पश्चिम बंगाल मॉडल, दया और भोजन से घटे डॉग बाइट मामले
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पश्चिम बंगाल मॉडल, दया और भोजन से घटे डॉग बाइट मामले

पश्चिम बंगाल में आवारा कुत्तों के व्यवहार में बदलाव दिख रहा है। एनजीओ, बच्चों और सरकार की पहल से डॉग बाइट मामलों में कमी और सह-अस्तित्व की नई राह खुली है।


कोलकाता के अजय बार, जो पेशे से ड्राइवर हैं, हर बार शाम सात बजे के बाद काम पर निकलते समय अपने साथ एक डंडा रखते हैं। हरिदेवपुर थाना क्षेत्र, जहाँ वह अधिकतर काम करते हैं, लंबे समय से आक्रामक आवारा कुत्तों के लिए बदनाम रहा है। अजय बार के बाएँ टखने पर आज भी पाँच साल पहले हुए कुत्ते के काटने का निशान मौजूद है। वह बताते हैं कि रात को लौटते समय कुत्तों के झुंड ने उन पर हमला किया था। तभी से वह हर समय सावधानी के लिए डंडा लेकर चलते हैं।

लेकिन हाल के महीनों में उन्होंने इन कुत्तों के व्यवहार में बड़ा बदलाव महसूस किया। पहले जहाँ वह साइकिल पर आते-जाते देखते ही पीछे दौड़ पड़ते थे, अब वे लगभग उदासीन रहते हैं। उनका मानना है कि यह परिवर्तन सर्दी 2024 से शुरू हुआ था।

बदलाव की वजह: प्यार और दया

पशु अधिकार कार्यकर्ता और चिकित्सक डॉ. प्रभाकर मंडल बताते हैं “आवारा कुत्तों को शांत करने का सबसे असरदार तरीका है उन्हें भोजन देना। जब उन्हें नियमित खाना मिलता है, तो उनके अंदर जीवित रहने की चिंता कम हो जाती है।” यही काम हरिदेवपुर इलाके में कुछ पशुप्रेमियों, जिनमें मंडल भी शामिल हैं, ने किया है।

पिछले कुछ सालों से देशभर में आवारा कुत्तों को अपनाने और उन्हें खिलाने की प्रवृत्ति बढ़ी है। पश्चिम बंगाल सरकार ने भी युवाओं में पशुओं के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की संस्कृति विकसित करने के लिए कई पहल की हैं। राज्य के सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों को कहा गया है कि वे मिड-डे मील के बचे हुए खाने से अपने इलाके के कुत्तों को भोजन कराएँ।

डॉग बाइट मामलों में गिरावट

केंद्र सरकार के ताज़ा आँकड़ों (जनवरी 2025) के अनुसार, पश्चिम बंगाल में कुत्ते के काटने के 10,264 मामले दर्ज हुए, जो उत्तर प्रदेश (20,478), तमिलनाडु (48,931), महाराष्ट्र (56,538) और कर्नाटक (39,437) जैसे राज्यों से कहीं कम हैं। राज्य के पशु संसाधन विकास मंत्री, स्वपन देबनाथ के अनुसार, जनवरी के बाद मामलों में और कमी दर्ज हुई है। उम्मीद है कि यह साल पिछले साल के 76,486 मामलों की तुलना में काफी कम आंकड़े के साथ समाप्त होगा।

यह सकारात्मक रुझान उस समय सामने आया है जब पूरे देश में डॉग बाइट और आवारा कुत्तों के प्रबंधन का मुद्दा अदालत और समाज में गरमाया हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आदेश दिया था कि आवारा कुत्तों को आश्रय गृहों में रखा जाए, बाद में आदेश संशोधित कर बाँझ और टीकाकृत कुत्तों को सड़कों पर वापस छोड़ने की अनुमति दी गई, लेकिन सड़क पर खिलाने पर रोक लगाकर इसके लिए निर्धारित स्थान बनाने को कहा गया।

एनजीओ और समुदाय की भूमिका

हालाँकि राज्य सरकार ने नसबंदी अभियान तेज करने का दावा किया है, लेकिन कोलकाता नगर निगम द्वारा अदालत में प्रस्तुत आँकड़े बताते हैं कि निगम का लक्ष्य (15,000–20,000 कुत्तों की वार्षिक नसबंदी) काफी पीछे छूट गया है। एनजीओ और पशुप्रेमियों की भूमिका यहाँ अहम रही है।

उत्तरी कोलकाता में वलोबाशा नामक पालतू देखभाल केंद्र चलाने वाली कार्यकर्ता रोमा चक्रवर्ती बताती हैं कि उनका संगठन हर हफ्ते 10–12 आवारा कुत्तों की नसबंदी कराता है। एक प्रक्रिया का खर्च 3,000–3,500 रुपये तक आता है और अधिकांश एनजीओ को इसके लिए सरकारी सहायता नहीं मिलती।

शिक्षा प्रणाली में बदलाव

राज्य सरकार ने इस मुद्दे को शिक्षा से भी जोड़ा है। पश्चिम बंगा समग्र शिक्षा मिशन (PBSSM) ने स्कूल पाठ्यक्रम में आवारा कुत्तों से सुरक्षित तरीके से निपटने के निर्देश शामिल किए हैं। बच्चों को सिखाया जा रहा है कि समूह में घूम रहे कुत्तों के पास न जाएं, उन्हें चिढ़ाएं नहीं, और यदि कोई कुत्ता आक्रामक दिखे तो शांत रहकर बड़ों से मदद लें।

इस साल जून में जारी एक और निर्देश के तहत, स्कूलों को मिड-डे मील का बचा हुआ खाना कुत्तों को खिलाने के लिए कहा गया। इसका उद्देश्य छात्रों में दया और जिम्मेदारी की भावना विकसित करना है।

कक्षा 8 के छात्र जॉय मंडल बताते हैं पहले मुझे आवारा कुत्ते खतरनाक लगते थे, लेकिन स्कूल में पढ़ने और उन्हें खिलाने के बाद अब मुझे उन पर दया आती है। कई कुत्तों को तो मैं पहचानने भी लगा हूं। दोपहर में वे स्कूल गेट के पास आकर बैठ जाते हैं और मैं कभी-कभी उन्हें खिलाता हूं।

आगे की राह

कार्यकर्ताओं का मानना है कि नसबंदी, टीकाकरण, अपनाने और नियमित भोजन से कुत्तों की आक्रामकता और झुंड में घूमने की प्रवृत्ति कम होगी। डॉ. मंडल सावधान करते हैं जो बदलाव हम अभी देख रहे हैं, वह बस शुरुआत है। इसे स्थायी बनाने के लिए समुदाय और सरकार दोनों की सतत कोशिश जरूरी है। यही असली परीक्षा होगी।

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