
कोलकाता में बाढ़, प्राकृतिक आपदा या प्रशासन की नाकामी?
दुर्गा पूजा से पहले रिकॉर्ड बारिश और जर्जर नालियों ने कोलकाता को जलमग्न कर दिया। प्रशासनिक अक्षमता पर अब सवाल भी उठ रहे हैं।
सोमवार (22 सितंबर) और मंगलवार (23 सितंबर) की दरम्यानी रात को कोलकाता पर जो आफ़त टूटी, उसका अंदाज़ा शहर के ज़्यादातर लोगों को अगली सुबह ही हुआ। जब वे नींद से उठे तो पाया कि उनके मोहल्ले कमर से लेकर टखने तक पानी में डूबे हुए हैं। केवल वे लोग, जो निचले इलाकों में—खासकर झुग्गियों और साधारण एक-मंज़िला घरों में—रहते थे, रात लगभग 1 बजे से ही बाढ़ का सामना करने लगे थे। यह बारिश शुरू होने के मुश्किल से एक घंटे बाद की बात थी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कोलकाता के मेयर फिरहाद हाकिम ने भी स्वीकार किया कि ऐसी बारिश उन्होंने कभी नहीं देखी थी।
सबसे बड़ा झटका यह था कि यह जलप्रलय बंगाल के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा से ठीक एक हफ़्ता पहले आया। यह समय साल भर से लोग इंतज़ार करते हैं—न केवल उत्सव और आनंद के लिए, बल्कि व्यापार और रोज़गार के लिए भी। ऐसे में विपक्षी भाजपा और नाराज़ जनता ने सरकार और कोलकाता नगर निगम (KMC) को दोषी ठहराना शुरू किया। सोशल मीडिया पर तो मज़ाक उड़ने लगा कि अब केवल मेट्रो का एक हिस्सा नहीं, बल्कि पूरा कोलकाता ही "अंडरवॉटर मेट्रो" बन गया है। वहीं मुख्यमंत्री ने दामोदर वैली कॉरपोरेशन (DVC) पर दोष मढ़ा और कहा कि फरक्का बैराज की ठीक से ड्रेजिंग न होने के कारण यह बाढ़ आई।
कोलकाता में बाढ़ के मुख्य कारण
यह आपदा कई कारणों के मेल से पैदा हुई—कुछ प्राकृतिक और कुछ प्रशासनिक लापरवाही व पारिस्थितिक उदासीनता का नतीजा।
1. रिकॉर्ड बारिश
सोमवार रात से मंगलवार सुबह तक लगातार सात घंटे तक मूसलाधार बारिश होती रही। बताया जाता है कि यह बारिश 7 किमी ऊँचे बादलों के स्तंभ से हुई, जो बंगाल की खाड़ी पर बने लो-प्रेशर सिस्टम से और तेज़ हो गई। नतीजतन, कोलकाता में 251.4 मिमी बारिश हुई—जो शहर की सालाना बारिश का लगभग 20% है—सिर्फ सात घंटों में। यह 1986 के बाद सबसे भारी बारिश थी और बीते 137 सालों में छठा सबसे बड़ा 24 घंटे का रिकॉर्ड। सुबह 3 से 4 बजे के बीच तो 98 मिमी बारिश दर्ज की गई, जो क्लाउडबर्स्ट के क़रीब था।
2. हुगली (गंगा) में ज्वार
दुर्भाग्य से उसी समय हुगली नदी में ज्वार आया हुआ था। भारी बारिश से शहर डूब रहा था, लेकिन KMC को नदी से और पानी घुसने से रोकने के लिए स्लूस गेट बंद करने पड़े। नतीजतन, बारिश का पानी शहर से बाहर नहीं जा पाया और उपनिवेशकालीन सीवर नेटवर्क अपनी क्षमता से ज़्यादा दबाव झेलने लगा।
3. जर्जर नाला-नाली व्यवस्था
कोलकाता की जलनिकासी प्रणाली सौ साल से भी पुरानी है और मुख्यतः गुरुत्वाकर्षण पर आधारित है। इसे उस दौर में छोटे शहर और कम आबादी के लिए बनाया गया था। आज की विशाल आबादी और शहरी फैलाव के लिए यह बिल्कुल नाकाफ़ी है। 2024 के एक शोध पत्र में भी कहा गया था कि बड़े तूफ़ानों में यह प्रणाली अक्सर फेल हो जाती है।
4. कटोरेनुमा भौगोलिक स्थिति
कोलकाता की प्राकृतिक बनावट कटोरेनुमा है, जहाँ शहर का मध्य भाग किनारों की तुलना में नीचा है। इस बार शहर पूरा एक "कटोरा" बन गया, जो पानी से भर गया। पंपिंग की क्षमता भी इतनी भारी बारिश झेलने के लिए पर्याप्त नहीं थी।
5. प्लास्टिक कचरा और बंद नालियां
गलत तरीके से फेंका गया प्लास्टिक कचरा नालियों और पंपिंग सिस्टम को जाम कर देता है। पतली सिंगल-यूज़ प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबंध के बावजूद वे दुकानों और बाज़ारों में वापस आ जाती हैं और सड़कों पर फैलकर जलनिकासी को पंगु बना देती हैं। ऊपर से नालों की नियमित सफाई न होने और सीवर में गाद जमने से स्थिति और बिगड़ जाती है। सॉल्ट लेक सेक्टर V जैसे इलाकों में मेट्रो निर्माण के कारण भी जलनिकासी बाधित हो रही है।
6. अव्यवस्थित शहरीकरण और पारिस्थितिक संकट
शहर के पूर्वी हिस्से की वेटलैंड्स कभी प्राकृतिक ड्रेनेज सिस्टम का काम करती थीं। लेकिन दशकों में इन्हें अवैध निर्माण के लिए भर दिया गया। इन दलदली ज़मीनों के खत्म होने से शहर का प्राकृतिक ‘बाढ़ बफ़र’ नष्ट हो गया। मंगलवार को इसका नतीजा पूरी दुनिया ने देखा।
कोलकाता की यह बाढ़ केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं थी, बल्कि दशकों की उपेक्षा, अव्यवस्थित शहरीकरण और प्रशासनिक विफलताओं का परिणाम भी थी। दुर्गा पूजा से पहले आई इस त्रासदी ने न केवल लोगों की ज़िंदगी अस्त-व्यस्त कर दी, बल्कि यह भी साफ़ कर दिया कि अगर शहर अपनी प्राकृतिक रक्षा परतों और बुनियादी ढांचे की अनदेखी करता रहा, तो भविष्य में ऐसे संकट और भी विकराल रूप ले सकते हैं।