हाथी-सूअर-बंदर से तबाही, केरल सरकार लाई विवादित कानून
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हाथी-सूअर-बंदर से तबाही, केरल सरकार लाई विवादित कानून

केरल का वन्यजीव संशोधन विधेयक 2025 किसानों को सुरक्षा देगा या जानवरों को खतरे में डालेगा? किसान समर्थन में लेकिन पर्यावरणविद विरोध में हैं।


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केरल सरकार द्वारा प्रस्तावित वन्यजीव संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2025 ने राज्य और देशभर में तीखी बहस छेड़ दी है। यह विधेयक 1972 के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में संशोधन कर उसे राज्य स्तर पर लागू करने का प्रयास करता है। सरकार का दावा है कि यह कदम लगातार बढ़ते मानव–वन्यजीव संघर्ष से निपटने और किसानों व ग्रामीण परिवारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है। लेकिन वन्यजीव कार्यकर्ताओं और पर्यावरणविदों का कहना है कि इससे दशकों की संरक्षण उपलब्धियाँ खतरे में पड़ सकती हैं।

‘मारने का लाइसेंस’ या किसान सुरक्षा?

पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने इसे सीधे-सीधे “मारने का लाइसेंस” करार दिया है। उनका कहना है कि किसानों की परेशानी का बहाना बनाकर सरकार को ऐसे अधिकार देना खतरनाक है, जिससे जानवरों का अंधाधुंध शिकार शुरू हो सकता है।

पशु अधिकार कार्यकर्ता श्रीदेवी एस. कार्ता ने कहा “केंद्र सरकार पहले भी इस तरह की मांगों को खारिज कर चुकी है। मौजूदा कानून में पहले से ही ऐसे प्रावधान हैं कि समस्या पैदा करने वाले जानवरों से निपटा जा सके। केंद्र की मंजूरी या राष्ट्रपति की सहमति मिलने की संभावना बेहद कम है।”

किसानों का समर्थन

दूसरी ओर, किसान संगठन और वन क्षेत्रों से सटे गाँवों के लोग इस कदम का स्वागत कर रहे हैं। उनका कहना है कि वर्षों से हाथी, जंगली सूअर और बंदरों के हमलों से उनका जीवन और खेती दोनों तबाह हो रहे हैं।

कोंनी के किसान विक्टर चेरियन ने कहा “पर्यावरणविद शहरों के आरामदायक फ्लैटों से बयान देते हैं। असली कष्ट तो हमें झेलना पड़ता है। अगर वे चाहते हैं कि जंगली सूअर और बंदर बचें, तो आकर यहाँ हमारे साथ रहें।”

विधेयक में क्या है नया?

63 पन्नों का यह विधेयक कई बड़े बदलाव पेश करता है धारा 11 में संशोधन: चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन और वरिष्ठ वन अधिकारियों को यह अधिकार देना कि अगर कोई जानवर इंसानों पर हमला करे या आबादी वाले इलाके में घुसकर दहशत फैलाए, तो उसे पकड़ने, बेहोश करने, कहीं और भेजने या जरूरत पड़ने पर मारने का आदेश दिया जा सके।

जनसंख्या नियंत्रण: विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के आधार पर अगर कोई प्रजाति बड़े पैमाने पर फसल या संपत्ति का नुकसान करे, तो सरकार उस प्रजाति को “खतरनाक” घोषित कर जन्म नियंत्रण या स्थानांतरण जैसी नीति लागू कर सकती है।

धारा 62 में संशोधन: कुछ प्रजातियों को ‘हानिकारक जीव’ (Vermin) घोषित करने की अनुमति। सबसे विवादित प्रस्ताव है बोनेट मकाक (Macaca radiata) को अनुसूची-I से घटाकर अनुसूची-II में डालना। इससे उसे ‘हानिकारक’ घोषित कर कानूनी रूप से मारना संभव हो जाएगा।

मानव–वन्यजीव संघर्ष की जमीनी हकीकत

आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार हाथियों द्वारा फसलों को रौंदने की घटनाएँ बढ़ रही हैं। जंगली सूअर बागानों और खेतों में भारी नुकसान पहुँचा रहे हैं।बंदर कस्बाई और शहरी इलाकों में आतंक फैला रहे हैं। कई ग्रामीण इलाकों में मानव मौतें और किसानों का आर्थिक नुकसान लगातार बढ़ रहा है। यही कारण है कि विधानसभा सचिवालय ने प्रस्तावना में लिखा कि “लगातार मानव–वन्यजीव संघर्ष और जनहानि के कारण तत्काल विधायी हस्तक्षेप जरूरी है।”

चुनावी पहलू भी

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस विधेयक का संबंध सिर्फ किसानों की सुरक्षा से नहीं बल्कि आगामी स्थानीय निकाय और विधानसभा चुनावों से भी है। सबरीमाला आंदोलन के बाद अब ऊँचाई वाले इलाकों के किसान एक संवेदनशील वोट बैंक बन चुके हैं। सरकार इस विधेयक से उन्हें भरोसा दिलाना चाहती है।

संवैधानिक पेच

चूँकि वन्यजीव कानून समवर्ती सूची (Concurrent List) में आते हैं, किसी राज्य द्वारा किए गए संशोधन को या तो केंद्र की सिफारिश चाहिए या फिर राष्ट्रपति की सहमति (अनुच्छेद 254(2) के तहत)। लेकिन राष्ट्रपति की सहमति लगभग हमेशा केंद्र सरकार की कैबिनेट सलाह से तय होती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, मौजूदा माहौल में राष्ट्रपति की मंजूरी की संभावना बेहद कम है।

वन्यजीव संरक्षण (केरल संशोधन) विधेयक, 2025 ने राज्य को दोराहे पर खड़ा कर दिया है।किसान सुरक्षा और आजीविका की गारंटी बनाम दशकों से हासिल संरक्षण की उपलब्धियों पर सवाल है। यह विधेयक सिर्फ केरल की राजनीति नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए इस सवाल की कसौटी बनेगा कि मानव सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन कैसे साधा जाए।

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