्रक्रिया पर पैनी नज़र रखेंगे। सवाल सिर्फ मतदाता सूची की सटीकता का नहीं है, बल्कि यह भी है कि क्या यह प्रक्रिया लोकतांत्रिक समावेशन को मज़बूत करेगी या कमजोर।
चुनाव आयोग द्वारा 6 जनवरी 2025 को जारी सूची के अनुसार, केरल में 2,77,20,818 पंजीकृत मतदाता थे। वहीं, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए हाल ही में जारी अंतिम सूची में 2,83,12,463 मतदाताओं के नाम दर्ज किए गए हैं।